राजस्थान की आदिवासी बेल्ट पर टिका पूरा दारोमदार, बीटीपी और बीएपी ने बिगाड़े कांग्रेस-बीजेपी के समीकरण
एजेंसियां — जयपुर
राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी का पूरा दारोमदार आदिवासी बेल्ट पर टिका हुआ है। दोनों ही दलों ने आदिवासी समुदाय को उनकी रिजर्व सीटों के साथ-साथ सामान्य सीटों पर भी उतार रखा है, लेकिन मध्य प्रदेश से सटे हुए राजस्थान के इलाकों में आदिवासी सियासत नई करवट ले रही है। आदिवासी समाज के अधिकारों और प्रतिनिधित्व के नाम पर बनी भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) और भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों के समीकरण को बिगाड़ रही है, जिसके चलते उदयपुर और बांसवाड़ा के आदिवासी बेल्ट में मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। प्रदेश की सियासत में 13 फीसदी आदिवासी वोटर काफी निर्णायक है। राजस्थान की सत्ता का फैसला इस समुदाय के वोटों से तय होता है, क्योंकि 200 सीटों में से 25 सीटें एसटी समुदाय के लिए रिजर्व हैं। 2013 के चुनाव में बीजेपी ने सुरक्षित सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई थी, लेकिन 2018 में घटकर 11 एसटी और 10 एससी सीटें जीती थी। कांग्रेस 21 एसटी जीतने में सफल रही थी और सत्ता में वापसी की थी। ऐसे में साफ तौर पर समझा जा सकता है कि सत्ता का तिलिस्म एसटी सुरक्षित सीटों में छिपा है, इसीलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही आदिवासी समुदाय को रिजर्व के साथ सामान्य सीट पर भी दांव खेला है।
बीटीपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल क्षेत्र की दो सीटें जीतकर कांग्रेस और बीजेपी की नींद उड़ा दी थी। इस बार एक आदिवासी समुदाय के बीच एक नई पार्टी ने दस्तक दी है, जिसे भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) नाम से जाना जाता है। बीटीपी ने 12 और बीएपी ने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं। आदिवासी समाज बेल्ट की बांसवाड़ा संभाग की 13 विधानसभा सीटें और उदयपुर संभाग की 14 यानी कुल 27 आदिवासी बहुल पर सभी की निगाहें है। बीटीपी और बीएपी दोनों ने बांसवाड़ा और उदयपुर इलाके की सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं, जिसके चलते ही बीजेपी और कांग्रेस के लिए टेंशन बढ़ा दी है। दोनों ही दल बीटीपी और बीएपी के समीकरण को काउंटर करने के लिए हाथ-पैर मार रही हैं। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी और बीजेपी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अन्य दिग्गजों ने इस इलाके में रैलियां करके सियासी माहौल बनाने की कोशिश कर चुकी हैं। इसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और मंत्री अर्जुन बामनिया और महेंद्रजीत सिंह मालवीय उलझे हुए हैं।
कभी कांग्रेस का गढ़ था उदयपुर और बांसवाड़ा संभाग
उदयपुर और बांसवाड़ा संभाग के ज्यादातर जिले आदिवासी मतदाता बहुल हैं। एक समय यह कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा, लेकिन अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रहे हैं। कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी जीत का परचम फहराती रही हैं, लेकिन आदिवासियों की समस्या जस की तस बनी हुई है। छोटू भाई वसावा ने बीटीपी का गठन और ‘जल, जंगल, जमीन हमारा’ का नारा बुलंद करके आदिवासी बेल्ट में नई हलचल पैदा कर दी थी।
बसपा और लेफ्ट भी पूरे दमखम से मैदान में
आदिवासी बहुल सीटों पर बीएपी पांच से छह हजार वोट हासिल करने में भी अगर कामयाब रहती है, तो इस त्रिकोणीय मुकाबले में किसी भी दल के हाथ सियासी बाजी लग सकती है। बसपा और लेफ्ट पार्टी भी आदिवासी बेल्ट में पूरे दमखम के साथ उतरी हैं, जिसके चलते देखना है कि किसकी किस्मत के सितारे बुलंद होते हैं?
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