मोह को त्याग दो, मन खुद-ब-खुद हो जाएगा पावन

ज्वार में शिवमहापुराण कथा के पाचंवें दिन में कथावाचक अतुल कृष्ण महाराज ने किया भक्तों को निहाल

स्टाफ रिपोर्टर-अंब
अनासक्त होकर कर्म करते रहना सुखी जीवन की पहली सीढ़ी है। आशक्ति में ही दुख छिपे हुए हैं। मोह के त्याग से अंत:करण की शुद्धि होती है। अज्ञान, मोह एवं आसक्ति लालटेन की कालिख की तरह चित्त को मलिन कर रहे हैं। जैसे जलती लालटेन के शीशे पर कालिमा छा जाने के कारण प्रकाश होते हुए भी बाहर नहीं आ पाता, पर उस गंदे शीशे को स्वच्छ कर देने से प्रकाश पूर्ववत फैल जाता है। इसी प्रकार आत्मज्योति के सदैव प्रदीप्त होते हुए भी मल, विक्षेप एवं आवरण के कारण हम वास्तविक लाभ से वंचित रह जाते हैं। उक्त अमृतवचन शिव महापुराण कथा के पंचम दिवस में अतुल कृष्ण महाराज ने कम्यूनिटी सेंटर, ज्वार में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारा भगवान से नित्य, शाश्वत एवं सनातन संबंध है। जबकि संसार के सारे संबंध मान्यताओं पर आधारित हैं। माने हुए संबंध एक दिन टूट जाएंगे पर प्रभु से हमारे संबंध सदैव एवं अटूट रहेंगे। अपने को कभी अकेला नहीं अनुभव करना चाहिए।

याद रखें ईश्वर सदैव आपके साथ है। श्रद्धा से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इसी से भगवान शिव भी संतुष्ट होते हैं। श्रद्धावान ही उत्तम ज्ञान से विभूषित होकर इस जगत में यशस्वी होता है। जिस घर में प्रतिदिन कथा-कीर्तन, संध्या-वंदन एवं संतों का आना-जाना लगा रहता है वह घर सचमुच वैकुंठ के ही समान है। इन तत्वों के अभाव वाले घर को श्मशान के समान ही समझना चाहिए। जिसमें विपरीत परिस्थितियों को सहने की क्षमता है वही अपने स्वभाव को भी जीत सकता है। हमें जीवन में अपनी कमियों को निरंतर दूर करते रहना चाहिए। कथा वाचक ने कहा कि क्या कोई भी व्यक्ति निश्चयपूर्वक यह कह सकता है कि वह इतने वर्ष तक जीवित रहेगा। मृत्यु पर्यन्त उसको कोई रोग, शोक अथवा किसी प्रकार का अन्य कष्ट नहीं होगा। उनकी स्थिति उस कबूतर के सामान ही समझनी चाहिए जो बिल्ली को देखकर अपनी आंखें ही बंद कर लेता है। प्रभु की कथा सुनने से मन जितना पवित्र होता है, उतना अन्य साधनों से नहीं।