पूजा का विधान
जब हमने अनावश्यक संग्रह का लालच छोड़ दिया और हममें सेवा का भाव आ गया तो हम परमात्मा के नजदीक हो गए। जब हमने परमात्मा पर विश्वास करना आरंभ किया और अपने विश्वास का विश्वास किया, तो हम परमात्मा के नजदीक हो गए। ‘सहज संन्यास मिशन’ में हम यही सीखते हैं कि सहज जीवन जियें, परमात्मा से प्रेम करें, और इस ब्रह्मांड के हर जड़-चेतन वस्तु और प्राणी को परमात्मा का स्वरूप जानकर प्रेममय हो जाएं तो हम घर में रहते हुए, परिवार में रहते हुए, समाज में रहते हुए, अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाते हुए भी संन्यासी ही हैं। निश्छल प्रेम, हर किसी से प्रेम, बिना कारण, बिना आशा के हर किसी से प्रेम…
परमात्मा को पाने के कई मार्ग हैं, हजारों-हजार मार्ग हैं, और सब सही हैं। कोई मार्ग गलत नहीं है, कोई मार्ग किसी से कमतर नहीं है। दुनिया भर के हजारों धर्म अपने-अपने तरीके से परमात्मा को पाने का मार्ग बताते हैं। मैं किस परिवार में पैदा हुआ, वह परिवार किस देश के किस राज्य के किस शहर में रहता है, उस देश, उस राज्य और उस शहर की परंपराएं कैसी हैं, परिवार की संस्कृति क्या है, इन सबका असर मेरी सोच पर पड़ेगा। मेरी शिक्षा-दीक्षा कहां हुई, मुझे कौनसे अध्यापक मिले, मेरी संगत कैसी थी, इन सबका भी असर मेरी सोच पर पड़ेगा और मैं वैसा ही विश्वास करने लगूंगा। उसी से यह तय होगा कि मैं परमात्मा में ही विश्वास करता हूं या नहीं करता, और यदि परमात्मा में विश्वास करता हूं तो परमात्मा को पाने के लिए कौनसा मार्ग चुनता हूं। यही कारण है कि मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि परमात्मा एक है, पर परमात्मा को पाने के रास्ते हजारों हैं और सभी सही हैं। श्रीमद्भगवद् गीता में ही भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग का जिक्र किया है। हम अपनी संस्कृति, अपनी आयु, अपने स्वास्थ्य, अपनी पसंद और अपनी सुविधा के मुताबिक कोई भी एक मार्ग चुन लें या सबके मिश्रण से परमात्मा को पाने की कोशिश करें, कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह अन्य देशों के अन्य धर्मों के मानने वाले लोग अपनी पसंद और सुविधा के मुताबिक कोई अन्य मार्ग चुनें, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
बहुत पहले मेरे पिता जी ने मुझे एक कथा सुनाई थी जिसमें जिक्र है कि इजरायल में जब यहूदियों पर अत्याचार बढ़ गए और उनका कत्लेआम होने लगा तो हसीदिक यहूदी धर्म के संस्थापक रहस्यवादी धर्मगुरू रब्बी इजरायल बेन एलिएजर जिन्हें बाल शेम तोव के नाम से भी जाना जाता है, ने जंगल में जाकर पवित्र अग्नि प्रज्वलित की और एक विशिष्ट प्रार्थना पढ़ी। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर परमात्मा ने चमत्कार किया और यहूदियों का कत्लेआम रुका। बाद में उनके प्रधान शिष्य मेजेरिच के डोर बेर बेन अब्राहम, जिन्हें मेजेरिच के मैगिड के नाम से भी जाना जाता है, ने उसी जंगल के उसी खास स्थान पर जाकर प्रार्थना करते हुए परमात्मा से निवेदन किया कि मुझे नहीं पता कि पवित्र अग्नि कैसे प्रज्वलित की जाती है, उसका विधि-विधान क्या है, पर मैं उसी विशिष्ट प्रार्थना के माध्यम से आपसे निवेदन करता हूं जो मेरे गुरुदेव ने आपको प्रसन्न करने के लिए पढ़ी थी, कि मेरे देश के निवासी कष्ट में हैं, कृपया उनके कष्ट का निवारण कीजिए। परमात्मा ने फिर से कृपा की, फिर से चमत्कार हुआ और यहूदियों के कष्टों का निवारण हुआ। एक पूरी पीढ़ी बीत गई और उसके बाद जब रब्बी मोशे येहुदा लीब एब्र्लिच, जिन्हें सासोव के रब्बी मोशे लीब के नाम से भी जाना जाता है, ने जंगल में जाकर परमात्मा से प्रार्थना की कि न तो मैं पवित्र अग्नि प्रज्वलित करने का तरीका जानता हूं, न ही मुझे वह विशिष्ट प्रार्थना आती है, पर कृपया मेरे देशवासियों का कष्ट हर लीजिए। परमात्मा ने फिर प्रार्थना सुनी, फिर चमत्कार हुआ और एक बार फिर यहूदियों ने सुख की सांस लेना आरंभ किया। इसके भी आधी शताब्दी के बाद रुजिन के दिव्यांग रब्बी इजरायल फ्राइडमैन, जिन्हें इजरायल रुजिन भी कहा जाता है, ने अपनी ह्वीलचेयर से ही परमात्मा से निवेदन किया कि मुझे न तो जंगल के उस स्थान का पता है, न ही पवित्र अग्नि के प्रज्वलन का तरीका पता है और न ही मुझे वह विशिष्ट प्रार्थना आती है, पर मैं इस सत्य का बखान कर रहा हूं कि हे परमात्मा, आप बहुत कृपालु हैं।
