हिंदी का वार्षिक श्राद्ध

By: Oct 1st, 2024 12:05 am

कई बार सोचता हूं कि क्या यह महज़ संयोग है कि हर साल हिन्दी पखवाड़ा और पितृ पक्ष साथ-साथ आते हैं। हिन्दी दिवस हर वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है और पितृ पक्ष लगभग इसी के साथ शुरू होता है। हर साल की तरह इस बार भी हिन्दी दिवस 14 सितम्बर को मनाया गया और हिन्दी पखवाड़ा 28 सितम्बर तक चला। इस बार पितृ पक्ष 17 सितम्बर से 2 अक्तूबर तक चलेगा। पितृ पक्ष की तिथियां बदलती रहती हैं। पर हिन्दी दिवस हर साल नियत तिथि को ही आता है और पूरे 14 दिन तक चलता है। इस दिन विभिन्न स्पर्धाओं, प्रतियोगिताओं, सम्मेलनों और वार्ताओं का आयोजन होता है। आमंत्रित अतिथि गण, साहित्यकार, अधिकारी और प्रतिस्पर्धी आयोजन के बाद जम कर जीमते हैं और हिन्दी को जन-जन में लोकप्रिय बनाने के अलावा सरकारी दरबार में किस तरह मुख्य सिंहासन पर विराजमान करवाया जाए, इस पर अपने दिमाग़ के अरबी घोड़े दौड़ाते हैं। पिछले एक दशक से आकंठ ईवेंट मेनेजमैंट में डूबी केन्द्र सरकार ने हिन्दी दिवस को भी इसी श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। पिछले चार साल से देश की विभिन्न सरकारी इकाइयों के कऱीब दस हज़ार हिन्दी अधिकारी और राजभाषा अधिकारी राजभाषा विभाग द्वारा नियत स्थान पर दो दिनों के लिए मिलते हैं। लेकिन इस सम्मेलन में उन्हें नेताओं के कोरे भाषणों और सरकार के पि_ुओं के एकालाप और वार्ताएं सुनने के अलावा कभी अपनी बात कहने का मौक़ा नहीं मिलता। बेचारे घर में बीवी की सुनते हैं, दफ़्तर में बॉस की और हिन्दी सम्मेलन में मंत्रियों और सत्ता पक्ष से जुड़े काने विद्वानों की। बेचारे हिन्दी की महानता और महत्व के बारे में ज्ञान लेकर लौट आते हैं और साल भर अंग्रेज़ी भरे सरकारी माहौल में सत्ता की दासी हिन्दी को पटरानी बनाने की कागज़़ी कोशिश में जुट जाते हैं। लेकिन आज़ादी के पचहत्तर सालों के बाद भी सरकारी दरबार में पटरानी बन कर घूम रही अंग्रेज़ी का बाल भी बींका नहीं कर पाते। यहां तक कि अपने हिन्दी भाषणों में गा-गाकर हिन्दी बोलने वाले प्रधानमंत्री विदेशी मंचों पर इसी अन्दाज़ में ग़लत अंग्रेज़ी बोलने का मोह नहीं छोड़ पाते।

प्रधानमंत्री अमेरिकी संसद में पिलर को पीलर बोलते हैं, बौद्धिक मंच पर सक को शक कहते हैं और इन्वेस्टमैंट इन द गर्ल चाइल्ड को इनवेस्टिगेटिंग इन द गर्ल चाइल्ड बोलते नजऱ आते हैं। केन्द्रीय सरकारी भाषा में राष्ट्र का गौरव कही जाने वाली हिन्दी को लेकर किसी आम भारतीय की तरह हीनभावना से ग्रस्त प्रधानमंत्री भले सही हिन्दी न बोल पाते हों लेकिन टूटी-फूटी अंग्रेज़ी बोलने से बाज नहीं आते। देश के किसी गम्भीर समस्या से जूझने के दौरान मीडिया मेनेजमैंट में माहिर केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी लोगों का ध्यान बेतुके मसलों की ओर मोड़ देती है। अगली बार राफेल, हिंडनबर्ग, भ्रष्टाचार, किसान आन्दोलन, बेरोजग़ारी, महंगाई या कोई अन्य मसला खड़े होने पर भाजपा चाहे तो भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान इस्तेमाल नारों ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ और ‘क्विट इण्डिया मूवमैंट’ के बीच नई बहस छेड़ सकती है। सरकार के मंत्री और भाजपा के कार्यकर्ता कह सकते हैं कि गांधी और नेहरू ने अंग्रेज़ों को भारत से भगाने वाला नारा अंग्रेज़ी में दिया था, जबकि वीर सावरकर द्वारा हिन्दी में दिए गए नारे के कारण ही देश की आज़ादी संभव हो पाई थी। अत: वीर सावरकर ही हिन्दी के वास्तविक प्रणेता हैं। भारत के कई काले अंग्रेज़ों की तरह गूगल ट्रांसलेट का भी हिन्दी से अंग्रेज़ी या अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद क़ाबिलेतारीफ है। हुआ यूं कि अपना शत-प्रतिशत काम अंग्रेज़ी में निपटाने वाले एक मंत्रालय में हिन्दी पखवाड़ा के दौरान आयोजित अन्तयाक्षरी प्रतियोगिता का एक पोस्ट सोशल मीडिया में डालने के बाद सम्बन्धित अधिकारी को ध्यान आया कि उसने पोस्ट को अंग्रेज़ी भाषा में डाला है। कम से कम हिन्दी पखवाड़ा के दौरान इस पोस्ट को राजभाषा में डाला जाना चाहिए था। उसने गूगल ट्रांसलेट का सहारा लिया। गूगल ट्रांसलेट ने अंग्रेज़ी टेक्स्ट ‘आल दि एम्पलाईज़ पार्टीसिपेटिड एन्थूजिय़ास्टिकली इन दि हिन्दी अन्तयाक्षरी कम्पीटिशन’ का हिन्दी अनुवाद किया ‘हिन्दी की अंत्येष्टि प्रतियोगिता में सभी कर्मियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।’

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App or iOS App