नगरी में बंदरों के आतंक से लोग परेशान

नसबंदी केंद्र पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी नहीं मिल रहा लाभ, नकदी फसलों और स्लेटपोश घरों को आए दिन पहुंचा रहे नुकसान

निजी संवाददाता-गोपालपुर

नगरी, कलूंड, चचियां व आसपास के क्षेत्रों में बंदरों ने जीना दुश्वार कर दिया है। सुबह लोगों की सैर का समय हो, बच्चों के स्कूल जाने आने का समय हो जब देखो बंदर सडक़ चौराहों पर नजर आते हैं। जब सुबह की सैर के लिए निकलो या स्कूल जाने के लिए अपनी सुरक्षा के लिए डंडा आपको अपने साथ रखना ही होगा अन्यथा खूंखार बंदर कभी भी हमला कर सकते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब से बानर नसबंदी केंद्र गोपालपुर में खुला है तब बंदरों ने जीना मुश्किल कर दिया है इससे पहले इन क्षेत्रों में बंदर नहीं होते थे। नसबंदी केंद्रों पर लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी बंदरों को सडक़ पर देखा जा सकता है। बंदरों की जनसंख्या पर नियंत्रण न होना किसानों के लिए आफत बना हुआ है।

एक तरफ बंदर नकदी फसलों को नुक्सान पहुंचाते हैं तो दूसरी तरफ स्लेटपोश घरों पर जंप करके स्लेटों को तहस-नहस कर देते हैं। लोगों ने बताया कि हर महीने घर की छत की मरम्मत करने के लिए मिस्त्री को बुलाना पड़ता है इस कारण आर्थिक व मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। पूर्व भाजपा सरकार के समय भी स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों ने पूर्व वन मंत्री राकेश पठानिया को बंदरों की समस्या से संबंधित प्रस्ताव सौंपे थे लेकिन कोई भी उचित कार्रवाई नहीं हुई तथा समस्या जस की तस बनी रही। सरकारों द्वारा बंदरों की समस्या से संबंधित कई प्रकार को योजनाएं तो बनाई गई लेकिन योजनाएं फाइलों में ही दफन हो गई। धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा। कभी जंगलों में फलदार पौधे लगाने के दावे किए गए ताकि बंदर रिहायशी इलाकों को छोडक़र जंगलों के अंदर चले जाएं तथा लोगों को राहत मिले लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।