सरस्वती मंदिर बासर
मां सरस्वती जी का जन्मदिन जिसे हम बसंत पंचमी के रूप में मनाते हैं। इस साल 14 फरवरी को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन देश भर में माता सरस्वती की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। भारत में वैसे तो सरस्वती माता के कई मंदिर हैं, लेकिन आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले के मुधोल क्षेत्र के बासर गांव में स्थित मंदिर को सरस्वती माता का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर को ऋषि वेद व्यास द्वारा बनाया गया था। कहा जाता है कि महाभारत के रचयिता महाऋषि वेद व्यास जब मानसिक उलझनों से उलझे हुए थे, तब शांति के लिए तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े, अपने मुनि वंृदों सहित उत्तर भारत की तीर्थ यात्राएं कर वह दंडकारण्य (बासर का प्राचीन नाम) पहुंचे और गोदावरी नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर कुछ समय के लिए रुक गए थे। मां सरस्वती के मंदिर से थोडी दूर स्थित दत्त मंदिर से होते हुए मंदिर तक गोदावरी नदी में कभी एक सुरंग हुआ करती थी, जिसके द्वारा उस समय के महाराजा पूजा के लिए आया-जाया करते थे। यहीं वाल्मीकि ऋषि ने रामायण लेखन प्रारंभ करने से पूर्व मां सरस्वती जी को प्रतिष्ठित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस मंदिर के निकट ही वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि बनी है।
मंदिर के गर्भगृह, गोपुरम, परिक्रमा मार्ग आदि इसकी निर्माण योजना का हिस्सा हैं। मंदिर में केंद्रीय प्रतिमा सरस्वती जी की है, साथ ही लक्ष्मी जी भी विराजित हैं। सरस्वती जी की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में 4 फुट ऊंची है। मंदिर में एक स्तंभ भी है, जिसमें से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं। यहां की विशिष्ट धार्मिक रीति अक्षर आराधना कहलाती है। इसमें बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारंभ कराने से पूर्व अक्षराभिषेक हेतु यहां लाया जाता है। बासर गांव में 8 ताल हैं जिन्हें वाल्मीकि तीर्थ, विष्णु तीर्थ, गणेश तीर्थ, पुथा तीर्थ कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्य राजाओं ने देवी सरस्वती के सम्मान में किया था। दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन हेतु इस मंदिर में आते हैं।
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