सत्ता सुख बड़ा मजेदार, पर ये तो हिमाचल से बड़े कर्जदार, फिर कौन सी सरकार असरदार?
दिव्य हिमाचल डिजिटल डेस्क
सत्ता का सुख होता तो बड़ा मजेदार है। इस सुख के लिए राजनीतिक दल चुनावों के समय कभी-कभी ऐसे वादे भी कर जाते हैं, जिन्हें बाद में पूरा करना चुनौती बन जाता है। सत्ता का स्वाद ऐसा है कि वादे निभाने के लिए सरकारें अपनी चादर से भी बड़ा पैर पसार देती हैं। फिर चाहे राज्य की आर्थिकी इन वादों को पूरा करने में सक्षम न भी हो, लेकिन विपक्ष के चुभते तीरों और जनता की नजर में बेहतर बने रहने के लिए सरकारों को कर्ज का सहारा लेना पड़ जाता है। देश की मौजूदा राजनीति में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, जनता को फ्री में देने के चक्कर में सभी राज्य कर्ज के मकडज़ाल में उलझते जा रहे हैं।
राज्य का आर्थिक ढांचा लडख़ड़ा जाता है। विकास के लिए बजट भी नहीं बचता, लेकिन वादे निभाने के लिए बजट का जुगाड़ करना पड़ता है। बेरोजगारों की लंबी फौज सामने होती है, पर बजट के अभाव में रोजगार के रास्ते नहीं बन पाते। जनता को लुभाने और सत्ता में बने रहने के लिए फ्री में कई योजनाएं चला दी जाती हैं, लेकिन पैसा होता नहीं। फिर इसके बाद शुरू होता है कर्ज का वह खेल, जिसमें एक बार धंस गए, तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
देश के सभी राज्य इस वक्त इसी दलदल में धंस रहे हैं। कभी केेंद्र सरकार, तो कभी आरबीआई, तो फिर कभी अन्य वित्तीय एजेंसियों से कर्ज लिया जा रहा है। और कर्ज का यह पहाड़ दिन-प्रतिदिन आकाश को छूता जा रहा है। फिर इसी कर्ज को चुकाने के लिए और कर्ज लिया जा रहा है। आखिर सरकारें ऐस करती ही क्यों हैं, क्यों विकास पर पैसा लगाने की बजाय फ्री में चीजें बांटने पर लगाया जा रहा है। देश के बड़े-बड़े राज्य तो कर्ज में डूबे ही हैं, लेकिन छोट से छोटे राज्य भी कर्ज के समंदर में गोते खा रहे हैं।
पहाड़ी राज्यों पर कर्ज का पहाड़
70 लाख की आबादी वाला पहाड़ी राज्य हिमाचल इस वक्त कर्ज के मामले में पहाड़ी राज्यों में सबसे ऊपर है। हिामचल पर इस वक्त 94,992.2 करोड़ का कर्ज है। यह कर्ज साल दर साल बढ़ता जा रहा है। हिमाचल में बजट का सबसे ज्यादा हिस्सा कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर चला जाता है। हिमाचल में आय के इतनेे अधिक साधन नहीं हैं, जिसके चलते उसे केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर वहां से मदद न मिले तो आरबीआई से कर्ज लेना पड़ता है।
सबसे ज्यादा कर्ज तले दबे राज्य
तमिलनाडु 8,34,543 करोड़
उत्तर प्रदेश 7,69,245.3 करोड़
महाराष्ट्र 7,22,887.3 करोड़
पश्चिम बंगाल 6,58,426.2 करोड़
कर्नाटक 5,97,618.4 करोड़
राजस्थान 5,62,494.9 करोड़
आंध्र प्रदेश 4,85,490.8 करोड़
गुजरात 4,67,464.4 करोड़
केरल 4,29,270.6 करोड़
मध्य प्रदेश 4,18,056 करोड़
तेलंगाना 3,89,672.5 करोड़
बिहार 3,19,618.3 करोड़
पहाड़ी राज्यों पर कर्ज
हिमाचल 94,992.2 करोड़
उत्तराखंड 89466 करोड़
त्रिपुरा 26505.8 करोड़
अरुणाचल 21654.2 करोड़
मेघालय 20029.9 करोड़
मणिपुर 19245.8 करोड़
नागालैंड 18165.8 करोड़
सिक्किम 15529.5 करोड़
मिजोरम 14039.3 करोड़
छोटे राज्यों में पंजाब टॉपर
पंजाब 3,51,130.2 करोड़
हरियाणा 3,36,253 करोड़
असम 1,50,900.4 करोड़
झारखंड 1,31,455.6 करोड़
छत्तीसगढ़ 1,22,164.1 करोड़
ओडिशा 1,20,986.9 करोड़
गोवा 34758.4 करोड़
नोट—कर्ज के आंकड़े केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दिए गए हैं।
आबादी उत्तराखंड से कम, पर कर्ज ज्यादा
आबादी के हिसाब से बात करें, तो हिमाचल की आबादी उत्तराखंड से कम है, लेकिन हिमाचल पर कर्ज उत्तराखंड से ज्यादा। दोनों राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी हैं, लेकिन फिर भी हिमाचल पर कर्ज ज्यादा है। मौजूद समय की बात करें, तो उत्तराखंड की जनसंख्या 1.18 करोड़ के करीब है, लेकिन 89466 करोड़ का कर्ज है, जबकि हिमाचल की आबादी 70 लाख से ज्यादा है और कर्ज 94,992 करोड़ है। इसके अलावा त्रिपुरा की आबादी 41 लाख, अरुणाचल 16 लाख, मेघालय 33.87 लाख, मणिपुर-32.60 लाख, नागालैंड साढ़े 22 लाख, सिक्किम सात लाख और मिजोरम की आबादी साढ़े 12 लाख। इस वक्त मिजोरम पर सबसे कम 14039.3 करोड़ कर्ज है।
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