सुनील दत्त—जवाली
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है तथा इन्हीं देवस्थलों में भरमाड़ स्थित बाबा शिब्बो का मंदिर भी सुविख्यात है। शिब्बोथान गोगावीर का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो उनके भक्त शिब्बो के नाम पर है। इस मंदिर में जाहरवीर की पूजा बाबा शिब्बो के नाम से होती है। इस मंदिर में आने से जहरीले सांप व बिच्छू के काटे व जहरीले विकारों से मुक्ति मिलती है। बाबा शिब्बो का जन्म 1244 ई में सिद्धपुरघाड नामक स्थान पर हुआ। इनके दो भाई व एक छोटी बहन शिब्बा थी। बाबा शिब्बो बचपन से अपंग थे और सदा भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। इनकी बहन शिब्बा का रिश्ता नजदीक गांव में तय हुआ, लेकिन विवाह से पूर्व इनकी बहन के मंगतेर की अचानक मौत हो गई। तभी इनकी बहन शिब्बा सोलह श्रृंगार करके अपने पति के साथ सती हो गई।
आज भी सिद्धपुरघाड में माता शिब्बा देवी का मंदिर बना हुआ है। मगंल कार्य के उपरांत लोग कुल देवी के मंदिर में जाकर अपनी मन्नत चढ़ाते हैं। बहन के सती होने के उपरांत बाबा शिब्बो के मन में वैराग पैदा हो गया। बचपन से उन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान था। अव उनकी तपस्या का समय आ चुका था। उन्होंने रात के समय अपना घर त्याग कर भरमाड़ के घने जंगल में आ गए। उन्हें शिवलिंग आकार का शक्ति पुंज दिखाई दिया, जिसे देखकर बाबा वहीं तपस्या करने बैठ गए और अपने ईष्ट देव के ध्यान में लीन हो गए। शक्ति पुंज के पास बैठ कर बाबा शिब्बो ने कई साल तक तप किया। तपस्या का प्रभाव तीनों लोकों में फैल गया। बाबा शिब्बो की घोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गए। तभी भगवान शिव गोगावीर का रूप धारण कर मानव लीला करते हुए अपनी मंडली के साथ आकाश पर विचरण करने लगे।
एकदम उनका नील अश्व वाहन रूक गया। बार-बार प्रयत्न करने पर अश्व टस से मस नहीं हो रहा था। जब जाहरवीर ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि वामी के बीच से ओंम जाहरवीराय नम: की ध्वनि गुजयमान हो रही थी। उनका भक्त शिवलिंग के पास उनकी तपस्या में लीन है और भक्ति का प्रकाश पुंज उनके चारों ओर फैला हुआ है। सभी देवगण बड़े हर्षित हुए और पुष्प वर्षा करने लगे। अपने भक्त की मनोकामना की पूर्ति के लिए जाहरवीर अपनी देव मंडली सहित आकाश से धरती पर उतरे और बाबा शिब्बो को पुकारा। उन्होंने बाबा शिब्बो से तीन वरदान मांगने को कहा। जैसे ही बाबा शिब्बो ने जाहरवीर के चरणों को स्पर्श किया तो वह अपंगपन से मुक्त हो गए और 12 साल की आयु को प्राप्त हो गए। तब बाबा शिब्बो ने जाहरवीर से कहा कि आप मेरे साथ चारपासा खेलें, यह मेरी अभिलाषा है। तभी बाबा शिब्बो और जाहरवीर आपस में चारपासा खेलने लगे और भगवान शंकर निर्णायक बने। इस खेल में 12 वर्ष तक न भक्त हारा न भगवान हारा। तभी जाहरवीर ने नर लीला करते हुए बाबा शिब्बो को भूख से अति व्याकुल कर दिया।
