सुखबीर बादल पर हमले के तार और सियासत

अलबत्ता पुलिस ने इस बात का श्रेय लेने की कोशिश जरूर की है कि उसके एएसआई ने ही हमलावर का हाथ झटक कर गोली का रुख सुखबीर बादल की ओर से दीवार की ओर मोड़ दिया। मामला केवल चार सेकेंड का ही था। विक्रम सिंह मजीठिया ने स्पष्ट कर दिया कि वह एएसआई पिछले बाईस साल से बादल परिवार की सुरक्षा में तैनात है और अब परिवार के सदस्य की तरह ही है। पुलिस को सफलता का श्रेय तब दिया जा सकता था यदि हमलावर को बादल के पास पहुंचने से पहले ही पकड़ लिया गया होता। अलगाववादियों के मन में क्या चल रहा है, अब इसको समझने के लिए तो शोध करने की जरूरत नहीं है…

सुखबीर बादल को उस समय मारने की कोशिश की गई जिस समय वह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेवादार की भूमिका निभा रहा था। बादल परिवार देश विरोधी ताकतों के निशाने पर रहा है, यह सब जानते हैं। उसके पिता प्रकाश सिंह बादल लम्बे अरसे तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे हैं। एक समय उन्हें फख्र-ए-कौम के खिताब से निवाजा गया था। लेकिन कुछ दिन पहले जब सुखबीर बादल को सेवादार व कुछ अन्य सजाएं सुनाई गई थीं तो उसी समय उनके स्वर्गीय पिता प्रकाश सिंह से फख्र-ए-कौम का खिताब भी वापस ले लिया गया था। सुखबीर बादल के साथ अकाली दल से ताल्लुक रखने वाले कुछ अन्य लोगों को भी विभिन्न प्रकार की सजाएं दी गईं। मसलन स्वर्ण मंदिर में चल रहे लंगर में बर्तन साफ करना, शौचालयों की सफाई करना, सेवादार का काम करना इत्यादि। ये सजाएं इन सभी को पंजाब में अकाली दल की सरकार के समय लिए गए कुछेक फैसलों को लेकर दी गई हैं। अकाली दल के हाथ से 2017 में पंजाब की सत्ता खिसक गई थी। उसके बाद से अकाली दल फूट का शिकार हो गया और सत्ता खिसक जाने के कारणों पर भी चिंतन-मनन होता गया और अब भी हो रहा है।

जाहिर है चिन्तन-मनन पार्टी के भीतर ही नहीं, बाहर भी होता रहा। सब जानते हैं कि पार्टी के बाहर इस प्रकार की माथापच्ची करने वालों को आज की भाषा में थिंक टैंक कहा जाता है। पार्टी के भीतर हार के क्या कारण स्वीकार किए गए, यह तो पार्टी ही बेहतर जानती होगी, लेकिन बाहर के थिंक टैंकों ने यह स्थापित कर दिया कि हार का मुख्य कारण अकाली दल की सरकार के समय पंजाब में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की बेअदबी की कुछ घटनाएं हैं। जाहिर है इसकी जिम्मेदारी प्रकाश सिंह बादल और उनके सुपुत्र सुखबीर बादल के खाते में ही आतीं क्योंकि बड़े बादल साहिब मुख्यमंत्री थे और छोटे बादल साहिब उप मुख्यमंत्री थे। इतना ही नहीं पार्टी के प्रधान की कुर्सी भी पिता-पुत्र के बीच ही रही थी। जब एक बार यह अवधारणा स्थापित हो गई कि बेअदबी के जिम्मेदार प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से ‘बादल’ ही हैं तो पंजाब में प्रत्येक राजनीतिक दल चुनाव में इस बात की घोषणा करने लगा कि यदि वह जीत गया तो सबसे पहले बेअदबी के लिए उत्तरदायी इन लोगों को सजा दिलाएगा। उन दिनों में पंजाब के आला पुलिस अफसर कुंवर विजय प्रताप सिंह (मूलत: बिहार या उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं), जो आजकल पंजाब में आम आदमी पार्टी के विधायक हैं, का कहना है कि जिन आरोपों के कारण सुखबीर बादल को आज सजा सुनाई गई है, उन सब का जिक्र मैंने अपनी रिपोर्ट में किया था। दरअसल जिन दिनों कांग्रेस के कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने बेअदबी के मामले को लेकर कुंवर विजय प्रताप को जांच का जिम्मा सौंपा था।

