रामायण कथा: रामावतार का उद्देश्य
हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान राम, विष्णु के मानव अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिए मार्गदर्शन देना था। अंतत: श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया और धर्म की पुनस्र्थापना की। रामायण में सात कांड हैं: बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, सुंदरकांड, किष्किन्धाकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड। अब तक हम चार कांड प्रकाशित कर चुके हैं। इस बार हम दो और कांड प्रकाशित कर रहे हैं…
सुंदरकांड
हनुमान ने लंका की ओर प्रस्थान किया। सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली और उसे योग्य तथा सामथ्र्यवान पाकर आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने छाया पकडऩे वाली राक्षसी का वध किया और लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश किया। उनकी विभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोक वाटिका में पहुंचे तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीता को सांत्वना दी। एकांत होने पर हनुमान जी ने सीता माता से भेंट करके उन्हें राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोक वाटिका का विध्वंस करके रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। मेघनाद हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया। रावण ने हनुमान की पूंछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा बांध कर आग लगा दी। इस पर हनुमान ने लंका का दहन कर दिया। हनुमान सीता के पास पहुंचे। सीता ने अपनी चूड़ामणि देकर उन्हें विदा किया। वे वापस समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले और सभी वापस सुग्रीव के पास चले गए।
हनुमान के कार्य से राम अत्यंत प्रसन्न हुए। राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर पहुंचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि राम से बैर न लें। इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम की शरण में आ गया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया। राम ने समुद्र से रास्ता देने की विनती की। विनती न मानने पर राम ने क्रोध किया और उनके क्रोध से भयभीत होकर समुद्र ने स्वयं आकर राम की विनती करने के पश्चात नल और नील के द्वारा पुल बनाने का उपाय बताया।
लंकाकांड
जाम्बवंत के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गए। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यंत व्याकुल हुआ। मंदोदरी के राम से बैर न लेने के लिए समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ मेरु पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गए और उसे राम की शरण में आने का संदेश दिया, किंतु रावण ने नहीं माना। शांति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरंभ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गए। उनके उपचार के लिए हनुमान सुषेण वैद्य को ले आए और संजीवनी लाने के लिए चले गए। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिए कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया।
औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के संदेह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया, परंतु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलंब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गए और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गए। रावण ने युद्ध के लिए कुंभकर्ण को जगाया। कुंभकर्ण ने भी रावण को राम की शरण में जाने की असफल मंत्रणा दी। युद्ध में कुंभकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेक घोर युद्ध हुए और अंत में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया।
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