शव संवाद-63

By: Sep 30th, 2024 12:05 am

पिछले कुछ समय से भगवान का मन स्वर्गलोक की नीरसता में रम नहीं रहा था। दुनिया के सारे साधु-सज्जन ऊपर क्या पहुंचे कि भगवान को जॉबलेस होने का खतरा पैदा हो गया। अपनी भूमिका में व्यावहारिक विस्तार की ख्वाहिश से उन्होंने मंथन किया कि क्यों न धरती पर मनुष्य अवतार में विचरण किया जाए। दुनियावी हलचल में भगवान की रुचि परवान चढ़ी तो वह एक दिन अचानक मनुष्य अवतार में पहुंच गए। धरती पर उन्हें एक माकूल प्रोफेशन की जरूरत थी, ताकि कुछ किया जाए। वह बुद्धिजीवी बनकर देश का अनुभव प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन उन्हें यहां तरह-तरह के भक्त मिल रहे थे। भगवान खुश थे कि जगह-जगह मंदिर हैं और जनता दर्शन कर रही है, लेकिन वहां हैरानी हुई कि इनसान कितना भिखारी हो गया है। किसी को अच्छा वर, तो किसी को अच्छा घर चाहिए था। किसी को रोजगार तो किसी को व्यापार चाहिए था। वहां आकर कोई जज की कुर्सी, तो कोई डाक्टर की पदवी पाना चाहता था। भगवान को यह जानकर हैरानी हुई कि मंदिर पहुंचकर भी न कोई अध्यापक, पत्रकार और न ही क्लर्क बनना चाहता था, लेकिन किसी को नेता बनने से कोई नहीं रोक रहा था। भगवान अपने भीतर का अंतर्यामीपन स्वर्ग में छोड़ आए थे, लिहाजा उन्हें पता नहीं चल रहा था कि धरती के ऊपर किस मनुष्य के भीतर कौनसा मनुष्य छुपा है। भगवान को खुद पर शक हुआ कि क्या वह मनुष्यों के बीच मनुष्य बनकर टिक पाएंगे। मन ही मन भगवान स्वीकार कर चुके थे, ‘वास्तव में मनुष्य बनकर धरती पर रहना मुश्किल है।’ भगवान देख रहे थे कि कैसे धरती पर लोग भगवान बनने की चेष्टा मात्र से सफल हो रहे थे। चारों तरफ गुरुओं और महामानवों का साम्राज्य था, बल्कि कई तो इतने विश्वस्त थे कि वे पैदा ही नहीं हुए, बल्कि ऊपर से भेजे गए हैं।

भगवान घूम रहे थे ताकि किसी बुद्धिजीवी से स्थिति स्पष्ट कराएं कि आखिर धरती पर लोग क्यों भगवान बनना चाहते हैं। अचानक उन्हें गणेश जी मिल गए। भगवान ने कोशिश की थी कि गणेश उन्हें न पहचानें, लेकिन वह पहचाने गए। गणेश भागते हुए मिले, हांफते हुए मिले तो कहने लगे, ‘धरती पर मेरा, मेरी ही मूर्तियों से मुकाबला हो रहा है। यह देखने के लिए आया था, लेकिन अब हर मूर्ति मुझे रोकना चाहती है। मैं ईश्वर अवतार में देख रहा हूं कि मनुष्य ने मेरे हर पहलू से ज्यादा मूर्तियां स्थापित कर दी हैं।’ गणेश जी को भगवान घाट पर मिले थे, जहां वे बता रहे थे, ‘मेरी मूर्तियां मुझी से प्रार्थना कर रही थीं कि वे डूबना नहीं चाहतीं। मैं असमर्थ था, बल्कि मेरा भी विसर्जन हो जाता, लेकिन वो सामने बैठे बुद्धिजीवी ने मुझे बचा लिया।’ भगवान ने पहली बार धरती पर बुद्धिजीवी देखा। वह मूर्तियों के बीच नगर निगम की जेसीबी से मूर्तियों को बचा रहा था। लोग विसर्जन करके जा चुके थे, लेकिन मूर्तियों को पुन: मिट्टी बनाने के काम में व्यस्त नगर निगम के लोग कितनी साधना से काम कर रहे थे। भगवान डरे हुए थे और शुक्र मना रहे थे कि वे मूर्ति के रूप में नहीं हैं, वरना। तभी सागर की लहरों ने मूर्तियों के बीच किसी इनसान की लाश उगल दी। भगवान से यह देखा नहीं गया। उन्होंने बुद्धिजीवी के कंधे को सहारा दिया और लाश को पुन: पानी में विसर्जित कर दिया, लेकिन चाह कर भी गणेश जी की मूर्तियों को पानी में नहीं डाल सके। असहाय गणेश जी दूर से अपनी आरती की आवाज सुनते हुए यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि संसार की रचना करके भी वे इसे समझ नहीं पाए। -क्रमश:

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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