Khushwant Singh Litfest : भारत में जन्मे लोग अपने देश के खिलाफ क्यों खड़े

By: Oct 21st, 2024 12:07 am

2047 में विकसित भारत बनाना है, तो हमें सेवा क्षेत्र के बजाय विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना होगा

मोहिनी सूद-सोलन

कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के 13वें संस्करण में विभिन्न सत्रों में चर्चा हुई, जहां प्रतिभागियों ने साहित्य, संस्कृति और कला पर अपने विचार साझा किए। इस उत्सव ने कसौली की सांस्कृतिक जीवंतता को और भी बढ़ाया, और दर्शकों को नई सोच और प्रेरणा प्रदान की। कसौली की खूबसूरत पहाडिय़ों में यह लिटफेस्ट एक यादगार अनुभव बना। लिटफेस्ट न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना, बल्कि कसौली की सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करने का काम किया। -एचडीएम

नेहा भट्ट बोलीं, सेक्स पर खुलकर बात नहीं कर पाते लोग

नेहा भट्ट ने अपनी किताब अनअशेम्ड: नोट्स फ्रॉम द डायरी ऑफ ए सेक्स थेरेपिस्ट पर चर्चा करते हुए देश में सेक्स को लेकर चल रहे सामाजिक दृष्टिकोण पर चिंता जताई। उनका मानना है कि देश में सेक्स के बारे में खुलकर बात न करने से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत में सेक्स को वर्जित विषय समझे जाने के कारण लोग इसके मानसिक और शारीरिक लाभों को नजरअंदाज कर रहे हैं। सेक्स एक प्राकृतिक क्रिया है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है, लेकिन इसे खुलकर न करने या इसके बारे में बात न करने से तनाव, अवसाद और यहां तक कि हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं।

भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर खुलकर बातचीत

विद्वान योद्धा के नाम से प्रसिद्ध लेफ्टिनेंट जनरल केजे सिंह ने पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों पर विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि हम पाकिस्तान को अपनी तरह समझते थे, लेकिन कुछ लोग, जो भारत में जन्मे हैं, वे भारत के खिलाफ युद्ध में सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने सत्र के दौरान बताया कि परवेज मुशर्रफ दिल्ली में जन्मे थे, मिर्जा असलम बेग आज़मगढ़ के निवासी थे, जबकि जिया उल हक जालंधर में जन्मे थे। जनरल सिंह के इस दौरान यह सवाल उठाया कि भारत में जन्मे लोग अपने देश के खिलाफ क्यों खड़े हो जाते हैं, यह सोचने का विषय है। उन्होंने अपने विचारों से भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता को उजागर किया है।

आज के दौर में आधुनिक फिल्मों का नाम तक याद नहीं रहता

मशहूर फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान फिल्मी संवादों के महत्व पर विचार साझा करते हुए 1970 के दशक की फिल्मों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि उस समय डायलॉग के आधार पर फिल्में सफल होती थीं, जैसे कि शोले और डॉन के संवाद आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उन्होंने ने आयोजकों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा का मंच प्रदान किया। यह चर्चा आवश्यक थी, जिससे फिल्म उद्योग के वर्तमान दिशा को समझा जा सके। अली ने यह भी कहा कि अब वह समय नहीं रहा, जब संवादों की गहराई और प्रभाव की इतनी अहमियत थी। उन्होंने कई आधुनिक फिल्मों का जिक्र करते हुए कहा कि देखने के बावजूद उनके नाम तक याद नहीं रह पाते। उनका यह विचार दर्शाता है कि आज की फिल्मों में संवाद लेखन की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है।

सिख समुदाय की ऐतिहासिक यात्रा का वर्णन

सरबप्रीत सिंह ने सिख समुदाय की ऐतिहासिक यात्रा का गहन और प्रभावशाली वर्णन किया। उन्होंने सिख पहचान, समुदाय की ताकत और उनके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयामों पर गहन चर्चा की। श्रोताओं को सिख इतिहास और प्रेरणा की समृद्ध धारा से जोड़ते हुए, सरबप्रीत सिंह ने गुरवाणी में बृज भाषा के प्रभाव, पटियाला संस्कृति और सिख पंथ के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार बेबाकी से प्रस्तुत किए।

कोरोना से कृषि क्षेत्र में बढ़ी निर्भरता

अमिताभ कांत ने कहा कि दुनियाभर में भारत 79वें स्थान पर है वल्र्ड बैंक के साथ व्यापार करने में। कोरोना से पहले भारत 42 प्रतिशत कृषि पर निर्भर था, लेकिन वर्तमान में यह बढक़र 46.5 प्रतिशत हो गया है। यह दर्शाता है कि महामारी के बाद कृषि क्षेत्र में निर्भरता बढ़ी है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत पहला ऐसा देश है जहां करीब 1600 कानून समाप्त किए गए हैं। श्री कांत ने सुझाव दिया कि यदि 2047 में विकसित भारत बनाना है।

सोशल मीडिया अकाउंट पर फैला रहे नफरत

विक्रमजीत साहनी ने कहा कि जब हम सिम कार्ड लेते हैं, तो आधार अनिवार्य होता है, लेकिन सोशल मीडिया अकाउंट बनाते समय कोई प्रमाणिकता की जरूरत नहीं होती। उन्होंने समाज में कुछ गैर-जिम्मेदार लोगों द्वारा नफरत फैलाने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की।

अहिंसा के बारे में गहराई से चर्चा

देवदत्त पटनायक ने अपनी किताब 100 रिफ्लेक्शंस ऑन द हड़प्पन सिविलाइज़ेशन में अहिंसा के बारे में गहराई से चर्चा की। उन्होंने बताया कि हड़प्पा सभ्यता के लोग शांति और अहिंसा में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में संघर्ष और हिंसा से बचने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि भारत में अहिंसा को दो प्रमुख नामों से जाना जाता है—महात्मा गांधी और सात्विक भोजन। गांधी ने अपने पूरे जीवन में अहिंसा का प्रचार किया, इसे न केवल स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनाया, बल्कि एक जीवनशैली का रूप भी दिया।


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