महात्मा गांधी को न जानने वाले
जहां तक इस आरोप का सवाल है कि पुरानी सरकारों ने गांधी जी को विदेशों में लोकप्रिय बनाने के लिए कुछ नहीं किया, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एटनबरो की फिल्म में भी भारत सरकार ने नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन के जरिए एक बड़ी राशि निवेशित की थी। एटनबरो की फिल्म को अन्यों के अतिरिक्त नेहरु को भी समर्पित किया गया है…
पिछले दशक में कई ऐसी बेतुकी, आधारहीन और फूहड़ बातें उछाली जाती रही हैं, ताकि राजनीतिक, सामाजिक गलियारों में बेवजह की हलचल पैदा होती रहे और असली सवाल अनदेखे ही रह जाएं। एटनबरो की ऑस्कर पुरस्कार से नवाजी गई फिल्म ‘गांधी’ के पहले गांधी से अनजान दुनिया की बात इन्हीं में से एक है। इस आलेख में इसी विषय को खंगालने की कोशिश करेंगे। एबीपी चैनल को 29 मई 2024 को दिए अपने एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘क्या पिछले 75 सालों में हमारी यह जिम्मेदारी नहीं थी कि हम सारी दुनिया को महात्मा गांधी से परिचित करवाते? माफ कीजिए, मगर गांधी जी को कोई नहीं जानता था जब तक कि 1982 में उन पर बनी फिल्म रिलीज नहीं हुई थी।’ अत्यंत लंबे चुनाव अभियान के अंतिम दौर में यह वक्तव्य दिए जाने के पीछे के उद्देश्य का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की दुर्दशा, पेपर लीक, अग्निवीर योजना जैसे मुद्दों को लेकर उनके दस साल के शासनकाल की आलोचना बढ़ती जा रही थी। इन महत्वपूर्ण मुद्दों से लोगों का ध्यान कैसे हटाया जाए, यह उनकी चिंता का मुख्य विषय था। महात्मा गांधी को लेकर इस तरह की बात कहने का उद्देश्य लोगों का ध्यान इन महत्वपूर्ण मुद्दों से हटाने के साथ-साथ यह भी था कि नेहरू और कांग्रेस सरकारों को दुनिया को गांधी जी के बारे में न बताने के लिए कटघरे में खड़ा किया जा सके। इससे नेहरू और कांग्रेस सरकारें तो कटघरे में नहीं खड़ी होतीं, उल्टे पता चलता है कि गांधीजी के जीवन और उनके कार्यों, दुनिया में उनकी प्रतिष्ठा और उनके दुनिया के कई महान लोगों के प्रेरणास्त्रोत होने के बारे में मोदी कुछ नहीं जानते। इससे विश्व राजनीति पर 1930 के दशक से ही गांधीजी के असर के बारे में मोदी की अज्ञानता पता लगती है। गांधीजी को दुनिया रिचर्ड एटनबेरो द्वारा लुई फिशर की गांधीजी की जीवनी पर आधारित फिल्म बनाए जाने के बहुत पहले जानती और मानती थी।
दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष की वजह से गांधीजी रंगभेद विरोधी प्रमुख नेता के रूप में उभर चुके थे। गांधीजी के भारत वापस लौटने और किसानों के चंपारण आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद उनके मित्र चाल्र्स एन्ड्रयूज ने चंपारण सत्याग्रह की अनूठी प्रकृति की बात सारी दुनिया में प्रचारित की थी। सत्य और अहिंसा पर आधारित उनके सत्याग्रह से कमजोरों और शोषितों की समस्याओं की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट हुआ था। बाद में उनके द्वारा छेड़े गए अन्य आंदोलनों : ‘सविनय अवज्ञा’ एवं ‘दांडी मार्च’ को वैश्विक मीडिया में काफी कवरेज मिला था। दुनिया में उनकी पहचान कायम होने से समाज की समस्याओं से साधारण जन को जुडऩे और न्याय के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिली थी। उनके कार्यों की खबरें बिजली की तेजी से सारी दुनिया में फैले। जहां एक ओर भारत में अंग्रेजों का दमन बढ़ता गया, वहीं शांति, न्याय एवं अहिंसा जैसे मूल्यों का सम्मान करने वाले लोगों का ध्यान मानवतावाद के सिद्धांतों के सन्दर्भ में वैश्विक स्तर पर गांधीजी के योगदान की ओर गया। शायद मोदी उस काल में गांधीजी के योगदान और दुनिया में उनके अत्यंत लोकप्रिय होने के बारे में न जानते हों, लेकिन उन्हें यह जरूर जानना चाहिए कि अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द बर्लिंगटन हॉक आई’ ने रविवार, 20 सितंबर 1931 के अंक में पूरे एक पृष्ठ में उन पर सामग्री प्रकाशित की थी जिसमें उन्हें विश्व का सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति बताया गया था। प्रतिष्ठित अमरीकी पत्रिका टाइम ने उनकी तस्वीर अपने मुखपृष्ठ पर प्रकाशित की थी और उन्हें सन् 1931 का मैन ऑफ दि ईयर घोषित किया था। दो अन्य अवसरों पर उनकी तस्वीर इस प्रसिद्ध पत्रिका के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित की गई।
