शहजाद पूनावाला के पसमांदा मुसलमान

इतनी विवेचना के बाद भी मेरा कहना है कि शहजाद पूनावाला जो कह रहे हैं कि पसमांदा होने के कारण उनसे मुसलमान भेदभाव कर रहे हैं, वह शत-प्रतिशत सही है। बस फर्क इतना ही है कि पूनावाला को लगता है कि तथाकथित छोटी जातियों से इस्लाम में चले जाने वाले देसी मुसलमानों से ही भेदभाव किया जाता है। जमीनी असलियत यह है कि अरब मूल के सैयदों व शेखों के लिए हर देसी मुसलमान पसमांदा ही है, चाहे वह ब्राह्मण या राजपूत, पश्तून या बलोच बिरादरी से ही इस्लाम पंथ में क्यों न गया हो। उनके लिए क्या पठान, क्या ‘बिरहमन’, सब दोयम दर्जे के ही हैं। यह अलग बात है कि पश्तून या ब्राह्मण सैयदों या शेखों के बराबर बैठने की बचकानी हरकतें करते रहें…

मरियम नवाज शरीफ, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मियां मोहम्मद नवाज शरीफ की बेटी और वर्तमान में पश्चिमी पंजाब की मुख्यमंत्री हैं। 31 अक्तूबर 2024 को दिवाली का दिन था। मरियम ने पाकिस्तान के हिंदू-सिखों को दिवाली की शुभकामनाएं दी। यहां तक तो शायद ठीक था। लेकिन वह इससे भी एक कदम आगे चली गईं। उन्होंने अपने घर में दिवाली मनाई, उसमें दूसरे लोगों को आमंत्रित किया और यहीं बस नहीं, उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी डाल दीं। पाकिस्तान में ही ऐसा एक और वाकया हुआ। वहां की प्रसिद्ध अभिनेत्री सोनिया हुसैन ने भी अपने घर दिवाली मनाई। इस त्योहार में उसका परिवार तो था ही, लेकिन उसके अन्य सहयोगी सरबत गिलानी, फहद मिर्जा, सनम सैयद, मोहिब मिर्जा, तारा महमूद, शहरयार मुन्नवर सिद्दीकी और माहीन सिद्दीकी भी शामिल हुए। ऐसा ही एक हादसा शहजाद पूनावाला के साथ भी हो गया है। उन्होंने भी अपने घर में दिवाली मनाई और उसको सोशल मीडिया पर प्रसारित भी कर दिया है। अब इसको लेकर बवाल मचा हुआ है। मुसलमान उन दोनों को धमकियां दे रहे हैं कि उन्होंने दिवाली क्यों मनाई? यह कुफर है। जब सारी दुनिया दिवाली मना रही है तो मरियम नवाज शरीफ, सोनिया हुसैन और शहजाद पूनावाला के दिवाली मनाने को लेकर इतना एतराज क्यों हो रहा है? मरियम शरीफ का सिर काट कर लाने के लिए तो शायद दस लाख का ईनाम भी रख दिया गया है। शहजाद पूनावाला भी, दिवाली मनाने के कारण मुसलमान उनका विरोध कर रहे हैं, उसका कारण तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें पसमांदा होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है। पसमांदा अरबी-फारसी भाषा का शब्द है जिसका भारतीय भाषाओं में अनुवाद छोटा, घटिया या तुच्छ इत्यादि होता है।

