राजनीति में मनोविज्ञान पढऩे की गुंजाइश

By: Jun 3rd, 2023 12:15 am

जे.पी. शर्मा, मनोवैज्ञानिक
नीलकंठ, मेन बाजार ऊना मो. 9816168952

पढ़ाई के पाठ्यक्रम भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं जो अपनी विषय सामग्री के अनुसार मनुष्य व समाज के अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन करते हैं। वैदिक काल से ही चारों वेदों में अध्ययन की विषय सामग्री निहित हुआ करती थी। ऋग्वेद धार्मिक, यज्ञ पद्धति, सामवेद रसायन व औषधीयों, अथर्ववेद, धन संबंधी एवं यजुर्वेद राजनीति का अध्ययन करता था आगे उपनिषद एवं पुराण अन्य बारीकियों के विषय सामग्री से समाहित था। मुख्यत: वे वेदों की शाखाओं के ही अध्ययन में विभाजित था वर्तमान में उन्हीं पाठ्यक्रमों के नए नामकरण आते चले गए जैसे नैतिक शास्त्र, राजनीतिशास्त्र, विज्ञान की अनके शाखाएं, डाक्टरी व टेक्नीकल विशेषज्ञतानिहित पढ़ाई आदि, आधुनिक युग तो पूर्णतया कम्प्यूटरीकृत विषय सामग्री में तबदील हो गया। लबोलुआब यह कि प्रत्येक विषय मुख्यत: मानव व समाज के ही विभन्न पहलुओं का अध्ययन करता रहा आगे प्रचलन हुआ विशेषज्ञ युग का, जिसमें समाज शास्त्री समाज का मनोशास्त्री इनसानी मस्तिष्क का बारीकी से अध्ययन करने लगे। मुख्य शीर्षक मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान के तहत पढ़ाया जाने लगा। मनोविज्ञान को व्यावहारिक विज्ञान भी कहा जाता है। जो इनसान के व्यवहार का भिन्न-भिन्न नजरिये से अध्ययन करता है। आज तो राजनीति और मनोविज्ञान के आपसी तालमेल, परस्पर निर्भरता, संबंधता तक ही सीमित रहेगें।

राजनेता सत्ता में आने की खातिर मतदाता की मानसिकता को लुभाने में प्रयासरत रहते हंै कभी भाषणों से, कभी रैलियों से, कभी निजी संपर्कों से, कभी विज्ञापनों,पोस्टरों, कवि गोष्ठियों, लेखकों के माध्यम से। सत्तापक्ष सत्ता में रहने व विपक्ष स्वयं सत्ता हासिल करने की प्रक्रिया में मतदाता के मन मस्तिष्क को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीकों से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री की ओजपूर्ण तकरीर इसकी सटीक मिसाल है। प्रसिद्ध है कि अटल विहारी बाजपेयी की संवाद व भाषाशैली विरोधियों को भी प्रभावित करती थी, वे भी उन्हें सुनने के लिए ललायित रहते थे उनकी चुटकीले अंदाज में की गई कवितामयी शैली सीधे श्रोताओं के जहन में उतर जाती थी उसका कुछ पुट नरेंद्र मोदी की ओजपूर्ण शैली में झलकता है, जिनके मन की बात कार्यक्रमों को विदेशों में भी सराहा गया है। सभी पार्टियों में अच्छे बुरे वक्ता मौजूद हैं, जो मतदाता पर सुप्रभाव अथवा कुप्रभाव डालकर सत्ता हासिल करते है। एक अच्छे राजनेता का अच्छा मनोशास्त्री होना भी लाजिमी है।


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