दिव्य हिमाचल डेस्क
यह तस्वीर किसी कबाड़ खाने या स्टोर की नहीं, बल्कि यह है धर्मशाला का सचिवालय भवन, जहां से चलनी चाहिए सरकार, वहां नजर आ रहा कबाड़। सचिवालय का यह भवन अपनी बदहाली पर बहा रहा है आंसू। पूरी सरकार तो दूर, कांगड़ा के मंत्री भी नहीं आते यहां नजर… जिला कांगड़ा प्रदेश की 15 विधानसभा सीटों के साथ प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है, जो कांगड़ा को भेद जाता है वो सत्ता में राज करता है। यह आपने सुना ही होगा, इसलिए सरकारें कोई भी क्यों न रही हों। कांगड़ा के लिए बड़े बड़े वादे दावे किए जाते रहे हैं।
कोई कांगड़ा को पर्यटन राजधानी बनाना चाहता है, किसी ने प्रदेश की दूसरी राजधानी का दर्जा दे रखा है, तो किसी ने यहीं से सरकार चलाने का दावा तक भी किया, मगर जमीनी हकीकत क्या है, ये तो कांगड़ा के लोगों से जरा जाकर पूछा जाए, तो पता चलेगा कि सबसे बड़े जिला के लोगों को अपने हर छोटे बड़े काम के लिए शिमला की सडक़ें नापनी ही पड़ती हैं, क्योंकि कांगड़ा घाटी शायद नेताओं को भाती नहीं है। यहां के लोगों को शिमला न जाना पड़े, शायद इसीलिए यहां सचिवालय बनाया गया था, मगर आज अगर आप इसकी स्थिती देख रहे होंगे तो सवाल आपके जहन में भी आ रहा होगा। करोड़ों की इमारत क्या कबाड़ रखने के लिए बनाई गई थी। दिव्य हिमाचल टीवी के संवाददाता विनोद कुमार जब इस इमारत की खोज खबर लेने गए तो जो मंजर दिखा, वो इस बात की गवाही दे रहा है यहां सरकार को कोई लेना -देना नहीं हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिर प्रदेश की दूसरी राजधानी धर्मशाला के सचिवालय भवन को कबाड़ बनाने का जिम्मेदार कौन है।
हालत तस्वीरों में आप देख ही रहें हैं कि भवन अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आपकों बता दें कि वर्ष 1999 में तत्तकालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पहले लघु सचिवालय का शिलान्यास किया, जबकि वर्ष 2002 में मिनी सचिवालय धर्मशाला का उद्घाटन किया। वहीं कांग्रेस सरकार से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सचिवालय व दूसरी राजधानी का दर्जा धर्मशाला को दिया था, मगर वो भी फाइलों में ही दफन होकर रह गया,.. उसके बाद कई सरकारे आई कई सरकारें गई.. मगर बावजूद इसके मुख्यमंत्री संग कैबिनेट मंत्री गिनती के दिन ही धर्मशाला सचिवालय में बैठे हैं।
बताया जाता है कि पूर्व जयराम सरकार के समय भी ये भवन ज्यादातर समय वीरान ही रहा..हां इतना जरूर है कि कभी कबार कांगड़ा के मंत्री उस वक्त नजर आ जाते थे, रंग रोगन भी होता था.,. मगर अंदर की तस्वीर क्या है ये तो आप देख ही रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि जिस भवन में वीरभद्र सरकार के समय रौनक अक्सर देखी जाती थी, वहां पर वर्तमान सरकार तो यहां कभी पूरी नजर ही नहीं आई है। बस बढ़ोतरी हुई है तो साल दर साल यहां रखे कबाड़ में। सचिवालय भवन धर्मशाला में मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री के कार्यालय भी मौजूद हैं, जो कि सफेद हाथी बनकर खड़े हैं। मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के कमरे तो बने हुए हैं, बकायदा नेम प्लेट भी लगी है, लेकिन वहां पर कोई भी बैठता हुआ नजर नहीं आता है। हिमाचल सरकार तो दूर ऐसा लगता है कि कांगड़ा के मंत्रियों को भी सचिवालय भवन नहीं भाता है, क्योंकि उन्हें भी कभी यहां देखा ही नहीं गया, जिसके चलते पूरा भवन सुनसान ही नजर आता है, सचिवालय के एक तरफ को ठूंस-ठूंस भरे कवाड़ से स्टोर ही बना दिया गया है।