हिंदुस्तान में तथाकथित छोटी बिरादरियों से जो लोग इस्लाम में मतांतरित हो गए, उन्हें लगता है कि मुसलमान उन्हें पसमांदा कहते हैं और उसी तर्ज से उनसे व्यवहार भी करते हैं। शहजाद पूनावाला की परिभाषा को यदि सही भी मान लिया जाए, तो मरियम नवाज शरीफ और सोनिया हुसैन तो इस लिहाज से पसमांदा नहीं कही जा सकती। शरीफ परिवार तो कश्मीरी ब्राह्मण हैं जो अरसा पहले कश्मीर से आकर अमृतसर में बस गए थे और 1947 में दस कदम दूर लाहौर में चले गए। कमाया-खाया और पाकिस्तान में राजनीति के शिखर पर बैठे। लेकिन दिवाली मनाने को लेकर मुसलमान उनसे भी बेहद खफा हो रहे हैं। उनका सिर काटने के लिए ईनाम रखे जा रहे हैं। सोनिया हुसैन भी इस लिहाज से पसमांदा नहीं कही जा सकती। उसके दिवाली उत्सव में जो लोग शिरकत कर रहे थे, उनमें से दो सनम सैयद और सरबत गिलानी तो साफ-साफ अरब मूल के ही थे। इन दो को छोड़ कर बाकी देसी मुसलमान ही थे। पसमांदा न होने के बावजूद वे मुसलमानों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं। लेकिन मुसलमान तो दिवाली मनाने को लेकर उनसे एक जैसा व्यवहार कर रहे हैं। इसलिए इन दोनों से इस प्रकार के व्यवहार का कारण कहीं और ढूंढना पड़ेगा। शहजाद पूनावाला, मरियम नवाज शरीफ और सोनिया हुसैन, इन तीनों में समानता क्या है? यदि इसका उत्तर मिल जाए तो शायद इस भेदकारी व्यवहार का कारण पकड़ में आ सकता है। तीनों में एक समानता तो बहुत ही स्पष्ट है कि तीनों देसी मुसलमान हैं। देसी मुसलमान का अर्थ है कि ये वे भारतीय हैं जिन्होंने कभी अरबों या तुर्कों के हमलों के बाद, अरबों या तुर्कों का ही भारत पर शासन हो गया तो किन्हीं कारणों से इन्होंने अपना मजहब बदल लिया और अरबों के तरीके से परमात्मा की पूजा करने लगे। यहां तक तो ठीक था। लेकिन क्या अरबों या तुर्कों का मजहब अपना लेने के बाद एटीएम (अरब, तुर्क, मुगल) मूल के विदेशी हमलावरों ने इन भारतीयों को अपने बराबर मान लिया? इस प्रश्न का उत्तर मिल जाने से शहजाद पूनावाला, मरियम नवाज शरीफ और सोनिया हुसैन के दिवाली मनाने को लेकर जो गुस्सा मुसलमानों में उबल रहा है, उसका कारण पकड़ में आ सकता है। मुसलमानों को गुस्सा दिवाली मनाने वाले देसी मुसलमानों पर भी आता है और साधु-संतों के स्मृति स्थलों, जिनको दरगाह भी कहा जाता है, पर पूजा-पाठ करने वाले देसी मुसलमानों पर भी आता है। देसी मुसलमान हैरान होकर एटीएम से जब इसका कारण पूछता है तो उत्तर मिलता है कि हम अरब में ऐसा नहीं करते। यही सबसे बड़ा पेंच है।

अरब के लोग अपने तीज त्योहार मनाएंगे और ईरान के मुसलमान अपने देश के तीज त्योहार मनाएंगे। भारत के मुसलमान अपने त्योहार मनाएंगे। उन्होंने इस्लाम पंथ को स्वीकार किया है, अरब देश के त्योहारों और संस्कृति को तो उधार नहीं लिया है। लेकिन भारत में रह रहे अरब और तुर्क मूल के मुसलमानों का कहना है कि जिन भारतीयों ने हमारा मजहब स्वीकार किया है, उन्हें हर हालत में अरब-तुर्क संस्कृति, त्योहार और वेशभूषा भी अपनानी पड़ेगी। अब ये देसी मुसलमान अपने देश के त्योहार नहीं मना सकते। अरब-तुर्क-मुगल मूल के मुसलमानों को लगता है कि जब ये उनके मजहब में आ गए हैं तो इनके सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को नियंत्रित करने का अधिकार भी उनको मिल गया है। अरबों और तुर्कों में तो दिवाली मनाई नहीं जाती, फिर हिंदुस्तान के देसी मुसलमान यह त्योहार कैसे मना सकते हैं? यदि ऐसा करेंगे तो ‘सिर तन से जुदा’ के लिए दस लाख ईनाम भी रखा जा सकता है, जैसा मरियम नवाज शरीफ के मामले में हो रहा है। एटीएम का गुस्सा इसी बात को लेकर है। यदि अरबों का मजहब अपनाया है तो अरबों का सामाजिक निजाम भी मानना होगा। लेकिन इतनी विवेचना के बाद भी मेरा कहना है कि शहजाद पूनावाला जो कह रहे हैं कि पसमांदा होने के कारण उनसे मुसलमान भेदभाव कर रहे हैं, वह शत-प्रतिशत सही है। बस फर्क इतना ही है कि पूनावाला को लगता है कि तथाकथित छोटी जातियों से इस्लाम में चले जाने वाले देसी मुसलमानों से ही भेदभाव किया जाता है। जमीनी असलियत यह है कि अरब मूल के सैयदों व शेखों के लिए हर देसी मुसलमान पसमांदा ही है, चाहे वह ब्राह्मण या राजपूत, पश्तून या बलोच बिरादरी से ही इस्लाम पंथ में क्यों न गया हो।

उनके लिए क्या पठान, क्या ‘बिरहमन’, सब दोयम दर्जे के ही हैं। यह अलग बात है कि पश्तून या ब्राह्मण इस्लाम में चले जाने के बाद नकली टोपियां लगा कर सैयदों या शेखों के बराबर बैठने की बचकानी हरकतें करते रहें। लेकिन वहां से मान्यता नहीं मिली। हमारे कश्मीर के ब्राह्मण वंश के अब्दुल्ला कितने दशकों तक अपने नाम के आगे शेख लिख कर अरबी सैयदों और शेखों से बराबरी का इजहार करते रहे, लेकिन असफल होने पर अंत में शेख लिखना छोड़ दिया। एटीएम की नजर में केवल शहजाद पूनावाला ही नहीं, मरियम नवाज शरीफ और सोनिया हुसैन भी पसमांदा ही हैं।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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