बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधारों पर सहमति
अफ्रीकी देश, श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया के कई देश कर्ज की कमजोरी से पीडि़त हैं। इस संकट से निपटने की जरूरत है…
बहुपक्षवाद में सुधार और इसे अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता पर जी-20 शिखर सम्मेलन की सर्वसम्मत घोषणा ने वैश्विक संस्थानों को अधिक प्रतिनिधि, प्रभावी, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इसे एक बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। यह छिपा नहीं है कि वैश्विक संस्थाएं विकासशील देशों की आकांक्षाओं को पूरा करने में बुरी तरह विफल रही हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद युद्ध से होने वाली तबाही, असंतुलन और व्यवधानों से निपटने के लिए कुछ बड़े प्रयासों की आवश्यकता महसूस की गई। संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में दो संस्थाएं बनाई गईं- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (आईबीआरडी), जिसे बाद में विश्व बैंक के रूप में जाना गया, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)। इसके अतिरिक्त व्यापार और टैरिफ पर सामान्य समझौता (जीएटीटी), जो 1995 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में बदल गया, मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था।
परिवर्तन की बयार : 10 सितंबर 2023 को जी-20 दिल्ली घोषणा में कहा गया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अभी तक आर्थिक वृद्धि और विकास, उपनिवेशवाद से मुक्ति और तकनीकी उपलब्धियों के कारण वैश्विक परिदृश्य बदल गया है। हालांकि भारत, चीन और अन्य बड़ी और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का नाम नहीं लिया गया, लेकिन घोषणा में स्पष्ट रूप से कहा गया कि इस बीच नई आर्थिक शक्तियां उभरी हैं। इसमें कहा गया था कि दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति के कारण वैश्विक संस्थानों में सुधार की जरूरत है, इसे लेकर आम सहमति बनी है। अगर हम डब्ल्यूटीओ की बात करें तो देखते हैं कि दोहा में आयोजित चौथे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में विकास का दौर अब विकसित देशों द्वारा पूरी तरह से दफन कर दिया गया है। विकासशील देश, विकसित देशों के इस रवैये से बेहद परेशान हैं। विश्व बैंक और आईएमएफ की कार्यप्रणाली से यह निस्संदेह स्पष्ट है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तीव्र आर्थिक विकास और परिवर्तन के बावजूद विकसित देशों का इन दो वैश्विक संस्थानों पर दबदबा लगातार बना हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब ये संस्थाएं बनीं तो विकसित देशों का शुरुआती योगदान ज्यादा था। विश्व बैंक और आईएमएफ दोनों जरूरतमंद देशों को वित्त प्रदान करते हुए अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं। ऋण देते समय वे ऐसी शर्तें लगा देते हैं जिससे न केवल राष्ट्रों की अपनी आर्थिक नीतियां तय करने का संप्रभु अधिकार खतरे में पड़ जाता है, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि विकासशील देश जब संकट में होते हैं, तो समस्याओं से स्वयं ही निपटने का प्रयास करते हैं और आईएमएफ या विश्व बैंक से वित्त लेने से बचते हैं। दिल्ली घोषणा विकासशील और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं की वित्त आवश्यकताओं की तात्कालिकता को रेखांकित करती है। घोषणा में कहा गया है, ‘21वीं सदी को एक अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त प्रणाली की भी आवश्यकता है जो उद्देश्य के लिए उपयुक्त हो, जिसमें विकासशील देशों, विशेष रूप से सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों का सामना करने वाले झटकों की आवश्यकता और गहराई शामिल हो।’ इसमें आगे कहा गया है, ‘हम ऑपरेटिंग मॉडल को बढ़ाकर, जवाबदेही और पहुंच में सुधार करके और विकास प्रभाव को अधिकतम करने के लिए वित्तपोषण क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि करके बेहतर, बड़े और अधिक प्रभावी बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी) प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं। विकास के लिए अरबों डॉलर से लेकर खरबों डॉलर तक की लंबी छलांग लगाने के लिए सभी स्रोतों से वित्तपोषण जुटाने के हमारे प्रयासों के लिए मजबूत एमडीबी महत्वपूर्ण होंगे।’ वैश्विक संस्थानों में बदलाव के आयामों को समझने की जरूरत होगी जिसके बारे में जी-20 सम्मेलन में आवाज उठाई गई है।
