समय पर अब केवल एमर्जेंसी ऑपरेशन

यूनियन ने मांगें पूरी होने पर दी चेतावनी, इलाज के लिए मरीजों को करना पड़ा लंबा इंतजार

सिटी रिपोर्टर-सोलन
सोमवार को पेन डाउन स्ट्राइक पर बैठे डॉक्टरों को वार्तालाप के लिए शिमला नहीं बुलाया गया। जिससे डॉक्टरों में सरकार के प्रति ज्यादा रोष उत्पन होने लगा है। यूनियन का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्री ने सोमवार को बुलाने की बात कही थी। जोकि धरी की धरी रह गई। यदि कैबिनेट की बैठक में मांगों को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया जाता तो अब आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। डॉक्टर्स यूनियन के प्रधान डा. कमल अटवाल ने बताया कि यदि अगर छुटटी में लेंगे तो दो दिनों की इकठी लेंगे। यही नहीं अब पेन डाउन स्ट्राइक के घंटों को बढ़ाने पर विचार विमर्श किया जाएगा। डॉक्टर्स यूनियन के प्रधान डा. कमल अटवाल ने बताया कि अब डॉक्टर यूनियन द्वारा आपरेशन भी 12 बजे के बाद करने का निर्णय लिया है। केवल एमरजैंसी के ओप्रेशन ही समय पर किए जाएंगे। इससे साफ प्रतीत है कि डॉक्टरों की सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है।

गौर रहे कि क्षेत्रीय अस्पताल में डॉक्टर सामूहिक अवकाश पर चले गए थे।सोमवार को भी अस्पताल में उपचार करवाने के लिए भारी संख्या में मरीजों का आना लगा रहा। उपचार करवाने के लिए भारी संख्या में पहुंचे मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ा। सुबह से ही मरीज उपचार करवाने के अस्पताल पहुंचे। कई दिनों से डॉक्टर्स अपनी मांगों को लेकर पेन डाउन स्ट्राइक पर बैठे है। डॉक्टर्स यूनियन के प्रधान डा. कमल अटवाल ने बताया कि अब जल्द ही रेजिडेंट डॉक्टर डॉक्टर्स यूनियन को पूरा समर्थन देगी। बता दें कि डॉक्टर्सं की सबसे बड़ी मांग एनपीए को लेकर है जोकि बंद कर दिया गया है। वहीं डॉक्टरों का जो वेतनमान 40 हजार था उसे भी कम कर दिया गया है। यही नहींं 4-9-14 के स्केल से भी वंचित रखा जा रहा है। जिसे पूरा करने के लिए डॉक्टर लंबे अरसे से मंाग कर रहे हैं। पेन डाउन स्ट्राइक से मरीजों की परेशानी भी बढऩे लगी है।

क्या कहते हैं डॉक्टर्स यूनियन के प्रधान डा. कमल अटवाल
डॉक्टर्स यूनियन के प्रधान डा. कमल अटवाल ने बताया कि सोमवार को पेन डाउन स्ट्राइक पर बैठे डॉक्टरों को वार्तालाप के लिए शिमला बुलाने को कहा गया था। लेकिन नहीं बुलाया गया। यदि कैबिनेट की बैठक में मंागों को लेकर कोई निर्णय नही लिया गया तो आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। यूनियन के प्रधान डा. कमल अटवाल ने बताया कि सरकार मांगों को लेकर गंभीर नहीं है।