गीता रहस्य
स्वामी रामस्वरूप
‘वेद्यम’ पद का अर्थ जानने योग्य अर्थात वह निराकार, सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो आदिदेव, सनातन पुरुष एवं जगत को आश्रय देने वाला एवं सबके कर्मों को जानने वाला होता है, वह ही जानने योग्य है…
गतांक से आगे…
श्लोक में कहा, ‘विश्वस्य परम निधानम’ अर्थात वह निराकार परमेश्वर समस्त जगत का आश्रय है। पिछले कई श्लोकों में इस विषय में विस्तार से समझाया गया है कि वर्तमान काल में भी समस्त जगत ईश्वर के आश्रय में है, वह हमारा पालन-पोषण कर रहा है और प्रलयावस्था में समस्त जगत प्रकृति के रूप में आ जाएगा और जीवात्माओं के शरीर नष्ट हो जाएंगे, तब ऋग्वेद मंत्र 10/129/7 के अनुसार वह प्रकृति एवं जीवात्माओं दोनों को अपने अंदर सहारा देकर सुरक्षित रखता है।
इसलिए उसको ‘विश्वस्य परम निधानम’ कहा है। वेत्ता का अर्थ है कि परमेश्वर सबको जानने वाला है जैसा कि यजुर्वेद मंत्र 32/10 में कहा, ‘स: विधाता धामानि वेद विश्वा भुवनानि’ अर्थात (स:) वह ईश्वर (विधाता) विशेष रूप से सबको धारण करने वाला और कर्म आदि का फल देने वाला है, वह (विश्वा) सब (भुवनानि) लोकों को (वेद) जानता है। इस निराकार, अजन्मा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई परमेश्वर नहीं है जिसमें ये सब गुण हों।
‘वेद्यम’ पद का अर्थ जानने योग्य अर्थात वह निराकार, सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो आदिदेव, सनातन पुरुष एवं जगत को आश्रय देने वाला एवं सबके कर्मों को जानने वाला होता है, वह ही जानने योग्य है। उस परमेश्वर को ही, उसकी कही वैदिक विद्या को जानकर उसको जाना जा सकता है। उसके जाने बिना कोई मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता अपितु सदा दु:खी ही रहेगा। ‘परमधाम’ का अर्थ भी यही है कि उसने जीव और प्रकृति को धारण किया हुआ है अपने अंदर आश्रय दिया हुआ है, अत: वह निराकार परमेश्वर ही परमधाम है। मृत्यु के पश्चात भी हम उसी के आश्रय में जाकर लीन हो जाते हैं। -क्रमश:
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