छिलकों की छाबड़ी : सरकार कड़े कदम उठा रही है…

By: Sep 7th, 2024 12:02 am

सरकार के कदमों पर सबकी नजर रहती है। पब्लिक की नजर भी रहती है और विपक्ष की नजर भी रहती है। सत्ता में जो लोग हाशिये पर बैठे होते हैं, उनकी तो सबसे ज्यादा तेज नजर अपनी ही सरकार के कदमों पर रहती है। वे इस ताक में रहते हैं कि सरकार के कदम जब डगमगाएंगे तो उन्हें हाशिये से मुख्य धारा में आने का मौका मिल जाएगा। सरकार के कदम फिसलते ही उनकी बांछें खिलने लगती हैं। विपक्ष के तो दोनों हाथों में लड्डू आ जाते हैं। चैनल वालों को परोसने के लिए नया मसाला मिल जाता है। पब्लिक भी बैठे-बैठे स्वाद लेने लगती है। अब सरकार के कदम भी कई तरह के होते हैं। बहके कदम, दिशाहीन कदम, नरम कदम और कड़े कदम। जो सरकार कदम नहीं उठाती, सुस्त लेटी रहती है, अलसाती रहती है, उसे लोग सरकार की श्रेणी में ही नहीं रखते। सरकार को अपना अस्तित्व दिखाने के लिए कोई न कोई कदम उठाने ही पड़ते हैं। यही कुछ वर्तमान हुकूमत के बारे में भी देखने को मिल रहा है। सरकार मजबूत है, लेकिन मजबूर है और मजबूरी में कड़े कदम उठा रही है। पहले नरम कदम उठा रही थी और उससे पब्लिक में चर्चा शुरू हो गई थी कि आखिर सूबे में सरकार नाम की कोई चीज है भी या नहीं। सिरफिरे लोग सरकार पर तंज कसने लगे थे। कहने लगे थे कि सरकार बहुत कोमल और नाजुक है। अपनी हड्डी पर मोच नहीं आने देना चाहती, इसलिए नरम कदम उठा रही है। यानी हरी-हरी कोमल घास पर चल रही है। और प्रदेश को चारागाह बना दिया है। सरकार चल रही है, लेकिन सरकार में शामिल चंद लोग घास को चर रहे हैं। इससे घास के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा। जब पब्लिक के बीच सरकार के नरम कदमों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं तो सरकार ने कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया। हुकूमत में एकदम से कडक़ फैसले लिए जाने लगे। एक से बढक़र एक कडक़ और कठोर फैसले। कईयों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। कईयों को सैलरी के लाले पड़ गए। कईयों की पेंशन कछुए की चाल चलने लगी। बैंक खाते में पेंशन आने की कोई निश्चित तारीख नहीं रही। इसलिए नहीं रही, क्योंकि सरकार ने कठोर कदम उठाना शुरू कर दिए थे। महंगाई भत्ते की किस्तों और एरियर पर कैंची चलने लगी।

इसलिए चलने लगी, क्योंकि सरकार कठोर निर्णय ले रही थी। जिनकी जेब पर कैंची चल रही थी, उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया। उन्होंने सरकार पर ठीकरा फोडऩा शुरू कर दिया। आरोप लगाना शुरू कर दिए कि एक तरफ सरकार ने अपने लोगों को पद बांट कर खजाना लुटाना शुरू कर दिया है और उन्हें गाड़ी, बंगला, नौकर जाकर सब सुविधा प्रदान कर दी है। जबकि दूसरी तरफ आम आदमी की सुविधाओं में लगातार कटौती की जा रही है। अपने ही फैसले पलटे जा रहे हैं। अपनी ही गारंटियों से सरकार पीछे हट रही है। पिछली सरकारों ने जो सुविधाएं दी थी, वे बंद की जा रही हैं। संस्थान बंद किए जा रहे हैं। इसलिए किए जा रहे हैं क्योंकि सरकार कड़े कदम उठा रही है और कडक़ फैसले ले रही है। अगर टमाटर के दाम 50 पैसे प्रति किलो काम करते हैं, तो सीमेंट के दाम 5 रुपए प्रति बोरी बढ़ा दिए जाते हैं। इसे सरकार का कड़ा कदम कहते हैं। लोगों में चर्चा शुरू हो जाती है कि भाई, सरकार हो तो ऐसी। देखो दिल पर पत्थर रखकर कड़े कदम उठा रही है। आखिर हमारे लिए ही उठा रही है क्योंकि हमारी चिंता सरकार को है। सरकार हमें कड़वे फैसले के लिए तैयार हो जाने को कह रही है, तो हमें तैयार हो जाना चाहिए। जैसे हम सुबह नहा धोकर दफ्तर जाने के लिए, दुकान जाने के लिए, मित्रों से गपशप लगाने के लिए तैयार होकर जाते हैं, उसी तर्ज पर हमें सरकार के एक आह्वान पर कड़वे फैसले झेलने के लिए तैयार बर तैयार रहना चाहिए। सरकार कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर है, लेकिन हमें मजबूत बने रहना चाहिए। एक अच्छे नागरिक की यही पहचान होती है।

गुरमीत बेदी

साहित्यकार


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