लोकतंत्र में बंदूक संस्कृति

By: Jul 16th, 2024 12:06 am

अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप पर कातिलाना हमला किया गया। वह बाल-बाल बच गए। हमलावर को भी वहीं ढेर कर दिया गया। यह अमरीका ही नहीं, दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह किसी भी लोकतंत्र में हो सकता है। कोई भी अतिवाद या उग्रवाद ऐसे हमले के लिए उकसा सकता है। इस पर गहन चिंतन-मनन, आत्ममंथन किया जाना चाहिए। अमरीका लोकतंत्र की जननी है। उसका लोकतंत्र प्राचीनतम है, लेकिन वहां बंदूक भी गोली-बिस्कुट और मूंगफली की तरह उपलब्ध है। औसतन हर हाथ में बंदूक, रिवॉल्वर है। अमरीका आत्म-रक्षा की दलीलें देता रहा है, लेकिन लोकतंत्र के साथ-साथ बंदूक-संस्कृति भी जारी है, यह विरोधाभास कैसे ढोया जा रहा है? लोकतंत्र में यह हत्यारा विरोधाभास भी मौजूद रहेगा, जो आने वाले किसी भी पल में, किसी और को, निशाना बनाया जा सकता है! इस सांस्कृतिक, सामाजिक और बेचैन गिरावट और पतन का अमरीकी नेताओं, राजनीतिक दलों और नागरिकों को लगातार विरोध करना चाहिए। टं्रप पूर्व राष्ट्रपति तो हैं। उनकी सुरक्षा-व्यवस्था मौजूदा राष्ट्रपति जितनी ही होती है। रिपब्लिकन पार्टी ने उन्हें एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव का उम्मीदवार बनाया है। चुनाव इसी नवंबर में होंगे, लिहाजा अमरीका में चुनावी मौसम छाया है। इस घटना की जांच कर रही एफबीआई का मानना है कि यह टं्रप की हत्या करने का हमला था।

हमले को लेकर कई सवाल सुरक्षा पर उठाए जा रहे हैं। जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे, उन्हीं के आधार पर विश्लेषण किया जाना चाहिए, ऐसा हमारा मानना है। बहरहाल जिस 20 साल के नौजवान ने 120 मीटर से निशाना साध कर हमला किया, वह भी रिपब्लिकन पार्टी का सदस्य था और टं्रप को ‘गलत’ मानता था। लोकतंत्र में आम नागरिक वोट के जरिए अपना अभिमत प्रकट कर सकता है और यही उसका बुनियादी अधिकार है, लेकिन अमरीका में लोकतंत्र के साथ राजनीतिक हिंसा का भी संबंध रहा है। राजनीति के अलावा, सामाजिक, मानसिक और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण भी हिंसात्मक रहे हैं, नतीजतन स्कूलों, बाजारों, सभा-कक्षों अथवा किसी समारोह के दौरान भी गोलीबारी चलाई जाती रही है। मौतें होती रही हैं। लोग बुरी तरह जख्मी भी होते रहे हैं। हमलावर की प्रवृत्तियों को मनोवैज्ञानिक अस्थिरता के आवरण में छिपाया जाता रहा है।

अमरीका में पूर्व राष्ट्रपति को निशाना बनाया गया है, ऐसे हमले अभूतपूर्व नहीं हैं। अमरीका में चार पदासीन राष्ट्रपतियों-अब्राहम लिंकन, जेम्स गारफील्ड, विलियम मैककिनले, जॉन एफ. कैनेडी-की हत्या तक की जा चुकी है। पांच राष्ट्रपतियों-बिल क्लिंटन, रोनाल्ड रीगन, जेराल्ड फोर्ड, फ्रेंकलिन रुजवेल्ट, थियोडोर रुजवेल्ट-पर भी हमले किए जा चुके हैं। यह कैसा लोकतंत्र और ‘दुनिया का दादा’ देश है, जो दुनिया को लोकतंत्र और मानवाधिकारों के ज्ञान बांटता रहता है, लेकिन जहां ‘बंदूक-संस्कृति’ बिल्कुल सामान्य है। बंदूक बनाने वाले उद्योगपति इतने ताकतवर हैं कि न तो राष्ट्रपति बाइडेन कोई निर्णय ले पाए और न ही टं्रप और उनकी पार्टी की सोच बंदूक-विरोधी है। जनवरी 6, 2021 की चेतावनी अमरीका कैसे भूल सकता है, जब टं्रप-समर्थक भीड़ ने ‘यूएस कैपिटल’ ( यूएस कांग्रेस) पर हमला किया था और अंदर घुस गई थी। उस पर क्या कानूनी कार्रवाई की गई, आज तक स्पष्ट नहीं है। वह अमरीकी लोकतंत्र और संसद पर सबसे भीषण प्रहार था। लोकतंत्र में भीड़ इतनी हिंसात्मक कैसे हो गई, जबकि उसके मानवाधिकार सुरक्षित हैं? हाल ही में अमरीका में ‘राजनीतिक हिंसा’ पर एक जनमत किया गया। आश्चर्य है कि 10 फीसदी लोगों ने जवाब टं्रप के खिलाफ दिया कि ऐसे नेताओं को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए ऐसा ही बल इस्तेमाल करना न्यायसंगत है। यह भी लोकतंत्र का एक हिस्सा है, लेकिन हिंसा न हो। बहरहाल अमरीका में ही नहीं, दुनिया के देशों में लोकतंत्र को जिंदा रखना है, तो चुनाव प्रचार का तरीका भी सभ्य होना चाहिए।


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