द्वारिकाधीश मंदिर रतलाम

By: Jun 3rd, 2023 12:20 am

शहर के बीचोंबीच सुनारों की गली में मौजूद ये द्वारिकाधीश मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इस मंदिर में जो भगवान द्वारिकाधीश की मूर्ति स्थापित है, वो बड़ी चमत्कारी मानी जाती है। द्वारिकाधीश के मुख्य मंदिर की शैली जैसे बने इस मंदिर में साधुओं की जमात से ली गई प्रतिमा शहर के पालीवाल मारवाड़ी ब्राह्मण समाज द्वारा स्थापित की गई थी। माना जाता है कि जो भक्त गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर नहीं पहुंच पाते वे यहां आकर भगवान के दर्शन करते हैं तो उनकी प्रार्थना स्वीकार होती है…

वैसे तो देश में भगवान श्रीकृष्ण के कई चमत्कारी मंदिर हैं। उनसे जुड़े किस्से कहानियां किसी को भी हैरान कर देते हैं। लेकिन रतलाम का द्वारिकाधीश मंदिर भी कुछ कम नहीं है। इस मंदिर से जुड़ी कहानी हर किसी को हैरान कर देती है। शहर के बीचोंबीच सुनारों की गली में मौजूद ये द्वारिकाधीश मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इस मंदिर में जो भगवान द्वारिकाधीश की मूर्ति स्थापित है वो बड़ी चमत्कारी मानी जाती है। द्वारिकाधीश के मुख्य मंदिर की शैली जैसे बने इस मंदिर में साधुओं की जमात से ली गई प्रतिमा शहर के पालीवाल मारवाड़ी ब्राह्मण समाज द्वारा स्थापित की गई थी। माना जाता है कि जो भक्त गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर नहीं पहुंच पाते वे यहां आकर भगवान के दर्शन करते हैं तो उनकी प्रार्थना स्वीकार होती है।

स्थानीय निवासियों के मुताबिक मंदिर में भगवान द्वारिकाधीश की प्रतिमा रात को गायब हो जाती थी। प्रभु की पूजा-अर्चना के बाद उनके शयन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते थे, लेकिन सुबह उठकर देखते तो प्रतिमा गायब हो जाती थी। जब पता किया जाता तो मूर्ति उसी संत के पास मिलती थी, जहां से इसे लाया गया था। काशीराम पालीवाल के सदस्य बताते हैं कि जब मूर्ति बार-बार गायब होने लगी और संत के पास पहुंच जाती, तो काशीराम पालीवाल ने तय किया कि प्रतिमा को अभिमंत्रित करवाकर भगवान को यहीं रोका जाए। उन्होंने अभिमंत्रों के द्वारा भगवान की प्रतिमा को रोक दिया। इस बात से भगवान नाराज हो गए। उन्होंने काशीराम को श्राप दिया कि तुमने ऐसा कर तो दिया लेकिन इसका दंड मिलेगा। काशीराम को भगवान ने स्वप्न में कहा कि पांच पीढ़ी तक तुम्हारा वंश आगे नहीं बढ़ेगा। इस पर भक्त काशीराम ने कहा कि आपका निर्णय मंजूर है, लेकिन हम यहीं आपकी सेवा करते रहेंगे। हुआ भी ऐसा ही। काशीराम पालीवाल परिवार में पांच पीढ़ी तक कोई वंशज नहीं हुआ। वर्षों बाद उनकी बेटी के परिवार में एक पुत्र ने जन्म लिया। इससे पहले गोदित बच्चे ही परिवार और मंदिर की सेवा करते रहे।

भगवान खुद भोग लेकर आए- रतलाम के इस मंदिर से जुड़ा एक और चमत्कार सुनने को मिलता है। भगवान द्वारिकाधीश को कलीराम बा की मिठाई दुकान से रोज पेड़े का भोग मंदिर जाता था। एक बार पेड़े का वह भोग मंदिर नहीं पहुंच सका, तो भगवान ने वेश बदलकर मिठाई की दुकान से पेड़े ले लिए। जब दुकानदार ने उनसे पैसे मांगे तो उन्होंने हलवाई को अपने सोने के कंगन दे दिए। यह बात स्वप्न में भगवान ने काशीराम पालीवाल को बताई। अगले दिन प्रतिमा से कंगन गायब होने से हडक़ंप मच गया। तब काशीराम पालीवाल ने बताया कि भगवान के कंगन हलवाई कलीराम बा की दुकान पर मिलेंगे। लोग वहां पहुंचे तो कंगन हलवाई की दुकान पर मिल गए। इसके बाद से जब तक वह दुकान बंद नहीं हो गई तब तक भगवान के लिए भोग वहीं से मंदिर आता रहा।

सात द्वार के बाद स्थापित है प्रतिमा- रतलाम में भगवान द्वारिकाधीश की प्रतिमा ठीक उसी तरह स्थापित है जैसी गुजरात के द्वारिका मंदिर में। यहां भी द्वारिका की तरह भगवान के दर्शन करने के लिए सात द्वार पार करके जाना पड़ता है।


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