हॉकी में चमकी नंगल जरियालां की होनहार बेटियां

मास्टर्स हॉकी प्रतियोगिता में चमकाया प्रदेश का नाम, महिला वर्ग का रजत पदक जीतने वाली हिमाचल की टीम का बनी हिस्सा

स्टाफ रिपोर्टर-दौलतपुर चौक
किसी ने सच ही कहा है कि मंजिले उन्हें मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है, इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ किया है गगरेट विधानसभा क्षेत्र के गांव नंगल जरियालां की दो बेटियों सपना और सीमा ने। जी हां स्कूल एवं कालेज टाइम में प्रदेश का सम्मान बढ़ाने वाली सपना और सीमा ने शादी होने के बाद भी अपने आपको चूल्हे चौंके तक सीमित न रखा। अपितु ग्राउंड पर पसीना बहाते हुए अपनी गेम को जिंदा रखा और दस से 13 फरवरी तक नेशनल मास्टर्स हॉकी एसोसिएशन द्वारा गोवा में आयोजित प्रतियोगिता जहां सेमीफाइनल में केरल शिकस्त देकर फाइनल मुकाबले में जगह बनाई, वहीं फाइनल में महाराष्ट्र को कड़ी टककर दी। यद्यपि टीम को रनरअप अर्थात रजत पदक से दिलाने में अहम भूमिका निभाई । जिससे उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया है। गोवा में संपन्न हुई तीन दिवसीय मास्टर्स महिला हॉकी प्रतियोगिता में प्रदेश की टीम ने रजत पदक जीता लेकिन गत वर्ष जम्मू में संपन्न हुई प्रतियोगिता में हिमाचल की टीम चैंपियन रह चुकी है। उधर सपना और सीमा ने बताया कि उन्हें बचपन से ही हॉकी खेलने का जुनून था तथा अपने इस जुनून के कारण ही वह इस मुकाम पर पहुंची हैं ।

यद्यपि 40 प्लस उम्र की महिलाएं मास्टर्स गेम्स की बदौलत लगातार 3तीनर्षों से हिमाचल के लिए मेडल जीत कर प्रदेश का नाम रोशन कर रही हैं, बावजूद इसके बड़े अफसोस की बात है कि सरकार की तरफ से उन्हें अभी तक कोई अच्छा सहयोग नहीं मिला है। सपना एवं सीमा ने बताया कि उन्होंने आठवीं कक्षा से हॉकी खेलना शुरू किया था। सपना और सीमा ने अपना पहला स्टेट मैच चंबा में खेला था उसके बाद दोनों की सलेक्शन होने पर चार से पांच साल की ट्रेनिंग एवं 12वीं कक्षा की पढ़ाई गर्ल्स होस्टल माजरा सिरमौर में साथ साथ हुई । कोई भी प्लेटफार्म न मिलने की वजह से उन्होंने खुद अपने खर्च पर जालंधर में दो साल हॉकी की ट्रेनिंग की । सपना और सीमा दोनों ने ही शारीरिक शिक्षा में स्नातक डिग्री भी की हुई है । यद्यपि 40 प्लस की महिलाएं मास्टर गेम्स की बदोलत लगातार तीन-चार साल से हिमाचल के लिए मेडल जीत रही हैं और हिमाचल का नाम रोशन कर रही हैं। बावजूद इसके बड़े अफसोस की बात है कि सरकार की तरफ से उन्हें कोई भी सहयोग नहीं मिल रहा है। वह दोनों हाउसवाइफ हैं और कोई भी नौकरी नहीं करतीं एवं आर्थिक तौर पर ज्यादा समृद्ध न होने की वजह से वे चयन होने के बावजूद अपने खर्च पर फॉरेन टूर पर जाने में असमर्थ रहती हैं।