बंजार में फागली की धूम, विष्णु नारायण ने दिया आशीर्वाद

लकड़ी के मुखौटे और विशेष परिधान पहनकर गांव से भगाई जाती हैं आसुरी शक्तियां; मढयाले लोगों को जूब देकर देते हैं आशीर्वाद, बीहट पर्व की भी रहेगी धूम

स्टाफ रिपोर्टर-बंजार
उपमंडल बंजार के अंतर्गत आने आने वाले गांव चेहनी पंचायत का बिनी, बेहलो, बैलोन, देऊधा, शिकरीघाट का चेतहर श्रीकोट तथा विभिन्न क्षेत्रों में पांच दिवसीय प्राचीनतम मुखौटा फागली उत्सव मनाया गया। बंजार क्षेत्र के विभिन्न गांव में यह उत्सव सदियों से मनाया जाता आ रहा है। इसमें भगवान विष्णु नारायण का गुणगान किया जाता है और विशेष लोग मुंह में मुखौटे पहन करके भविष्यवाणी भी करते हैं और लोगों का दुख-दर्द भी समाप्त करते हैं। इन पुरातन परंपराओं को देखने के लिए देसी विदेशी पर्यटक भी आते हैं। उत्सव में स्थानीय बच्चों, युवक-युवतियोंं, स्त्री-पुरुषों के अलावा बाहरी राज्यों से आए पर्यटको ने भी कर भाग लिया। पर्यटक मुखोटा नृत्य को अपने कैमरों में कैद करते देखे गए। मुखौटा उत्सव फागली में स्थानीय गांव से अलग-अलग परिवार के पुरुष सदस्य अपने अपने मुँह में विशेष किस्म के प्राचीनतम लकड़ी के मुखौटे लगाते है और एक विशेष किस्म का ही पहनावा पहनते हैं। हर गांव में पहने जाने वाले मुखोटों तथा पहनावे में कई किस्म की विभिन्नता पाई जाती है। इसके अलावा हर गांव म मुखौटा उत्सव की मान्यता और तौर तरीके भी अलग-अलग होते हैं। फागली उत्सव के दौरान दो दिन तक मुखोटा धारण किए हुए मडयाले हर घर व गांव की परिक्रम गाजे-बाजे के साथ करते हैं।

कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित
इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियां देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है। कई क्षेत्रों में विष्णु स्वरूप मडियालों के मुख से भविष्यवाणी भी सुनी जाती है और भविष्यवाणी सटीक और सत्य होती है। इसको सुनने के लिए हर क्षेत्र में हजारों लोग एकत्रित होते हैं। इसी के साथ बीहट का आयोजन भी किया जाता है। माना जाता है कि यह पर्व भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धारण किया था था। उसी रूप का प्रदर्शन इस बीच में किया जाता है और इसको बढिय़ा तरीके से सजाया जाता है। गुरुवार को उपमंडल बंजार के बेहलो बिनी के साथ अन्य क्षेत्रों में इस पर्व का आयोजन किया और जो इस बीहट के नरगिस फूल को पकड़ता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। इसे पकडऩे के लिए हजारों के झुंड में लोग एकत्रित होते हैं। इस अवसर पर पुरातन परंपरागत गीतों को गया जाता है। कहा जाता है कि गीतों के गाने से क्षेत्र से बुरी आत्माएं भाग जाती हैं और क्षेत्र में खुशहाली छाई रहती है।

पर्यटक हो रहे आकर्षित
बंजार में अब यहां के मेले और त्यौहार भी पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। यहां की प्राचीनतम परम्पराएं एवं संस्कृति यहां की पहचान है। उपमंडल में हर साल अनेकों मेलों और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जो यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को बखूबी दर्शाता है। ये मेले और त्यौहार यहां के लोगों के हर्षोउल्लास और खुशी का प्रतीक है। मेलों और त्यौहारों के माध्यम से ही लोगों के आपसी संबंध मजबूत होते हैं।