इसी तरह टाइम की सहयोगी पत्रिका लाइफ ने भी गांधीजी पर केन्द्रित परिशिष्ट प्रकाशित किया था। दुनिया भर में अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से न्याय और शांति के लिए प्रयासरत लोग गांधीजी की ओर आकृष्ट हुए थे। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आईंस्टाइन ने 1939 में लिखा, ‘मेरा मानना है कि गांधीजी के विचार हमारे दौर के सभी राजनीतिज्ञों में सबसे अधिक प्रबुद्ध थे। हमें उनकी भावना के अनुसार काम करने का प्रयास करना चाहिए, अपने उद्देश्य के लिए लड़ाई में हिंसा का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि जिस चीज को आप बुरा मानते हैं उसमें भाग नहीं लेना चाहिए।’ आइंस्टीन ने गांधीजी के बारे में लिखा, ‘आने वाली पीढिय़ां शायद ही यह विश्वास करेंगी कि रक्त और मज्जा का बना कोई ऐसा आदमी इस धरती पर रहा होगा।’ चार्ली चैपलिन भी गांधीजी के आन्दोलन से प्रेरित थे। वे गांधीजी से मिले और गांधीजी के मूल्यों का प्रतिबिम्ब चार्ली चैपलिन की फिल्मों मॉडर्न टाइम्स और दि ग्रेट डिक्टेटर में दिखाई देता है। दि ग्रेट डिक्टेटर में वे गांधीजी और हिटलर के बीच विरोधाभास को दिखाते हैं। इसी तरह फ्रांसीसी नाटककार रोम्यां रोलां ने यंग इंडिया के फ्रेंच संस्करण में लिखा, ‘अगर ईसा मसीह शांति के राजकुमार थे, तो गांधी भी इस उपाधि के लिए कोई कम योग्य नहीं हैं।’ बीसवीं सदी के दो प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला गांधीजी के संघर्ष से प्रेरित और प्रभावित थे और उन्होंने अपने संघर्ष के मार्ग का निर्धारण उसी आधार पर किया था। सन 1959 में दि हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित अपने लेख में मार्टिन लूथर किंग ने लिखा, ‘मुझे बहुत शुरू में ही समझ आ गया था कि गांधी की अहिंसा की शिक्षा और ईसाई धर्म की प्रेम के शिक्षा का संश्लेषण ही नीग्रो लोगों के स्वतंत्रता और मानव गरिमा के लिए संघर्ष के सर्वश्रेष्ठ हथियार हैं।’ नेल्सन मंडेला के महान और लम्बे संघर्ष का आधार वे मूल्य थे जो उन्होंने गांधीजी के जीवन और उनकी शिक्षाओं से ग्रहण किए थे। उन्होंने महात्मा गांधी की इस बात के लिए सराहना की कि उनमें नैतिकता और सदाचार का संगम तो था ही, इसके साथ-साथ वे दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति भी थे और उन्होंने कभी भारत के दमनकर्ता ब्रिटिश साम्राज्य से समझौता नहीं किया।’ दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में गांधियन स्टडीज पाठ्यक्रम का हिस्सा है।
कई स्कूलों में गांधीजी की शिक्षाएं पढ़ाई जाती हैं। दुनिया के करीब 80 शहरों में गांधीजी के नाम पर सडक़ें और उनकी मूर्तियां हैं। जहां तक फिल्मों का सवाल है, हमारे अपने फिल्म्स डिवीजन ने गांधीजी पर डाक्यूमेंटरी बनाई थी जिसका निर्माण वि_लभाई झवेरी ने किया था। यह फिल्म एटनबरो की फिल्म से बहुत पहले बनी थी। एटनबरो ने यह फिल्म दो बार देखी थी और उन्होंने फिल्म के मुख्य पात्र बेन किंग्सले से कहा था कि गांधीजी के हावभाव और व्यवहार का तरीका समझने के लिए यह फिल्म देखें। जहां तक इस आरोप का सवाल है कि पुरानी सरकारों ने गांधीजी को विदेशों में लोकप्रिय बनाने के लिए कुछ नहीं किया तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एटनबरो की फिल्म में भी भारत सरकार ने नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन के जरिए एक बड़ी राशि निवेशित की थी। एटनबरो की फिल्म को अन्यों के अतिरिक्त नेहरु को भी समर्पित किया गया है। नेहरु ने एटनबरो को यह सलाह दी थी कि वे अपनी फिल्म में गांधीजी को देवता न बनाएं, बल्कि अपनी कमजोरियों के साथ एक मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करें। गांधीजी को लोग सिर्फ उन पर बनी फिल्मों के कारण नहीं जानते, बल्कि उन पर फिल्में इसलिए बनीं क्योंकि उन्हें दुनिया जानती थी। मोदी ने जो कुछ कहा, वह ध्यान हटाने के लिए कहा।
-(सप्रेस)
राम पुनियानी
स्वतंत्र लेखक
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