माटी चुन-चुन महल बनाया
हम हर तरह की हिंसा से परहेज करें और अपनी सांसों पर ध्यान दें तथा मौन की साधना करें तो हम आध्यात्मिकता की ओर निश्चित कदम बढ़ा लेते हैं। सांसों पर ध्यान का मतलब सिर्फ इतना सा है कि हम एकांत में बैठें, चुपचाप बैठें और सिर्फ अपनी आती-जाती सांस की ओर ध्यान फोकस करें। नासिका और ऊपर के होठ के बीच की जगह पर ध्यान फोकस करें तो हम आती-जाती सांस को महसूस कर सकते हैं। इस अवस्था में हमें करना कुछ नहीं है। सांस को नियंत्रित नहीं करना, तेज या धीमा नहीं करना, गहरा या छोटा नहीं करना, बस सिर्फ आती-जाती सांस पर ध्यान देना है, मौन रहना है और यदि ध्यान भटके तो उसे फिर से सांस पर ले आना है…
हम सब एक शरीर के साथ जन्म लेते हैं। यह शरीर जो हमें दिखता है, यह एक स्थूल शरीर है और इसकी अपनी सीमाएं हैं। जीवन में रहते हुए यह शरीर सुख-दुख भोगता है, बीमारी आदि भोगता है। अगर मोटी-मोटी बात करें तो हमारा एक और शरीर भी है जो सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर एक प्रकाश पुंज मात्र है। हमारा यह सूक्ष्म शरीर बहुत शक्तिशाली है। यह भी सुख-दुख भोगता है। मृत्यु के पश्चात यदि हमें मोक्ष न मिले तो हमारा सूक्ष्म शरीर धरती की दुनिया से ऊपर की दुनिया में चला जाता है और समय आने पर फिर से जन्म लेकर संचित कर्मों के फल भोगता है तथा नए कर्म करता है। अगला जन्म लेने से पूर्व यही शरीर स्वर्ग-नर्क भी भोगता है। आत्मा इन दोनों शरीरों से परे है। यह सुख-दुख से परे है और परमात्मा का शुद्ध अंश है। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में इसी के बारे में बताया है कि यह अजर-अमर है। इस पर हवा, पानी, आग और हथियारों आदि का कोई असर नहीं होता। निर्वाण की स्थिति में आत्मा ही परमात्मा में विलीन होती है जिससे हमें जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। ऋषियों, मुनियों, मनीषियों ने इस संसार को मिथ्या और जीवन को सपना इसलिए कहा क्योंकि हमारा यह शरीर नश्वर है और जीवन के बाद कभी न कभी मृत्यु का होना भी निश्चित है। मृत्यु के बाद यह शरीर नहीं रहता। जब हम जरा गहराई में जाते हैं तो यह समझ आता है कि यह जीवन वास्तव में एक स्कूल है जहां हम इसलिए आते हैं ताकि निर्वाण की प्राप्ति के लिए हम अभी तक जो नहीं सीख पाए हैं, वह सीख लें और जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होकर सर्वेश्वर परमपिता परमात्मा से जा मिलें।
जब हम दोबारा जन्म लेते हैं तो हम अपने संचित कर्मों का फल तो भोगते ही हैं, पर साथ ही हम नए कर्म भी करते हैं। ये नए कर्म ही अगर ऐसे हों जो हमें परमात्मा के और करीब ला सकते हों, तो हम निर्वाण की ओर बढ़ते चलते हैं। शरीर नश्वर है और जीवन के साथ मृत्यु अवश्यंभावी है, तो हमारे कर्मों के अलावा यहां प्राप्त की गई अथवा जोड़ी गई शेष हर चीज यहीं रह जाएगी। हमें कोई संपत्ति विरासत में मिले या हम स्वयं अर्जित करें, वो अंतत: यहीं रह जाएगी। अक्सर तो ऐसा भी होता है कि किसी ने बहुत मेहनत करके, कंजूसी करके, बचत कर-कर के कुछ बनाया, लेकिन अपने जीवन में उसे कभी भोग नहीं पाया और चाहे अपनी संतानों के लिए अथवा दुनिया के लिए छोडक़र स्वर्गवासी हो गया। इसीलिए संत कबीर दास जी ने कहा कि माटी चुन-चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा, ना घर तेरा, ना घर मेरा, चिडिय़ा रैन बसेरा, कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी, जोड़ भरेला थैला, कहत कबीर सुनो भाई साधो, संग चले ना धेला, उड़ जाएगा हंस अकेला, जग दो दिन का मेला। हम सब अक्सर समय की कमी का रोना रोते हैं। अक्सर हम कहते हैं कि अगर हमारे पास समय होता तो हम फलां-फलां काम कर लेते, पर असली सच यह है कि समय ही एक ऐसी वस्तु है जिसका हम सबसे ज्यादा दुरुपयोग करते हैं, समय ही ऐसी वस्तु है जिसे हम सबसे ज्यादा बेकार में गंवाते हैं, समय ही एक ऐसा उपहार है कि हम जिसकी कीमत नहीं समझते और