वराह जयंती : दैत्यों का वध करने को विष्णु का अवतार
वराह जयंती भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि को भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था, और हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया। भगवान विष्णु के इस अवतार में श्रीहरि पापियों का अंत करके धर्म की रक्षा करते हैं। वराह जयंती भगवान के इसी अवतरण को प्रकट करती है। इस जयंती के अवसर पर भक्त लोग भगवान का भजन-कीर्तन व उपवास एवं व्रत इत्यादि का पालन करते हैं।
कथा
जब दिति के गर्भ से हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने जुड़वां पुत्रों के रूप में जन्म लिया तो पृथ्वी कांप उठी। आकाश में नक्षत्र और दूसरे लोक इधर से उधर दौडऩे लगे, समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें पैदा हो उठीं और प्रलयंकारी हवा चलने लगी। ऐसा प्रतीत होने लगा कि मानो प्रलय आ गई हो। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों पैदा होते ही बड़े हो गए। दैत्यों के बालक पैदा होते ही बड़े हो जाते हैं और अपने अत्याचारों से धरती को कंपाने लगते हैं। यद्यपि हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों बलवान थे, किंतु फिर भी उन्हें संतोष नहीं था। वे संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे।
तप तथा वरदान
हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया। उनके तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर कहा, ‘तुम्हारे तप से मैं प्रसन्न हूं। वर मांगो, क्या चाहते हो?’ हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने उत्तर दिया, ‘प्रभो, हमें ऐसा वर दीजिए जिससे न तो कोई युद्ध में हमें पराजित कर सके और न कोई मार सके।’ ब्रह्माजी तथास्तु कहकर अपने लोक में चले गए। ब्रह्मा से अजेयता और अमरता का वरदान पाकर हिरण्याक्ष उद्दंड और स्वेच्छाचारी बन गया। वह तीनों लोकों में अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने लगा। दूसरों की तो बात ही क्या, वह स्वयं विष्णु भगवान को भी अपने समक्ष तुच्छ मानने लगा।
इंद्रलोक पर अधिकार
हिरण्याक्ष ने गर्वित होकर तीनों लोकों को जीतने का विचार किया। वह हाथ में गदा लेकर इंद्रलोक में जा पहुंचा। देवताओं को जब उसके पहुंचने की खबर मिली, तो वे भयभीत होकर इंद्रलोक से भाग गए। देखते ही देखते समस्त इंद्रलोक पर हिरण्याक्ष का अधिकार स्थापित हो गया। जब इंद्रलोक में युद्ध करने के लिए कोई नहीं मिला, तो हिरण्याक्ष वरुण की राजधानी विभावरी नगरी में जा पहुंचा। उसने वरुण के समक्ष उपस्थित होकर कहा, ‘वरुण देव, आपने दैत्यों को पराजित करके राजसूय यज्ञ किया था। आज आपको मुझे पराजित करना पड़ेगा। कमर कस कर तैयार हो जाइए, मेरी युद्ध पिपासा को शांत कीजिए।’ हिरण्याक्ष का कथन सुनकर वरुण के मन में रोष तो उत्पन्न हुआ, किंतु उन्होंने भीतर ही भीतर उसे दबा दिया। वे बड़े शांत भाव से बोले, ‘तुम महान योद्धा और शूरवीर हो। तुमसे युद्ध करने के लिए मेरे पास शौर्य कहां? तीनों लोकों में भगवान विष्णु को छोडक़र कोई भी ऐसा नहीं है जो तुमसे युद्ध कर सके। अत: उन्हीं के पास जाओ। वे ही तुम्हारी युद्ध पिपासा शांत करेंगे।’
विष्णु-हिरण्याक्ष युद्ध
वरुण का कथन सुनकर हिरण्याक्ष भगवान विष्णु की खोज में समुद्र के नीचे रसातल में जा पहुंचा। रसातल में पहुंचकर उसने एक विस्मयजनक दृश्य देखा। उसने देखा एक वराह अपने दांतों के ऊपर धरती को उठाए हुए चला जा रहा है। अनेक घटनाक्रमों के बाद विष्णु भगवान हिरण्याक्ष का वध कर देते हैं।