प्रभु श्रीराम के जीवन की साक्षी रही है सरयू नदी
देश में गंगा, यमुना, गोदावरी और नर्मदा जैसी पवित्र नदियों का अपना महत्त्व है, तो वहीं सरयू नदी प्रभु श्रीराम के वनवास काल से लेकर उनकी अयोध्या वापसी और बैकुंठगमन तक साक्षी बनी। नदियों की बात की जाए तो सरयू नदी का अपना अलग इतिहास, पहचान व महत्त्व रहा है। सरयू नदी का नाम सुनते ही मन प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या पहुंच जाता है। अयोध्या की गाथा सरयू के बिना अधूरी है। तो आइए जानते हैं भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या से सरयू नदी का संबंध और इसका महत्त्व।
सरयू का महत्त्व- सरयू नदी में स्नान के महत्त्व का वर्णन करते हुए रामचरित मानस में बताया गया है। अयोध्या के उत्तर दिशा में उत्तरवाहिनी सरयू नदी बहती है। एक बार भगवान राम ने लक्ष्मण जी को बताया कि सरयू नदी इतनी पावन है कि यहां सभी तीर्थ दर्शन और स्नान के लिए आते हैं। सरयू नदी में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन करने का पुण्य मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति सरयू नदी में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है, उसे सभी तीर्थों के दर्शन करने का फल मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरयू व शारदा नदी का संगम तो हुआ ही है, सरयू व गंगा का संगम श्री राम के पूर्वज भागीरथ ने करवाया था। ऐसे में सरयू नदी के तट पर बसी श्री राम की नगरी अयोध्या का बहुत महत्तव है।
सरयू नदी की उत्पत्ति- पुराणों के अनुसार सरयू नदी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के नेत्रों से हुई है। प्राचीन काल में शंखासुर दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल दिया और खुद भी वहीं छिप गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध कर दिया। फिर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को वेद सौंपकर अपना वास्तविक रूप धारण किया। इस दौरान भगवान विष्णु खुश हो उठे और उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। ब्रह्माजी ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला। यहीं जलधारा सरयू नदी कहलाई।
सरयू नदी किसकी पुत्री है-मानस खंड में सरयू को गंगा और गोमती को यमुना नदी का दर्जा दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस प्रकार गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाए थे। उसी प्रकार सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया था। भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को जाता है।
सरयू को क्यों मिला श्राप- भगवान राम ने सरयू नदी में ही जल समाधि ली थी। जिस वजह से भगवान भोलेनाथ उन पर बहुत क्रोधित हुए थे और उन्होंने सरयू का श्राप दे दिया कि तुम्हारा जल मंदिर में चढ़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। साथ ही किसी पूजा पाठ में भी तुम्हारे जल का प्रयोग नहीं किया जाएगा। इसके बाद सरयू भगवान भोलेनाथ के चरणों में गिर पड़ी और कहा, प्रभु इसमें मेरा क्या दोष है। भगवान भोलेनाथ ने कहा, मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन तुम्हारे जल में स्नान करने से लोगों के पाप धुल जाएंगे।
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