इसे व्यर्थ के कामों में, उलझनों में, लड़ाई-झगड़ों में, किसी की आलोचना में, किसी की निंदा में, षड्यंत्रों में और गपशप में गंवा देते हैं। तभी तो हमारे ऋषियों, मुनियों, संतों और मनीषियों ने कहा है कि हीरा जनम अमोल सा, कौड़ी बदले जाए, जबकि इसी समय का सदुपयोग करके हम निर्वाण की ओर कदम बढ़ा सकते थे और सर्वशक्तिमान त्रिलोकीनाथ सवेश्वर परमात्मा से मिल पाने का जुगाड़ कर सकते थे। सवाल उठता है कि हम परमात्मा से मिलन के लिए क्या कर सकते हैं, और कैसे कर सकते हैं। हर धर्म परमात्मा के मिल पाने के रास्ते बताता है। ‘सहज संन्यास मिशन’ ने इसे ‘न भागो, न त्यागो, सिर्फ जागो’ का मंत्र देकर बहुत आसान बना दिया है।
इस मंत्र का खुलासा करें तो हमें समझ में आता है कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए हमें संसार से भागने की आवश्यकता नहीं है, संसार को त्यागने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सिर्फ जागरूक होकर आत्म-मंथन करके अपनी सोच और अपने जीवनयापन के ढंग में कुछ छोटे-छोटे और आसान बदलाव करके आध्यात्मिकता की ओर बढ़ते रहना है। इसी दुनिया में रहकर, समाज में रहकर, परिवार में रहकर, अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए, हमें सिर्फ इतना करना है कि हम किसी भी तरह की कोई हिंसा न करें। यहां हमें यह समझना होगा कि ‘हिंसा’ की अवधारणा बहुत व्यापक है। जीव की हत्या तो हिंसा है ही, पर उसके अलावा जब हम किसी की निंदा करें, चुगली करें, शिकायत करें, दोषारोपण करें, अपमान करें, क्रोध करें तो यह भी हिंसा है। किसी का दिल दुखाना हिंसा है, पर सिर्फ किसी का दिल दुखाना ही हिंसा नहीं है, अपना दिल दुखाना भी हिंसा है। जब हम अपमानित महसूस करते हैं, अपनी किसी गलती पर पछताते हैं, किसी पर गुस्सा करते हैं, तो हम दुखी हो जाते हैं। यह समझना आवश्यक है कि क्रोध इसलिए आता है क्योंकि हम दुखी हुए। किसी ने हमारी बात नहीं मानी और हम दुखी हुए तो गुस्सा आया। किसी ने हमारा अपमान कर दिया और हम दुखी हुए तो गुस्सा आया। किसी ने हमारा नुकसान कर दिया और हम दुखी हुए तो गुस्सा आया। तो क्रोध का कारण दुख है और दुखी होना खुद की हिंसा है। इसी तरह अपने शरीर का ध्यान न रखना, अपनी सेहत का ध्यान न रखना, जंक फूड खाकर शरीर को बीमार करना, चिंता करते हुए, उदास रहते हुए, डर-डर कर जीवन जीते हुए अपनी सेहत को खतरे में डालना खुद के प्रति हिंसा है।
हमें हर हालत में हर तरह की हिंसा से बचना है। यही आध्यात्मिकता है। यह आध्यात्मिकता की शुरुआत है। हम हर तरह की हिंसा से परहेज करें और अपनी सांसों पर ध्यान दें तथा मौन की साधना करें तो हम आध्यात्मिकता की ओर निश्चित कदम बढ़ा लेते हैं। सांसों पर ध्यान का मतलब सिर्फ इतना सा है कि हम एकांत में बैठें, चुपचाप बैठें और सिर्फ अपनी आती-जाती सांस की ओर ध्यान फोकस करें। नासिका और ऊपर के होठ के बीच की जगह पर ध्यान फोकस करें तो हम आती-जाती सांस को महसूस कर सकते हैं। इस अवस्था में हमें करना कुछ नहीं है। सांस को नियंत्रित नहीं करना, तेज या धीमा नहीं करना, गहरा या छोटा नहीं करना, बस सिर्फ आती-जाती सांस पर ध्यान देना है, मौन रहना है और यदि ध्यान भटके तो उसे फिर से सांस पर ले आना है। बस इतना ही। धीरे-धीरे के अभ्यास से हम इस काबिल हो जाएंगे कि हमारे दिमाग के विचार शांत हो जाएं और हम दिव्य तंद्रा की स्थिति तक पहुंच जाएं। शुरुआत यहीं से होगी, बाकी सब अपने आप होता चलेगा। चलना शुरू करेंगे तो आगे के रास्ते खुद-ब-खुद खुलते चलेंगे। हमें बस शुरुआत करनी है। ऐसा कर लिया तो हम इस जीवन रूपी स्कूल की सीख समझ सकेंगे और निर्वाण की तरफ बढ़ सकेंगे, आखिर यही तो हमारा लक्ष्य है।
स्पिरिचुअल हीलर
सिद्धगुरु प्रमोद जी, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक
ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com
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