कृपया हमारे कष्ट हर लीजिए। और एक बार फिर चमत्कार हुआ, एक बार फिर परमात्मा ने दया की और एक बार फिर यहूदियों को अत्याचारों से छुटकारा मिला। इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि पूजा में श्रद्धा चाहिए, भक्ति में श्रद्धा चाहिए और उस श्रद्धा में पूरा विश्वास चाहिए। अगर हम ऐसा कर सकें तो फिर परमात्मा की पूजा के लिए किसी विशिष्ट विधि-विधान की आवश्यकता नहीं है। हम सब ने पंद्रहवीं शताब्दी के महान भक्त धन्ना जाट की कहानी सुन ही रखी है जिन्होंने एक पत्थर को शालिग्राम समझकर उनकी पूजा-अर्चना करके भोग लगाने की कोशिश की तो भगवान को प्रकट होकर उनका भोजन स्वीकार करना पड़ा। धन्ना जी को किसी विधि-विधान की जानकारी नहीं थी, उनके पास तो असली शालिग्राम भी नहीं था। उनके पास श्रद्धा थी और अपनी श्रद्धा पर विश्वास था। इसी श्रद्धा और विश्वास ने त्रिलोकीनाथ परमात्मा को विवश किया और उन्हें मानव रूप में पधारकर धन्ना जी के साथ भोजन ग्रहण करना पड़ा। हम ज्ञानी हों, अच्छी बात है, मगर प्रेमी भी हों, मन में अपार श्रद्धा भी हो तो मानो सोने पर सुहागा। हम चाहे सम्पूर्ण जगत का ज्ञान रख लें, पर साथ में इस ब्रह्मांड की हर जड़-चेतन वस्तु और प्राणि मात्र से प्रेम करें तो परमात्मा की प्राप्ति के लिए किसी और शर्त की जरूरत नहीं है। बहुत छोटा सा अंतर यह है कि ज्ञानी संसार से मुक्त होना चाहता है, जबकि प्रेमी सारे संसार को परमात्मा का स्वरूप मानकर उसकी सेवा करना चाहता है। एक विद्वान ने कहा है कि ज्ञान में जीव परमात्मा को जानता है और प्रेम में परमात्मा जीव को जानते हैं। ज्ञान पुष्प है और प्रेम श्वास है। प्रेम में जियो, प्रेम ही साधना की पूर्णता है। प्रेम ही ज्ञान का शिखर है, योगी न बनो तो कोई बात नहीं, मगर प्रेमी बन जाओ तो श्रीकृष्ण गोपियों की तरह एक दिन द्वार पर माखन मांगने आ जाएंगे। सच भी यही है कि जब हमारे व्यवहार और हमारी बातचीत में ईमानदारी हो, विनम्रता हो, करुणा हो और प्रेम हो तो हम अध्यात्म को समझने लग गए और परमात्मा के नजदीक हो गए।
जब हमने झूठ बोलना, धोखा देना, फरेब करना, दिखावा करना छोड़ दिया तो हम दिव्यता को पा गए और परमात्मा के नजदीक हो गए। जब हमने अनावश्यक संग्रह का लालच छोड़ दिया और हममें सेवा का भाव आ गया तो हम परमात्मा के नजदीक हो गए। जब हमने परमात्मा पर विश्वास करना आरंभ किया और अपने विश्वास का विश्वास किया, तो हम परमात्मा के नजदीक हो गए। ‘सहज संन्यास मिशन’ में हम यही सीखते हैं कि सहज जीवन जियें, परमात्मा से प्रेम करें, और इस ब्रह्मांड के हर जड़-चेतन वस्तु और प्राणी को परमात्मा का स्वरूप जानकर प्रेममय हो जाएं तो हम घर में रहते हुए, परिवार में रहते हुए, समाज में रहते हुए, अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाते हुए भी संन्यासी ही हैं। निश्छल प्रेम, हर किसी से प्रेम, बिना कारण, बिना आशा के हर किसी से प्रेम। मानवों से ही नहीं, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों से भी प्रेम, जीवित लोगों से ही नहीं, जीवन रहित मानी जाने वाली चीजों से भी प्रेम, यही सच्ची आध्यात्मिकता है। संत कबीर कहते हैं कि ‘खोजी होए, तुरत मिल जाऊं, एक पल की ही तलाश में। कहे कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूं विश्वास में।’ तो आइये, परमात्मा पर विश्वास करें और इस विश्वास पर विश्वास रखें ताकि हमारा जीवन सहज-सरल हो जाए और हम परम आनंद की प्राप्ति कर सकें। ईश्वर को पाने का रास्ता सर्वनिष्ठ प्रेम ही है।
स्पिरिचुअल हीलर
सिद्धगुरु प्रमोद जी
गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक
ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com
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