बाबा शिब्बो ने जाहरवीर से आज्ञा मांगी और घर जाकर भोजन करके वापस आने की बात कही। जब बाबा शिब्बो घर में पंहुचे तो माता अपने पुत्र को देख कर पुलकित हो उठी और दुलार करने लगी। बाबा शिब्बो ने कहा कि माता मुझे भूख ने व्याकुल कर दिया है और मेरी भोजन करने की इच्छा है। जब माता बाबा शिब्बो को भोजन कराने लगी तो मातृ प्रेम के सागर में माता के प्रेम को देखकर बाबा शिब्बो सारा भोजन खा गए। जब माता को सुध आई तो चिंता करने लगी कि मैं तत्काल भोजन कैसे बनाउंगी। माता को चिंता के सागर में डूबे देखकर शिब्बो ने कहा कि माता आप चिंता छोड़ सभी बरतनों को साफ करके सफेद वस्त्र से ढांप दो। माता ने वैसे ही किया और पुन: सभी बर्तन यथावत हो गए। जब पिता जी घर को भोजन लेने के लिए जा रहे थेे और शिब्बो वापिस खेल स्थान को जा रहे थे तो रास्ते में पिता पुत्र का मिलन हुआ। रास्ते में पिता आलम देव ने बब्बा शिब्बो से कहा कि आसमान पर बादल हैं और फसल कटी हुई है, तुम जाकर लसोड़ की बेलें ले आओ। फसल को बांध कर एक स्थान पर सुरक्षित रख देगें। पिता की आज्ञा मानकर शिब्बो लसोड़ की बेलें जंगल से ले आए और खेत में रख दीं। बाबा के स्पर्श से सभी बेलें सर्पों में बदल गईं। माता-पिता दोनों को चमत्कार दिखाकर बाबा शिब्बो पुन: खेल स्थान पर आ गए। तभी जाहरवीर गोगा ने कहा कि-हे मेरे परम प्रिय भक्त शिब्बो अब मैं पूर्ण रूप से तेरी भक्ति के अधीन हूं जो चाहे वही वर मांग लो।
बाबा शिब्बो ने तीन वरदान मांगे
1. सर्वव्याधि विनाशनम अर्थात मेरे दरबार में आने वाले हर प्राणी जहर व व्याधि से मुक्त हों। जाहरवीर ने कहा कि तूने जगत कल्याण के लिए वरदान मांगा है तथा तेरे परिवार का कोई भी पुरूष अपने हाथ से तीन चरणमृत की चूली किसी भी प्राणी को पिलाएगा, तो वह जहर मुक्त हो जाएगा।
2. जो मेरे दरबार पर नहीं आ सकता उसका क्या उपचार होगा। जिस स्थान पर बैठ कर तूने मेरे साथ चारपासा खेला है उस स्थान की मिट्टी को पुजारियों द्वारा बताई गई विधिनुसार जो भी प्रयोग करेगा, वह भी देश-विदेश में जहर से मुक्त होगा।
3. मेरे दरबार पर आने वाले हर प्राणी की समस्त मनोकामना पूर्ण हो। यह स्थान तेरेे नाम सिद्ध बाबा शिब्बोथान के नाम से विख्यात होगा व मेरी पूजा तेरे नाम से होगी एवं तेरे दरबार में आने वाले हर प्राणी की हर मनोकामना पूर्ण होगी।
जाहरवीर ने कहा कि मैं अपने वरदानों की प्रमाणिकता के लिए तेरे दरवार में लगे बिल और बेरी के वृक्ष है इन्हें कांटों से मुक्त करता हूं। इन दोनों वृक्षों के दर्शन मात्र से संकटों से मुक्ति मिलेगी। अंत में जाहरवीर गोगा ने बाबा शिब्बो को अपना दिव्य विराट रूप दिखाया और इसी दिव्य रूप में इसी स्थान पर स्थिर हो गए। तदोपरांत बाबा शिब्बो जाहरवीर की शक्ति में समा गए। आज बाबा के वंशज बाबाजी की परंपरा के अनुसार इस स्थान की महिमा को यथावत रखे हुए हैं। श्रावण व भादमास के हर रविवार को बाबा का मेला लगता है। इन पावन दिनों में बाबाजी के आठ सदियों पुराने संगलों को मन्दिर के गर्भागृह में पूजा के लिए रखा जाता है। मन्दिर के गर्भगृह में श्री गुरू मछन्दर नाथ, गुरू गोरखनाथ, बाबा क्यालू, कालियावीर, अजियापाल, जाहरवीर मंडलीक, माता बाछला, नाहरसिंह, कामधेनू, बहन गोगडी, वासूकी नाग, बाबा शिब्बो, प्राचीन शिवलिंग, त्रिदेव की तीन पिंडिया उसके सामने सात शक्ति की प्रतीक पिंडियां व बाबा शिब्बोथान की पिंडी है। मंदिर के सामने बाबा का धूना व धूने के साथ बरदानी बेरी का वृक्ष है। मंदिर के महंत राम प्रकाश वत्स ने कहा कि 21 जुलाई से मेलों का शुभारंभ होगा।
भंगारे की प्रयोग विधि
प्रात:काल एवं सायंकाल शुद्ध पानी का लोटा लें, उसमें चुटकी भर भंगारा डाल दें। जिस मनोरथ के साथ प्रयोग करना है उसका सुमरण करो फिर तीन चूली चरणामृत व घर में जल का छिडक़ाव कर दो। जिस स्थान पर जहर का जख्म हो उस पर लेप कर दें।