गीता मंदिर

By: Dec 7th, 2024 12:21 am

मथुरा को उसके प्राचीन स्थल और धार्मिक जगहों के लिए जाना जाता है। यहां पर बना गीता मंदिर बहुत सुंदर और प्रसिद्ध है। मथुरा से 6 मील उत्तर में वृंदावन है। किंतु रेल मार्ग से जाने पर उसकी दूरी 9 मील होती है। मथुरा छावनी स्टेशन से छोटी लाइन की ट्रेन मथुरा जंक्शन होकर वृंदावन जाती है। मथुरा से वृंदावन तक मोटर, बसें चलती हैं और मथुरा के वृंदावन दरवाजा से रिक्शे, तांगे भी मिलते हैं। मथुरा-वृंदावन मार्ग पर लगभग मध्य में हिंदू धर्म के महान पोषक श्री जुगलकिशोर जी बिड़ला का बनवाया भव्य गीता मंदिर है, जिसमें गीता गायक की संगमरमर की विशाल एवं सुंदर मूर्ति स्थापित है एवं संपूर्ण गीता विशिष्ट अक्षरों में पत्थर पर खुदी है। यहां प्रतिदिन प्रात:-सायं दोनों समय सुमधुर स्वरों में नियमित रूप से भगवन्नाम कीर्तन तथा पद गायन भी होता है। ठहरने के लिए सुंदर तथा सुव्यवस्थित धर्मशाला भी है। वृंदावन में ठहरने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं हैं। वृंदावन एक ऐसा शहर है, जो अपने मंदिरों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, जहां हजारों भक्त भगवान कृष्ण की जन्मस्थली का दर्शन करने आते हैं। सबसे सुंदर मंदिरों में से एक गीता मंदिर है जो मथुरा-वृंदावन रोड पर स्थित है। भगवद्गीता मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण है। श्री बिहारी जी के मंदिर के आसपास, भजनाश्रम के पास, श्रीरंगजी के मंदिर के पास तथा और भी कई धर्मशालाएं हैं। भक्तवर श्रीजानकी दासजी पाटोदिया द्वारा स्थापित पुराना भजनाश्रम है, जहां हजारों असहाय माताएं कीर्तन करके अन्न पाती हैं।

आचार्य श्रीचक्रपाणि जी का नारायणाश्रम तथा श्रीशिव भगवानजी फोगला के अथक प्रयत्न से निर्मित वृंदावन भजन सेवाश्रम श्री उडिय़ा बाबाजी का आश्रम तथा कानपुर के सिंहानिया द्वारा बनवाया सुंदर मंदिर, स्वामी श्रीशरण नंद जी का मानव सेवा संघ आश्रम आदि नवीन उपयोगी स्थान हैं। वृंदावन की परिक्रमा 4 मील की है। बहुत से लोग प्रतिदिन परिक्रमा करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथा है कि सतयुग में महाराजा केदार की पुत्री वृंदा ने यहीं श्रीकृष्ण जी को पति रूप में पाने के लिए दीर्घकाल तक तपस्या की थी। श्यामसुंदर ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिया। वृंदा की पावन तपोभूमि होने से यह वृंदावन कहा जाता है। श्रीराधा-कृष्ण की निकुंज लीलाओं की प्रधान रंगस्थली वृंदावन ही है। उसकी अधिष्ठात्री श्रीवृंदादेवी हैं, इसलिए इसे वृंदावन कहते हैं। आप दिन के किसी भी समय गीता मंदिर में दर्शन कर सकते हैं, लेकिन भक्त सुबह की आरती का हिस्सा बनना पसंद करते हैं। जन्माष्टमी और होली के त्योहारों को यहां बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और मंदिर को बड़े पैमाने पर सजाया जाता है। विशेष रूप से गीता जयंती के अवसर पर, मंदिर में भक्तों का एक बड़ा वर्ग आता है। इस दौरान मंदिर को फूलों व लाईटों से सजाया जाता है। इस दिन श्रद्धालुओं की बहुत भारी भीड़ एकत्रित होती है। लोग दूर-दूर से भगवान कृष्ण के दर्शन और अर्जुन को दिए गीता ज्ञान का उपदेश सुनने पहुंचते हैं। गीता एक महान ग्रंथ है, जिसकी वजह से इस दिन गीता जयंती मनाई जाती है।


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