समाज में पनपती मानसिक विकृति

By: Oct 1st, 2024 12:05 am

पोर्न फिल्में या वेब सीरीज देखने की आदत से बच्चों का मानसिक और शारीरिक पतन हो रहा है। वे इनके पीछे पागल से हो रहे हैं। मस्तिष्क में सोचने की क्षमता कम हो रही है। उनमें एक नशा सा छा रहा है। याददाश्त कम होने लगी है और रेप हो रहे हैं…

एक समय था जब हमारे देश भारत के राजा कहा करते थे कि मेरे देश में कोई चोर नहीं. शराबी और कायर नहीं, कोई अधार्मिक नहीं, कोई व्यभिचारी नहीं। क्या आज का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ऐसा कह सकता है ? शायद उत्तर मिलेगा- नहीं। सैंकड़ों चोरियां होती हैं, अनेक हत्याएं होती हैं, अनेक महिलाओं, यहां तक कि नन्ही-नन्ही कन्याओं, जिन्हें नवरात्रों में देवी समझकर पूजा जाता है, उनके साथ दिल दहला देने वाले सामूहिक बलात्कार और हत्याएं हो रही हैं कि सुनकर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। क्या इसलिए कि हमारा चरित्र गिर गया है या बड़ी-बड़ी उच्च डिग्रियां लेकर भी हम मानसिक दृष्टि से गिरे हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों से मानव समाज में तकनीकी व आर्थिक क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन मूल्य प्रभावित हुए हैं। परिवर्तन समय की स्वाभाविक वृति है। ऐसा कभी नहीं था कि परिवर्तन रुका हो। आज हम इतराते हैं कि हम चांद पर पहुंच गए। मंगल और शुक्र ग्रह भी घूम आए। सेंसर जैसी कई अन्य आधुनिकतम तकनीक से उंगली के संकेत से मनवांछित प्राप्त कर सकते हैं। तीव्र गति से होने वाली वैज्ञानिक प्रगति नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। इस क्रांति में इंटरनेट एक ऐसे व्यापक हाईवे के रूप में सामने आया है जिसने समूचे विश्व को अपने आलिंगन में ले लिया है। इंटरनेट की सहायता से हम दुनिया भर की जानकारियां उपलब्ध करा सकते हैं।

पहले हम कहते थे कि विज्ञान ने संसार को कुटुंब बना दिया, किंतु आज इंटरनेट ने मानों कुटुंब को ही कमरे में उपस्थित कर दिया है। मानव जीवन में इंटरनेट क्रांति एक महत्वपूर्ण बदलाव लाई है, पर हर सच्चाई के साथ बुराई, प्रगति के साथ अवनति, उत्थान के साथ पतन जुड़े रहते हैं। अत: जब कल्याण और प्रगति के लिए कोई नई सोच, विधि, तकनीक सामने आती है तो पीछे से शैतानी प्रवृत्ति भी चुपके से प्रवेश कर लेती है। राक्षसी वृति का अच्छाई के साथ सदा ही विरोध रहा है। हमारे पुराणों में अनेक ऐसे दृष्टांत हंै। भस्मासुर, महिषासुर, रावण आदि घोर तपस्या कर ईश्वर से अपने अस्तित्व और वर्चस्व के स्थायित्व का वरदान मांगते थे और वरदान मिल जाने पर उसका दुरुपयोग करते थे। इसी प्रकार वैज्ञानिक अनुसंधान व आविष्कार भी वैज्ञानिकों की तपस्या का परिणाम होते हैं। यही इंटरनेट की दुनिया में भी हुआ है जहां दुर्लभ उपयोगी जानकारियां एक ही क्लिक में मिल रही हैं, वहीं पर अश्लीलता भी परोसी जाने लगी है। कई प्रकार की ठगी हो रही है। युवाओं विशेष रूप से किशोरावस्था वालों के लिए यह हर प्रकार से हानिकारक सिद्ध होने लगा है। बच्चा जब गर्भ में होता है तो मां जैसे वातावरण में रहती है, उसका महत्वपूर्ण प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। धार्मिक ग्रंथ महाभारत में भी अभिमन्यु के चक्रव्यूह भेदने के प्रसंग में यह बात आई है और नारद के आश्रम में जन्म लेकर वहां के विष्णुमय वातावरण में पलकर हिरण्यकश्यप जैसे दैत्य का पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त बन गया था। यही बात विज्ञान और चिकित्सक भी कहते हैं कि गर्भवती महिला को स्वस्थ आहार के साथ स्वस्थ वातावरण मिलना चाहिए, पर आज की अधिकतर माताएं जब गर्भावस्था में बेड रैस्ट पर होती हैं या फुर्सत मिलती है तो इंटरनेट की दुनिया में मनोरंजन की सामग्री की ओर अधिक व धार्मिक या नैतिक शिक्षाप्रद वीडियो कार्यक्रमों की ओर कम ही झुकाव रखती हंै। बच्चा गर्भ में ही इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश कर जाता है। शिशु जब धरा पर अवतरित होता है तो कुछ माह के बाद मां बच्चे को आया या मेड के पास छोडक़र नौकरी पर चली जाती है या कुछ गृहणियां घर का काम निपटाने के लिए स्मार्टफोन में यूट्यूब पर डांस या गाना लगाकर बच्चों को पकड़ा देती हैं। जो बच्चे मां से चिपके रहते थे वे फोन से चिपके रहते हैं।

