स्कूल को खा गई फोरलेन; अब उधार के टूटे फूटे भवन में हो रही पढ़ाई, वहां भी टायलेट नहीं

By: Aug 13th, 2024 12:01 am

कांगड़ा के मलां प्राइमरी स्कूल में नौनिहाल असुरक्षित कमरों में पढऩे के लिए मजबूर

राजीव सूद — नगरोटा बगवां

फोरलेन-एनएचएआई की करतूत तो देखिए, फोरलेन का काम तो शुरू किया नहीं, पर शिक्षा का मंदिर जरूर तोड़ दिया। यदि टूटे-फूटे स्कूल में छात्र पढ़ाई करते हों और बच्चों के लिए टायलेट की सुविधा भी न हो, तो बेहतरीन शिक्षा के क्या मायने और उस ‘मन की बात’ का भी क्या अर्थ, जो परीक्षा से पूर्व छात्रों से की जाती है। वर्तमान दौर में जहां नेताओं के प्रस्तावित दौरों पर प्रशासन द्वारा सजावटी तामझाम तथा ढांचागत संरचना खड़ी करने के लिए रातोंरात करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिए जाते हों, वहां यदि स्कूल में शौचालय की व्यवस्था के लिए दर-दर भटकना पड़े, तो ऐसे सिस्टम पर सवाल उठना स्वाभाविक हैं। ऐसे हालात जिला कांगड़ा के मलां स्थित सरकारी केंद्र प्राइमरी स्कूल के हैं। कुछ माह पहले राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण द्वारा एक हफ्ते के जुबानी नोटिस के बाद फोरलेन की जद में आए सरकारी प्राइमरी स्कूल पर पीला पंजा चला दिया गया। इससे पहले स्कूल प्रबंधन इस बात से पूरी तरह बेखबर था कि उनका परिसर फोरलेन की जद में आएगा।

एनएचएआई की कार्रवाई में स्कूल के चार कमरे, चारदीवारी, किचन तथा शौचालय भी मिट्टी में मिल गए। इस दौरान करीब आठ दशक पूर्व निर्मित स्कूल की बिल्डिंग धराशायी हुई, तो करीब 60 बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था इसी परिसर में उच्च शिक्षा विभाग के वर्षों से बंद पड़े पुराने जर्जर कमरों में कर दी गई। स्कूल ने मजबूरन टपकती छतों के नीचे बच्चों के लिए क्लास रूम सजा दिए, तो कार्यालय के लिए पुरानी जर्जर बिल्डिंग का वह कमरा हिस्से आया, जहां कंकरीट का प्लस्तर कभी सिर पर चोट कर सकता था। उच्च मार्ग के साथ सटा परिसर बिना चारदीवारी के सुरक्षित नहीं है। किचन की भी अस्थायी व्यवस्था कर दी गई, लेकिन बच्चों व स्टाफ के लिए आजतक शौचालय की व्यवस्था न हो पाना प्रबंधन की सबसे बड़ी चिंता है। इस स्कूल में कुल 64 विद्यार्थियों में 34 बच्चियां तथा दो महिला शिक्षक हैं, जिनके लिए आज भी शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसा नहीं कि विभाग ओर प्रशासन इस बात से बेखबर है। स्कूल प्रबंधन लिखित और जुबानी तौर पर विभाग व प्रशासन को इस संबंध में बता चुका है, लेकिन किसी ने भी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। आज स्कूल के पीछे खुली जगह का इस्तेमाल करना बच्चों व शिक्षकों की मजबूरी है। स्कूल की मुख्य शिक्षिका सरस्वती देवी तथा खंड शिक्षा अधिकारी कश्मीर सिंह ने इसकी पुष्टि करते हुए स्वीकार किया कि शौचालय की व्यवस्था न होना बच्चों के लिए परेशानी का सबब है। (एचडीएम)

सिर्फ इलेक्शन के दौरान लगे थे मोबाइल शौचालय

हाल ही में इस स्कूल में मतदान के दौरान यहां एक दिन के लिए मोबाइल शौचालयों की अस्थायी व्यवस्था की गई थी, जिन्हें चुनाव समाप्ति के साथ ही उठा लिया गया था। जानकारी यह भी है कि स्कूल के लिए नए भवन निर्माण तथा भू हस्तांतरण की प्रक्रिया जिला प्रशासन के विचाराधीन है तथा उसके लिए लंबा इंतजार करना होगा। तब तक के लिए क्या बच्चों को इन्हीं बदतर हालातों से दो चार होना पड़ेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। इतना ही नहीं, विभाग ने गत वर्ष इस स्कूल को उत्कृष्ट विद्यालय बनाने की भी अधिसूचना जारी की थी, जिसके तहत 15 लाख की राशि भी जारी हुई है, लेकिन जब स्कूल के पास भूमि ही नहीं है, तो राशि खर्च कहां हो, यह भी एक बड़ा सवाल है।


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