संसाधन आधार का विस्तार : जी-20 ने बहुपक्षीय विकास बैंक पूंजी पर्याप्तता ढांचे की जी-20 स्वतंत्र समीक्षा की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक रोडमैप का सुझाव दिया है। इसका मतलब यह है कि विश्व बैंक, आईएमएफ और अन्य विकास बैंकों को अपने संसाधन आधार का विस्तार करना चाहिए। इस संबंध में जी-20 ने अपने नवोन्मेषी वित्तपोषण मॉडल और नई साझेदारियों के माध्यम से निजी पूंजी का लाभ उठाने का भी आह्वान किया है। उनकी पूंजी की पूर्ति के लिए कई अन्य सुझाव भी दिए गए हैं। जी-20 घोषणापत्र में कहा गया है कि निवेश की लागत को कम करने और वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों की क्षमता बढ़ाने के लिए इन वित्तीय संस्थानों के शेयरधारिता पैटर्न को संशोधित करने की आवश्यकता है। इस संबंध में आईबीआरडी की 2020 की शेयरधारिता समीक्षा पर समापन रिपोर्ट का संदर्भ दिया गया है। यह भी कहा गया है कि जी-20, 2025 की शेयरधारिता समीक्षा का इंतजार कर रहा है। यानी यह माना जा सकता है कि अगर विकासशील देशों की जरूरतों के लिए विकास वित्त की लागत कम करनी है तो इन वित्तीय संस्थानों के अपने संसाधनों में वृद्धि करनी होगी। इन संस्थानों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की शेयरधारिता और बढ़ी हुई हिस्सेदारी के माध्यम से वृद्धि की जरूरत है। एमडीबी को मजबूत करने के प्रयास को संयुक्त राज्य अमेरिका का भी समर्थन प्राप्त है क्योंकि वह चीन के बाहरी ऋण के ‘विश्वसनीय विकल्प’ के रूप में विश्व बैंक को पेश करना चाहता है। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि चीन द्वारा दिया जाने वाला विदेशी ऋण अक्सर पारदर्शी नहीं होता है जो बाद में देशों के लिए जोखिम पैदा करता है। हम समझते हैं कि विश्व बैंक जैसे स्रोत निश्चित रूप से चीन के विदेशी ऋण जैसे विकल्पों की तुलना में अधिक पारदर्शी हैं, जिसने कई विकासशील देशों को ऋण जाल में फंसा दिया है। संयुक्त राष्ट्र और उसके संस्थान सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बारे में बात करते रहे हैं। जी-20 घोषणा में कहा गया कि सदस्य देश एसडीजी को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति में तेजी लाने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों से अपने उद्देश्यों और अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए अपने दृष्टिकोण, प्रोत्साहन संरचनाओं और वित्तीय क्षमताओं को विकसित करने के लिए व्यापक प्रयास करने का आह्वान करते हैं। जी-20 में बनी एक महत्वपूर्ण सहमति ‘वैश्विक ऋण कमजोरियों के प्रबंधन’ के बारे में है। इसमें कहा गया है, ‘हम प्रभावी, व्यापक और व्यवस्थित तरीके से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ऋण कमजोरियों को संबोधित करने के महत्व पर फिर से जोर देते हैं।’ उल्लेखनीय है कि चीन की ऋण जाल कूटनीति, राजकोषीय कुप्रबंधन, अति-महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा योजनाएं या अन्य सहित विभिन्न कारणों से गरीब देश तेजी से कर्ज के जाल में फंस रहे हैं, वैश्विक वित्तीय संस्थानों के सही इरादों के बावजूद इस स्थिति से निपटने के लिए शायद ही कोई तंत्र है। अफ्रीकी देश, श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया के कई देश कर्ज की कमजोरी से पीडि़त हैं। इस संकट से जल्द से जल्द निपटने की जरूरत है।
वित्त मंत्रियों ने किया समर्थन : हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री लॉरेंस समर्स और इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ (भारत) के अध्यक्ष एनके सिंह के नेतृत्व में एमडीबी सुधारों पर विशेषज्ञ समूह ने भी अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इसमें कहा गया है कि महत्वपूर्ण और उत्साहजनक विकास हो रहे हैं जहां कई बहुपक्षीय विकास बैंकों, जैसे अफ्रीकी विकास बैंक, एशियाई विकास बैंक, एशियाई बुनियादी ढांचा निवेश बैंक और विश्व बैंक समूह सुधार की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, जिसमें उनके अपनी पूंजी बढ़ाने, निजी निवेश जुटाने, फंड, ऋण प्रक्रियाओं का सामंजस्य, गारंटी का प्रावधान आदि के प्रयास शामिल हैं।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
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