धीरे-धीरे बच्चा जब बड़ा होता है तो बोलकर नेट चलाना सीख जाता है और यही कच्ची उम्र जिज्ञासा का भंडार होती है। जैसे-जैसे वह पांच-सात वर्ष का होता है, नेट की दुनिया का आदी बन चुका होता है। फिर नेट की दुनिया में वह अश्लीलता की दुनिया में अनजाने में ही कदम रख देता है। जो सुकोमल आयु और तन चरित्र निर्माण के सुसंस्कार की पवित्र गंगा से सराबोर होने के होते हैं, वे कोमल आयु और तन अपनी आयु से आगे निकलकर अश्लीलता के रास्ते की कीचड़ में लिप्त होने लगते हैं। अगर बच्चे में अच्छे संस्कार भरे होंगे, विवेकशील होंगे, उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान बचपन से उसके दिलों दिमाग में भर दिया गया होगा, तब तो वह इस नरक की दुनिया से दूर होकर अपना रास्ता बदल देगा, पर इसके विपरीत परिस्थितियां होंगी तो बच्चे इन अश्लील वेबसाइटों के आदी हो जाएंगे। हाल ही में सुर्खियों में रहे केस कोलकाता में एक डॉक्टर युवती से बलात्कार व हत्या का आरोपी पोर्न फिल्मों का आदी बताया गया है। सोशल मीडिया में ऐसी अश्लीलता परोसने वालों पर कोई रोक नहीं है। धड़ल्ले से पोर्न फिल्में बन रही हंै। इन पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसी प्रकार वेब सीरीज की भी शुरुआत हुई जिसमें सेंसरशिप का कोई डर या रोक नहीं है। खूब गंदी गालियां दी जाती हैं।

अश्लील दृश्य जिन्हें बोल्ड सीन कहा जाता है, खुलकर दिखाए जाते हैं। अगर इंटरनेट पर कोई देश-विदेश के समाचार या अन्य महत्वपूर्ण जानकारी लेनी हो तो ये अश्लील वीडियो या विज्ञापन भी साथ ही दिखने लगते हैं। नादान बच्चे जिज्ञासा में इनमें भटक जाते हैं। संयुक्त परिवार में बड़े-बुजुर्गों का डर होता था। पर आज अलग कमरों में बच्चे सोशल मीडिया में क्या देख रहे हैं, इसका न तो बच्चों को डर है, न बड़ों को खबर है। मानसिक विकृति बढ़ती जा रही है। पोर्न फिल्में या वेब सीरीज देखने की आदत से बच्चों का मानसिक और शारीरिक पतन हो रहा है। वे इनके पीछे पागल से हो रहे हैं। मस्तिष्क में सोचने की क्षमता कम हो रही है। उनमें एक नशा सा छा रहा है। याददाश्त कम होने लगी है। मानसिक विकृति इतनी हावी हो गई है कि 10-12 वर्ष का बच्चा 5 साल की कन्या से बलात्कार कर रहा है। आज की कन्या या युवती अपने परिवार में भी सुरक्षित नहीं है। बाड़ ही फसल को खा रही है। इतना पागलपन, इतनी विकृत मानसिकता के कारण टूटते घर-परिवार, आधुनिकता की अंधी दौड़ व इंटरनेट में पोर्न फिल्में आदि हैं।

कविता सिसोदिया

स्वतंत्र लेखिका


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