बाबा नाहर सिंह मंदिर
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित धौलरा नामक स्थान पर मौजूद बाबा नाहर सिंह मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से मनोकामना मांगता है उसे बाबा नाहर सिंह जरूर पूरा करते हैं। बिलासपुर जनपद के अराध्य देव बाबा नाहर सिंह को वीर व बजिया के रूप में भी भक्तजन मानते हैं। धार्मिक ग्रंथों में 52 वीरों का वर्णन मिलता है। उन 52 वीरों में से बाबा नाहर सिंह भी एक वीर हैं। जिनका मंदिर नगर के धौलरा में स्थित है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माथा टकने पहुंचते है। क्या है मंदिर की मान्यता- वास्तव में नाहर ङ्क्षसह कहलूर रियासत के एक महाप्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुंकुम देवी के साथ कुल्लू से आए हैं। राजा ने ही इस देवता का मंदिर अपने महल के समीप धौलरा में बनवाया था। राजा दीपंचद ने सन् 1653 ई. से 1665 ई. तक कहलूर रियासत का राज काज संभाला था। इस राजा ने सन् 1655 ई. में सुन्हाणी से बिलासपुर को अपनी राजधानी बदली थी। बिलासपुर नाम उसी ने रखा था। उसके दो विवाह हुए थे। एक मंडी राजा की पुत्री जलाल देवी से और दूसरा कुल्लू की राजकुमारी कुंकुम देवी से। कुल्लू से दीपचंद जब कुंकुम देवी को विवाह कर लाने लगा, तो राजकुमारी की डोली एकाएक भारी हो गई। डोली को कहार उठा नहीं पा रहे थे। उन्होंने बहुत जोर लगाया मगर सफल नहीं हुए। क्या बात है कुल्लू नरेश ने कहारों से पूछा? राजकुमारी की डोली पहाड़ से भी भारी है। यह नहीं उठ रही महाराज, कहारों ने राजा को जवाब दिया था। उन्हें असहाय देख कर राजा ने अपने राजपुरोहित से इसका राज पुछा। पुरोहित बोला, देव नाराज है। क्या चाहते हैं देव? राजकुमारी संग कहलूर जाना चाहते हैं।
ऐसे हुई मंदिर की स्थापना- यह सब सुनकर कुल्लू के राजा ने हाथ जोडक़र देवता से जाने को कहा। राजा के हां करने की देर थी कि राजकुमारी की डोली फूलों से भी हल्की हो गई। सब तरफ खुशी छा गई। कहते है उसके बाद बाबा नाहर ङ्क्षसह वीर की चरण पादुकाएं राजकुमारी कुंकुम देवी की डोली के साथ कहलूर यानी बिलासपुर आई थी। कुल्लू रियासत के राजा के महल के साथ ऊपर की तरफ बाबा नाहर ङ्क्षसह वीर का प्राचीन मंदिर आज भी दर्शकों व श्रद्धालुओं का आर्कषण का केंद्र बना हुआ है। कुल्लू में भी इस देवता की पूजा लोग श्रद्धा व विश्वास से करते हैं। बाबा नाहर सिंह कुल्लू के राज परिवार के भी कुलदेवता हैं। बिलासपुर में हर मंगलवार व रविवार को भी धौलरा में बाबा के मंदिर में श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। हाट बाजार सजता है। कई श्रद्धालुओं को यहां नंगे पांव माथा टेकने आते देखा जा सकता है। कई लोग बाबा नाहर सिंह परिसर में खेलते भी देखे जाते हैं। तब देव उनकी जुबान में ही सब कुछ बतलाते है। क्या भूल हुई है? क्यों देव नाराज हैं? यह सब संबंधित व्यक्ति खेलता हुआ बताता है। तब उससे उसके संबंधी माथा टेकवाकर भूल सुधारते हैं। फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है। बाबा को आटे का मीठा रोट, सुपारी, गुग्गल धूप व लौंग, इलायची इत्र आदि पसंद है। फसल आने पर लोग यहां बाबा के मंदिर में रोट चढ़ाते हैं। मनौती मानते हैं। शादी, पुत्र जन्म की बधाई देने जातरा लेकर नाचते गाते पहुंचते हैं। रात को मंदिर में जागरण भी होते हैं।
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