कब तक हादसों का शिकार होते रहेंगे निर्दोष
जैसे-जैसे शहर गरम हो रहे हैं, एसी से आग लगने के हादसों में तेजी आ रही है। ऐसा ओवरलोडिंग की वजह से हो रहा है, क्योंकि हर घर में एसी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके चलते 33 किलोवाट के पावर स्टेशन के ट्रांसफॉर्मरों में भी आग लगने के आसार बढ़ जाते हैं…
राजनीतिक दल समस्या के जड़मूल से समाधान करने के बजाय कैसे घडिय़ाली आंसू बहाते हैं, इसका उदाहरण दिल्ली के अस्पताल में और राजकोट के गेम जोन में हुई भीषण अग्नि दुर्घटनाएं हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब इस तरह के हादसों ने देश को झकझोर कर रख दिया हो। ये हादसे बताते हैं कि सरकारी तंत्र में किस हद तक भ्रष्टाचार और लापरवाही की जंग लग चुकी है। कानूनों में परिवर्तन के बावजूद ऐसी व्यवस्था नहीं की गई कि हादसे से पहले कानून का उल्लंघन करने से संभावित हादसों के लिए जिम्मेदारी तय की जा सके। इसके विपरीत सरकारें नए हादसों का इंतजार करती रहती हैं। ऐसे हादसे अपितु तो चुनावी मुद्दे बनते नहीं हैं, फिर भी कोई राजनीतिक दल इसका जिक्र करता है तो विपक्षी दल उसके शासन के दौरान हुए हादसों की फेहरिस्त थमा देता है। इससे जाहिर है कि राजनीतिक दलों की प्राथमिकता हादसे घटाने के लिए इंतजाम करने में नहीं है, बल्कि विरोधी दलों की असफलता गिनाने में है। दिल्ली के विवेक विहार स्थित न्यू बॉर्न बेबी केयर सेंटर में आग लगने से सात बच्चों की मौत हुई थी। वहीं, शाहदरा में एक चार मंजिला इमारत में लगी आग की घटना में तीन लोगों की मौत हुई थी। पुलिस के मुताबिक सुविधा में कोई अग्निशामक यंत्र या आपातकालीन निकास नहीं था। दुर्घटना के समय जो डॉक्टर ड्यूटी पर था, वह नवजात प्रोत्साहन देखभाल की आवश्यकता वाले नवजात शिशुओं का इलाज करने के लिए योग्य नहीं था। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय या डीजीएचएस द्वारा अस्पताल को जारी किया गया लाइसेंस दुर्घटना से लगभग दो महीने पहले ही 31 मार्च को समाप्त हो चुका था। इस अग्निकांड में अस्पताल के मालिक डॉ. नवीन खिची को कल गिरफ्तार कर लिया गया।
आग लगने के समय ड्यूटी पर मौजूद एक अन्य डॉक्टर को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसी तरह गुजरात के राजकोट में एक गेम जोन में आग लगने की घटना में 12 बच्चों समेत कुल 27 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव और न्यायमूर्ति देवन देसाई की पीठ ने इस हादसे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा कि इस तरह के गेम जोन जरूरी मंजूरी लिए बिना बनाए गए हैं। साथ ही हादसे को लेकर कहा कि यह प्रथम दृष्टया मानव निर्मित आपदा है। इससे पहले भी ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति अलग-अलग स्थानों पर होती रही है। 30 अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोरबी ब्रिज त्रासदी में 135 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से ज्यादातर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग थे। 137 साल पुराना सस्पेंशन ब्रिज मरम्मत के बाद पांच दिन पहले ही फिर से खुला था। मोरबी पुल की मरम्मत में जिन सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया था, उनकी गुणवत्ता घटिया थी। इस वजह से पुल की संरचना ही कमजोर बनी। 143 वर्ष पुराने इस पुल का किसी ने कभी संरचनात्मक ऑडिट तक भी नहीं किया था। इस सस्पेंशन ब्रिज के कई केबलों पर जंग लग चुका था, जिस वजह से उनकी भार उठाने की क्षमता पहले के मुकाबले कम हो गई थी। पुल को देखने आए लोगों को किसी आपात स्थिति में बचाने के लिए यहां कोई इंतजाम पहले से नहीं था। इस ब्रिज की मरम्मत को लेकर भी कंपनी के पास कोई कागजात नहीं थे। कंपनी को पुल के मरम्मत का काम दिसंबर तक करने का समय दिया गया था, लेकिन उसने इसे जल्दी खोल दिया। मोरबी पुल हादसे से पहले गुजरात के सूरत के सरथाना इलाके में एक कोचिंग सेंटर में आग लगने से कम से कम 22 छात्रों की मौत और कई अन्य घायल हो गए थे। यह कोचिंग सेंटर तक्षशिला कॉम्प्लेक्स की तीसरी और चौथी मंजिल पर स्थित था। इस कोचिंग सेंटर में ज्यादातर किशोर थे। सभी छात्रों की मौत दम घुटने या कॉम्प्लेक्स से कूदने के कारण हुई।
