विपक्ष की गारंटियों के बावजूद एनडीए को बहुमत
आत्मनिर्भर भारत नीति के तहत देश में विनिर्माण उत्पादन बढ़ाने के प्रयास भी फलीभूत हो रहे हैं, लेकिन इस दिशा में और अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी, ताकि भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन सके। देश में बढ़ती आबादी के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करने होंगे। यह सही है, पारंपरिक रोजगार प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन तकनीक के साथ तालमेल बने…
2024 का आम चुनाव बेहद दिलचस्प रहा है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी स्वयं की अपेक्षा से कम सीटें पाने में सफल रही, लेकिन एनडीए को सरकार बनाने का जनादेश जरूर मिला है। एक तरफ नरेंद्र मोदी की अगुआई वाला एनडीए पिछले दस सालों के अपने काम और प्रदर्शन पर वोट मांग रहा था, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों का इंडी गठबंधन मोदी सरकार के दौरान महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को लेकर मतदाताओं के बीच जा रहा था। एक तरफ नरेंद्र मोदी ‘जीवन को आसान बनाने’ की गारंटी और अपनी नीतियों के साथ लोगों तक पहुंच रहे थे, जिसमें गरीबों के लिए आवास, अगले 5 सालों तक गरीबों को मुफ्त राशन, गरीबों के साथ-साथ 70 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत मुफ्त इलाज, किसान सम्मान निधि और दूसरी कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखना शामिल था। लेकिन कांग्रेस जो कि इंडी गठबंधन की मुख्य पार्टी थी, वह पिछले चुनावों की तरह ही, हर गरीब परिवार को एक लाख रुपए की राशि, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी, जाति आधारित सर्वेक्षण करके धन का पुनर्वितरण (जनसंख्या के अनुसार) आदि की गारंटी के साथ चुनावी मैदान में थी। इंडी गठबंधन में शामिल अन्य क्षेत्रीय दल भी मुफ्त योजनाओं का लालच देकर जनता को लुभा रहे थे। लेकिन ऐसा लगता है कि मतदाताओं ने मुफ्त योजनाओं के लिए वोट नहीं दिया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को जीत दिलाई। यह साबित करता है कि भारत की जनता ने नरेंद्र मोदी के दस साल के कार्यकाल के दौरान अपनाई गई नीतियों का समर्थन करके एनडीए को विजयी बनाया है, हालांकि उस भारी बहुमत के साथ नहीं, जिसका दावा सत्तारूढ़ गठबंधन कर रहा था, खासकर तीन बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में।
लाभार्थियों का समर्थन
हम देखते हैं कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गरीबों के लिए बड़ी संख्या में कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गईं, जिनके लाभार्थियों ने स्वाभाविक रूप से नरेंद्र मोदी का समर्थन किया है। लाभार्थियों की बात करें तो 4 करोड़ गरीब परिवारों के लिए पक्के मकानों का निर्माण नरेंद्र मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। गौरतलब है कि जो गरीब परिवार पहले कच्चे या अर्ध-कच्चे मकानों में रहते थे, उनके लिए पिछले कुछ सालों में करीब 3 करोड़ ग्रामीण और एक करोड़ शहरी मकान बनाए गए। अगर पांच लोगों के परिवार को माना जाए तो करीब 20 करोड़ लोग इस योजना के लाभार्थी रहे हैं। समझा जा सकता है कि इस योजना ने उन गरीब परिवारों की कुशलता और जीवन स्तर में बड़ा बदलाव लाया है। स्वाभाविक रूप से एनडीए को इन लाभार्थियों का समर्थन मिला है। इसके साथ ही गरीबी के कारण एलपीजी कनेक्शन से वंचित 10 करोड़ महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत न सिर्फ धुएं से मुक्ति मिली है, बल्कि उनके जीवन स्तर में भी बड़ा बदलाव आया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन लाभार्थियों ने भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन का समर्थन किया है। वैसे तो महिला स्वाभिमान के प्रतीक शौचालयों के निर्माण को सामाजिक क्रांति माना जा सकता है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि इस योजना के कारण खुले में शौच से मुक्त हुई महिलाओं का समर्थन भी मौजूदा सरकार चला रही पार्टियों को मिला होगा। लगभग पूरे देश को नल से जल और शत-प्रतिशत बिजली कनेक्शन उपलब्ध कराना किसी क्रांति से कम नहीं माना जा सकता। करीब 80 करोड़ आबादी को मुफ्त राशन और किसानों को 6 हजार रुपए प्रति वर्ष की राशि जारी रखने की गारंटी भी एक लोकप्रिय कदम माना जा रहा है। समझना होगा कि किसान सम्मान निधि को छोडक़र, जिसका असर करीब 75000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष सरकारी खर्च पर पड़ता है, नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही कोई भी अन्य योजना नकद वितरण वाली नहीं थी।
