कुल्लू की पश्मीना शॉल पर आया लोगों का दिल, गेयटी थियेटर में लगे बुनकर मेले में ऊनी वस्त्र बने लोगों की पसंद

 वस्त्र मंत्रालय हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम के उत्पादों का कर रहा प्रचार

सिटी रिपोर्टर—शिमला
गेयटी थियेटर में लगे बुनकर मेले में शहर के स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी भारी मात्रा में पहुंच रहे है। बुधवार को मेले में लोगों की खासा भीड़ देखने को मिली। यह प्रदर्शनी कुल्लू के मनु विवेर्स हैंडीक्राफ्ट को-ऑपरेटिव सोसायटी ने आयोजित की है। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय द्वारा हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम के उत्पादों का प्रचार कर और उन्हें बाजार उपलब्ध करवाना है। प्रदर्शनी में कुल्लू जिला के कारीगरों द्वारा निर्मित उत्पादों को लगाया गया है। बुनकर मेले में कुल्लू जिला के अलग-अलग जिलों से आए कारीगरों ने अपने स्टाल लगाए है। इसमें कुल्लू जिला की प्रसिद्ध पश्मीना शॉल आकर्षण का मुख्य केंद्र बनी हुई है। यह शॉल कारीगरों द्वारा अपने हाथों से तैयार की जाती है। इस शॉल में भेड़ों की शुद्ध ऊन का इस्तेमाल किया जाता है और इस ऊन की कीमत अधिक होने से शॉल की कीमत भी अधिक हो जाती है।

इस शॉल का वजन बाकी शॉलों के मुकाबले कम होता है। इस शॉल को कारीगरों द्वारा तैयार करने में 10 से 15 दिनों का समय लग जाता है। पश्मीना शॉल की कीमत दस हजार से लेकर पच्चीस हजार तक बताई गई है। ऊनी जैकेट की कीमत 2500 से 3000, ऊनी कोट की कीमत 5000 से 6000, लोकल शॉल और स्टॉल की कीमत 700 से 1200 तक तय की गई है। इन उत्पादों को कारीगरों द्वारा खड्डी में तैयार किया
जाता है। इसके बाद कारीगर हाथों से उनकी कताई करते है। विंटर कार्निवाल में कुल्लू से आए दि रैना कॉर्पोरेशन के सचिव अनिल मेहरा ने बताया कि इन उत्पादों को मनु विवेर्स हैंडीक्राफ्ट को-ऑपरेटिव सोसायटी के कारीगरों द्वारा बनाया गया है। सोसायटी में कुल्लू के 30 से 35 कारीगर ऊनी कपड़ों को हाथों से खड्डी में तैयार करते है। पश्मीना शॉल की खासियत यह होती है कि दुनिया के सबसे गर्म कपड़ों में शुमार है। शॉल भेड़ की ऊन से तैयार की जाती है, इसलिए इसकी कीमत महंगी होती है।