अग्नि या दूसरी दुर्घटनाओं के प्रति सरकारों की गैर जिम्मेदारी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की राजधानी दिल्ली में इस साल अब तक आग से 55 लोगों की मौत हो गई और 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। वर्ष 2023 में इसी अवधि के दौरान 36 लोगों की जान गई थी। देश में पांच साल में 50 हजार से ज्यादा लोग जिंदा जल गए। वर्ष 2021 में आगजनी की 8491 घटनाएं दर्ज हुई हैं। नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो के मुताबिक 2017 से लेकर 2021 तक पांच साल में आग लगने की 55 हजार 353 घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें 54 हजार 280 लोगों की मौत हो गई। सबसे ज्यादा 4348 आगजनी की घटनाएं रिहायशी इलाकों और इमारतों में हुईं। इसके बाद कॉमर्शियल इमारतों में 274, गाडिय़ों में 241 घटनाएं हुईं। राहत की बात है कि साल दर साल आग लगने की घटनाओं और मृतकों की संख्या में गिरावट हो रही है। इसी साल आग लगने की कुल घटनाओं में से कम से कम चार घटनाएं ऐसी थीं, जो अस्पतालों में हुई थीं। दिल्ली, मुंबई, जबलपुर और हैदराबाद के अस्पतालों में हुए इन हादसों में नौ लोगों की जान गई थी। इनमें से आठ लोगों की जान जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशियलिटी हास्पिटल में हुए हादसे में गई थी। पिछले साल जून में प्रकाशित रिपोर्ट जर्नल ऑफ फेल्योर एनालिसिस एंड प्रेवेंशन के मुताबिक इस हादसे और मौतों के पीछे की मुख्य वजह यह थी कि अस्पताल में इमरजेंसी की हालत में बाहर निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता बनाया गया था और वह भी पर्याप्त यानी 3.6 मीटर चौड़ा नहीं था, जो फायर सर्विस की गाडिय़ों के आने-जाने के लिए उपयुक्त होता। इसी रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 में झारखंड के धनबाद में आरसी हाजरा मेमोरियल अस्पताल में शार्ट सर्किट की वजह से आग लगने की एक बड़ी घटना में पांच लोगों की मौत हो गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, इसी साल गुजरात के अहमदाबाद में हनी चिल्ड्रंस हास्पिटल में आग लगने के हादसे में एक व्यक्ति की जान चली गई थी। देश के उत्तर-पश्चिमी और केंद्रीय हिस्सों में बसे शहरों में नीतिगत विसंगतियों और अनियंत्रित शहरीकरण के चलते आग लगने की घटनाएं असामान्य नहीं हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में बिल्डिंगों में आग की घटनाओं की मुख्य वजह रिकॉर्डतोड़ गरमी है। बहुत तेज गरमी एयर कंडीशनर यानी एसी के सिस्टम पर प्रतिकूल असर डालती है। पिछले दो-तीन दिनों में एसी के कम्प्रेशरों में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं। ये उसके बहुत तेज गरम होने और ओवरलोड होने के चलते हुईं। दिल्ली में बिजली की मांग 8300 मेगावाट तक पहुंच गई है, जो कि इस क्षेत्र के इतिहास में सर्वाधिक है। विशेषज्ञों के मुताबिक जब बिजली की मांग ज्यादा होती है, तो उसी हिसाब से ओवरलोडिंग बढ़ती है, जिसके चलते कुछ ट्रांसफॉर्मरों में आग लग जाती है।
मुख्य व्यावसायिक शहरों और उसके खास इलाकों में आम तौर पर भीड़ के कारण तापमान ज्यादा होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन इलाकों के लगभग हर घर और दुकान में एसी का इस्तेमाल किया जाता है। इसका असर न केवल बिजली का लोड बढऩे पर पड़ता है, बल्कि वातावरण में गरमी बढऩे पर इससे कई बार एसी के कम्प्रेशर फट भी जाते हैं, जिससे इमारतों में आग लग जाती है। जैसे-जैसे शहर गरम हो रहे हैं, एसी से आग लगने के हादसों में तेजी आ रही है। ऐसा ओवरलोडिंग की वजह से हो रहा है, क्योंकि हर घर में एसी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके चलते 33 किलोवाट के पावर स्टेशन के ट्रांसफॉर्मरों में भी आग लगने के आसार बढ़ जाते हैं। ग्लोबल डिजीज बर्डन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में अग्नि दुर्घटना में होने वाली हर पांचवीं मौत भारत में होती है। इनमें पांच साल से छोटे बच्चे और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग ज्यादातर अग्नि दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। सवाल यह है कि ऐसी दुर्घटनाओं पर लगाम क्यों नहीं लगाई जा सकती?
योगेंद्र योगी
स्वतंत्र लेखक
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