गुच्छी की खोज को जंगलों में निकले ग्रामीण

जंगली बूटी को इकट्ठा करने का काम तेज, इस बार प्रतिकूल मौसम ने प्रभावित किया कारोबार, आय का मुख्य साधन है गुच्छी

स्टाफ रिपोर्टर-भुंतर
प्रदेश के जंगलों में पाई जाने वाली और ग्रामीण इलाकों के लोगों के बड़े आय के स्त्रोतों में शुमार गुच्छी की खोज को ग्रामीणों ने जंगलों में डेरा जमा लिया है। अनेक प्रकार की कामोत्तेजक दवाइयों में प्रयोग होने वाली इस मशरूम प्रजाति की बूटी का सीजन हिमपात और बारिश के बाद आरंभ हो गया है। लिहाजा सेब, अनार और सब्जियों के सीजन से पहले इससे अपनी आय बढ़ाने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने भी अपना दूसरा कामकाज छोड़ इस बूटी की खोज के लिए जंगलों की ओर रुख कर दिया है। राज्य भर की मार्केट में पांच से 10 हजार रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकने वाली गुच्छी के लिए आने वाले दो से तीन माह तक ग्रामीण जंगलों में ही डेरा डाले रखेंगे। ग्रामीणों का मार्केट तक भारी मात्रा में गुच्छी पहुंचाने का लक्ष्य रहता है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों से मिली जानकारी के अनुसार अभी गुच्छी उतनी ज्यादा मात्रा में तो नहीं मिल रही, लेकिन आने वाले दो सप्ताह में इसका सीजन चरम पर होगा।

दो-तीन महीने रहेगा गुच्छी का सीजन
कुल्लू के मौहल में स्थित राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान प्रभारी वैज्ञानिक डा. आर के सिंह का कहना है कि गुच्छी सीजन आने वाले दो से तीन माह तक जारी रहेगा और हाल ही में हुई बेहतर बारिश के कारण पैदावार में ईजाफे की आस है।

अद्भुत रासायनिक गुणों से भरपूर होती है गुच्छी
बूटी दवाइयों में प्रयोग होने के साथ अब नामचीन होटलों में भी मेहमानों को परोसी जाने लगी है। हालांकि इसका उत्पादन समय पिछले एक दशक में प्रभावित हुआ है। जलवायु परिवर्तन की मार भी इस बूटी पर पड़ी है और इसने इसके समय को भी दिसंबर से फरवरी तक खिसका दिया है। राज्य में तीस से चालीस करोड़ तक इसका कारोबार होता है। बाहरी देशों में भी इसका भारी मात्रा में निर्यात होता है। इसकी कीमत स्थानीय बाजार भी काफी अधिक रहती है। हाल ही में प्रदेश सरकार ने औषधीय पौधों की खेती के लिए योजना भी बनाई है और इसके तहत भी अब इसकी मार्केटिंग होने लगी है। इस बार घाटी में मौसम अनुकूल नहीं रहा है और जंगलों में इसकी बेहतर पैदावार की ग्रामीणों की आस को झटका लगा है। वैज्ञानिकों के अनुसार गुच्छी नमी पर निर्भर रहती है और जिस साल अच्छी बारिश हो उस दौरान इसकी पैदावार भी बढ़ती है।