साहिब फुर्सत में हैं…

By: Jul 16th, 2024 12:05 am

पता नहीं बड़े साहिब ने मौसम फिल्म के लिए गुलज़ार का लिखा गाना ‘दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन’ सुना है या नहीं, पर बड़े साहिब जब भी किसी मीटिंग की अध्यक्षता करते हैं, फुर्सत के रात दिन जीने लगते हैं। आधे घंटे की मीटिंग जब चार घंटे बाद खत्म होती है तो बाहर निकलने पर बाकी अफसरों पर हमदर्द का चुस्ती-फुर्ती लाने वाला टॉनिक सिंकारा भी काम नहीं करता। बेचारे निढाल से निकलते हैं मीटिंगों से। कुछ मरे-मरे से, कुछ बुझे-बुझे से। पर बड़े साहिब हैं कि उतने ही तरोताज़ा होते हैं जितना मीटिंग में जाने से पहले होते हैं। बिल्कुल ताज़ा गुलाब की तरह। ख़ुशबू भले न हो, पर बड़े साहिब खिले-खिले तो वैसे ही लगते हैं। यूं भी आदमी चाहे बड़ा उम्र के हिसाब से हो या पद के हिसाब से, जैसे-जैसे बड़ा होने लगता है उसकी ख़ुशबू गायब होती जाती है। मीटिंगें कई तरह की होती हैं। भारत सरकार के मंत्रालयों को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है-बड़ा मंत्रालय, मझोला मंत्रालय और छोटा मंत्रालय। प्राय: जितना बड़ा मंत्रालय होता है, उसके बड़े बाबू के पास मीटिंग में बैठने की फुर्सत उतनी कम होती है। छोटा मंत्रालय मतलब फुर्सत ही फुर्सत। छोटे मंत्रालय के बड़े बाबू और बड़े मंत्रालय के बड़े बाबू की तनख्वाह भले एक जैसी होती है, पर फर्क होता है तो केवल फुर्सत का। छोटे मंत्रालय के बड़े बाबू के पास फुर्सत ही फुर्सत होती है। भारत सरकार ने इन मीटिंग के लिए बाक़ायदा कान्फ्रेंस हॉल बनवाए हैं। ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि यह कान्फ्रेंस हॉल पुराने ज़माने की चौपाल का आधुनिकतम रूप हैं।

बस फर्क है तो इतना कि अब चौपाल चारदीवारों के अंदर जमती है, सामने बड़ी सी टीवी स्क्रीन होती है जिसमें ज़रूरत पडऩे पर या जब बड़े बाबू किसी को गरियाना चाहें, फील्ड के अधिकारियों या दफ़्तरों को भी घसीटा जा सकता है। मीटिंग हो तो चाय-पानी भी होगा ही। इससे कैंटीन वाली रोज़ी-रोटी भी चलती है और स्टाफ का गला भी तर रहता है। ऐसे ही छोटे मंत्रालय के एक बाबू हैं, झुन्नू लाल जी। हैं तो संयुक्त सचिव के पद पर, पर आजकल उनके पास एक ऐसी क्षेत्रीय परिषद का अतिरिक्त कार्यभार भी है, जिसमें सचिव का पद है। यह पद भारत सरकार के मंत्रालय के संयुक्त सचिव और सचिव के बीच का है अर्थात् अतिरिक्त सचिव स्तर का है। पर जब यह अतिरिक्त सचिव नाम का जीव क्षेत्रीय परिषद में विराजमान होता है तो उसे सचिव के नाम से पुकारा जाता है। ऐसे में झुन्नू लाल का सचिव होना, उनमें कुछ और बड़ा होने का एहसास भर देता है। दिल्ली में गर्मी बढऩे पर झुन्नू लाल जी अपनी पीठ की घमौरियां ठीक करने के लिए शिलांग जैसी जगह में ठंडी हवा खाने चले आते हैं। पर उनका आना क्षेत्रीय परिषद के बाबुओं को बहुत खलता है। अब खले भी क्यों न? भला यह भी कोई बात हुई कि भारत सरकार अपने कर्मियों से पांच दिन सुबह नौ बजे से साढ़े पांच तक काम लेती है और बदले में फाईव डे वीक देती है। पर झुन्नू लाल जी हमेशा दिल्ली से वीरवार को सुबह साढ़े चार बजे उड़ते हैं और शिलांग में ग्यारह बजे से पहले दफ़्तर पहुंच जाते हैं। आते ही आदेश निकलवा देते हैं कि चूंकि बड़े बाबू आए हैं, इस बार शनिवार और इतवार को भी ठीक नौ बजे दफ़्तर लगेगा। क्षेत्रीय परिषद के बेचारे बाबू मन मसोस कर रह जाते हैं। दफ़्तर में बड़े बाबू झन्नाते हैं और घर में बीवी कहती है, ‘अजी! आप तो अपना बिस्तर भी दफ़्तर में ही लगा लो। आप तो इस हफ़्ते पीवीआर ले जाने वाले थे न। मुन्ने की स्कूल की यूनिफॉर्म भी लेनी थी। आप लोग क्या अपने बॉस से इतना भी नहीं कह सकते कि छुट्टी वाले दिन दफ़्तर कैसा?’ अब बेचारा बाबू अपनी बीवी से कैसे कहे कि बल एकता में होता है। एक अकेला बोलेगा तो बड़ा बाबू बोलेगा, ‘क्या बोलता है। मैं तो महीने में एक बार आता हूं तुम्हारी वीक एंड खऱाब करने। कहो तो अगले हफ़्ते भी टिक जाऊं?’

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App or iOS App