कांग्रेस की नकद वितरण योजना उसे वोट नहीं दिला पाई
इससे पहले भी कांग्रेस ने किसानों के 70000 करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए थे और 2024 में भी इसी तरह की घोषणा की गई थी। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने चुनाव जीतने के बाद हर गरीब परिवार को सालाना 72000 रुपए देने का वादा किया था और तब भी कांग्रेस को लोकसभा में सिर्फ 52 सीटें ही मिलीं। यानी तब भी लोगों ने कांग्रेस की नकद वितरण योजना को नकार दिया था। इस बार कांग्रेस ने चुनाव के दौरान हर गरीब परिवार को सालाना एक लाख रुपए देने का वादा किया था और इसका खूब प्रचार भी किया था। हालांकि, कांग्रेस के इस वादे के क्रियान्वयन को लेकर लोगों में काफी संदेह था और कांग्रेस की सीटें 52 से बढक़र, सरकार में शामिल होने के लिए जादुई संख्या से काफी कम 100 से कुछ कम ही रहीं। एक तरफ जनता द्वारा नकद वितरण योजना को नकारना और दूसरी तरफ मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही सामाजिक कल्याण योजनाओं पर दिखाया जा रहा भरोसा, देश के मतदाताओं और लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है।
नई सरकार की क्या होंगी प्राथमिकताएं?
देश ने 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प लिया है। यह सच है कि पिछले 10 सालों में भारत की जीडीपी 2 ट्रिलियन डॉलर से बढक़र लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर हो गई है और देश दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से आगे बढक़र 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन यह भी सच है कि हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच असमानता अभी भी बनी हुई है। हालांकि, अत्यधिक गरीबी में काफी कमी आई है, लेकिन मोदी सरकार के पहले नौ वर्षों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के बावजूद बहुआयामी गरीबी से पीडि़त लोगों की संख्या वर्ष 2023 तक 12 करोड़ बनी हुई थी। यह सही है कि राजकोषीय सूझबूझ के कारण सरकार का पूंजी निवेश बढ़ रहा है, देश में बड़ी मात्रा में बुनियादी ढांचे का निर्माण हो रहा है, जिससे देश में लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने और आम लोगों के जीवन को आसान बनाने में सफलता मिल रही है। दूसरी ओर, तकनीक का उपयोग करके ऑनलाइन लेन-देन दुनिया में कहीं और की तुलना में भारत में कहीं अधिक हो रहा है, सरकार अधिक से अधिक पेटेंट देने में भी सफल रही है, और अंतत: वर्ष 2014 में केवल 4227 पेटेंट की तुलना में वर्ष 2024 में 1.03 लाख पेटेंट दिए गए, जो देश में नवाचार में विकास को दर्शाता है।
हालांकि, उत्पादों के निर्माण में हमारी निर्भरता अभी भी विदेशों पर बनी हुई है। आत्मनिर्भर भारत नीति के तहत देश में विनिर्माण उत्पादन बढ़ाने के प्रयास भी फलीभूत हो रहे हैं, लेकिन इस दिशा में और अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी, ताकि भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन सके। देश में बढ़ती आबादी के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करने होंगे। यह सही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), ऑटोमेशन और रोबोटिक्स के कारण पारंपरिक रोजगार प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन तकनीक के साथ तालमेल बनाए रखना भी जरूरी होगा। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मशीनों और एआई का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में कम हो, जहां श्रम का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। साथ ही, ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा देने और कृषि तथा उससे जुड़ी गतिविधियों को विकसित करके ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास करने होंगे। सरकार को खाली पड़े पदों पर भर्ती भी करनी चाहिए।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
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