घनश्याम की बांस से बनी टोकरियों की भारी डिमांड

स्टाफ रिपोर्टर- मंडी
मंडी में बांस की बनी टोकरियां खूब डिमांड पर है। मंडी के सेरी मंच पर पंडोह के घनश्याम बांस की बनी टोकरियां बेच रहे हैं, जिनकी शहर में खूब डिमांड है। घनश्याम पिछले 20 वर्षों से यही कार्य कर रहे हैं। बता दें कि घनश्याम के परिवार की जिंदगी बांस की टोकरियों पर आज भी टिकी हुई है। बांस खरीद कर घनश्याम उनसे टोकरी, हाथ पंखा, करंडी, छड़, सूप और शादी के कई सामान बनाकर जीविकोपार्जन कर रहे हैं। वहीं इस कार्य में उनका परिवार और उनका बेटा भी उनका सहयोग करता है। जहां अन्य परिवारों के बच्चें इस परंपरागत पेशे से दूर हो चले जा रहे हैं वहीं घनश्याम और उनका बेटा अपने पुश्तैनी पेशे को आगे बढ़ाते हुई यही काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह कार्य वह कई पुर्खों से करते आ रहे हैं। अब उनके बाद उनका बेटा इस काम को संभाल रहा है। घनश्याम ने बताया कि वह दामों पर बांस खरीद कर लाते हैं और घर में ही इन टोकरियों को बनाते हैं, जिन्हें बनाने में लगभग एक से दो घंटे लग जाते हैं।

उसके बाद वह बाजारों में इन्हें बेचने के लिए लाते हैं। घनश्याम ने बताया कि आकर के आधार पर इन सभी टोकरियों की अलग अलग कीमतें हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास 100 रूपए से लेकर 1000 रुपए तक की टोकरियां है। इसके अलावा अन्य चीजों को भी वे बनाते हैं और बाजारों में बेचने के लिए लाते हैं । उन्होंने बताया कि पहले ग्रामीण घर में अनाज और अन्य सामग्री रखने के लिए बांस से बने बड़े बर्तनों में रखते थे, जिन्हें पहाड़ी भाषा में पेडु भी कहा जाता है। ऐसा बहा जाता है कि बांस से बने इन बर्तनों में आनाज खराब नहीं होता है। पर अब स्टील और प्लास्टिक के बने सामान धीरे धीरे बांस के बने सामान का जगह लेते जा रहा है। घनश्याम ने बताया कि बांस या अन्य लकड़ी से बने बर्तन प्लास्टिक व स्टील के बर्तन के मुकाबले अधिक लाभकारी होते हैं। पहले के जमाने में इन्हीं बर्तनों का उपयोग किया जाता था।

नहीं मिल पा रहे बाजिव दाम
घनश्याम कहते है कि इन टोकरियों की बाजार में डिमांड तो बहुत ज्यादा है परंतु उन्हेें उनके काम का बाजिव दाम नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि वह बांस की लकड़ी खरीदकर लाते हैं। उसके बाद उस बांस की लकड़ी पर दो या तीन दिन मेहनत करनी पड़ती है। बाद में इन टोकरियों और अन्य सामग्री की बुनाई शुरू होती है। कड़ी मेहनत करने के बाद भी उनकी टोकरी सौ से तीन सौ रुपयों में बिक पाती है। यह पैसे देने में भी ग्राहक आनाकानी करते हैं। जबकि प्लास्टिक और स्टील की वस्तुएं मंहगी होने के बावजूद भी लोग चाव से खरीदते हैं।