संकष्टी चतुर्थी : बारह माह के कर्म में सबसे बड़ी चतुर्थी

By: Jun 3rd, 2023 12:29 am

संकष्टी चतुर्थी माघ मास में कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। इस चतुर्थी को माघी चतुर्थी या तिल चौथ भी कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की आराधना सुख-सौभाग्य आदि प्रदान करने वाली कही गई है। संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदाएं दूर होती हैं। कई दिनों से रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं तथा भगवान श्रीगणेश असीम सुखों को प्रदान करते हैं। इस दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढऩे का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढऩी चाहिए। तभी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।

व्रत विधि

भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने हेतु संकष्टी चतुर्थी का व्रत निम्न प्रकार करना चाहिए : सर्वप्रथम व्रत करने वाले को चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करें तो विशेष लाभ होता है। श्रीगणेश की पूजा करते समय व्रती को अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें। इसके बाद फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से भगवान गणेश को स्नान करा कर विधिवत प्रकार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना होनी चाहिए। भगवान गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाना चाहिए। सायं काल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुने और सुनाए। तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें। विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ‘ओउम गणेशाय नम:’ की एक माला, यानी 108 बार गणेश मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को अपनी सामथ्र्य के अनुसार गरीबों को दान आदि देना चाहिए। तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपड़े आदि का दान करें।

कथा

पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश से पूछा कि, ‘तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है।’ तब कार्तिकेय व गणेश दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा, ‘तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा।’ भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए तुरंत ही निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह मंद गति से दौडऩे वाले अपने वाहन चूहे के ऊपर चढक़र सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे।

तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा। तब गणेश ने कहा, ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।’ यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अघ्र्य देगा, उसके तीनों ताप, यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दु:ख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी।


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