कुंवर का कहना है कि मेरे बार-बार कहने पर भी कैप्टन ने उस रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की। कुंवर ने इसको आधार बना कर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और पंजाब की राजनीति में छलांग लगा दी थी। सारी उम्र पुलिस में खपा देने के कारण पंजाब की हवा को सूंघने व थोड़ा बहुत बदल देने योग्य हो ही गए थे। अपनी इसी महारत के चलते वे आम आदमी पार्टी में चले गए और विधायक भी बन गए। लेकिन अपनी रिपोर्ट को अहमियत न मिलने को लेकर बराबर रोते रहे। उनका मानना है कि कैप्टन की तर्ज पर भगवन्त मान भी उनकी रपट पर कार्रवाई नहीं कर रहे थे। अब जब सुखबीर बादल को सजा सुना दी गई, तो कुंवर विजय प्रताप सिंह का कहना है कि यह सब बातें मेरी रपट में हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि आला पुलिस अधिकारी होते हुए भी विजय प्रताप सिंह सुखबीर बादल पर हमले के मामले में आश्चर्यजनक तरीके से मौन हैं। सजा मिलने के बाद यह तो स्पष्ट हो गया था कि अब सुखबीर बादल एक सेवादार के रूप में स्वर्ण मंदिर के द्वार पर बैठेंगे। लेकिन केवल दो दिन के लिए ही वे वहां बैठेंगे, यह भी स्पष्ट था। उससे भी ज्यादा यह भी स्पष्ट था कि वहां आने वाले श्रद्धालुओं की तलाशी नहीं ले जाती। शायद इससे आसान अवसर व स्थान सुखबीर बादल की हत्या के लिए नहीं हो सकता था। यह साधारण सी बात, असाधारण काम करने वाली पंजाब पुलिस के वे चंद अधिकारी भी जानते ही होंगे जो इस प्रकार की घटनाओं को भांप कर रणनीति बनाते हैं। ऐसे अवसरों पर रणनीति प्राय: यह होती है कि किसी भी प्रकार से हत्यारे को उसके शिकार के पास आने से रोका जाए। कहा जा रहा है कि हमला करने वाला एक दिन पहले उस स्थान की रैकी करने भी आया था। ऐसा भी नहीं कि हमला करने वाला व्यक्ति कोई अज्ञात व्यक्ति हो। उस पर पहले से ही इस प्रकार के मामलों में अनेक मुकद्दमे चल रहे हैं। वह किसी अन्य प्रान्त से भी नहीं आया था। अमृतसर के पास डेरा बाबा नानक में ही रहता है। आम तौर पर जब किसी अति सुरक्षित व्यक्ति की सुरक्षा की व्यवस्था उस समय करनी हो जब उसे किन्हीं भी कारणों से ओपन स्पेस में बैठना हो तो पुलिस उस इलाके में रहने वाले संदिग्ध व्यक्तियों पर कड़ी निगरानी रखती है, ताकि वह अपने शिकार के नजदीक न फडक़ने पाए। सुखबीर बादल दो दिन इसी प्रकार की स्थिति में आने वाले थे।

ऐसे हालात में पंजाब पुलिस के उन चन्द गिने चुने वरिष्ठ अधिकारियों ने सुरक्षा की ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की? अलबत्ता पुलिस ने बहुत ही शातिराना तरीके से पूरी जांच और घटना को लेकर एक और ही नैरेटिव घडऩे की कोशिश की है। एक पत्रकार ने पूछा, क्या यह नहीं हो सकता हमदर्दी हासिल करने के लिए स्वयं ही हमला करवाया गया हो? पुलिस के अधिकारियों ने तुरन्त इस वांछित सवाल को हाथों हाथ पकड़ लिया। भगवन्त मान के मन में क्या चल रहा है, यह तो वे ही जानते होंगे। पुलिस सारा मामला किस ओर ले जाना चाहती है, इसका संकेत उसने दे ही दिया है। अलबत्ता पुलिस ने इस बात का श्रेय लेने की कोशिश जरूर की है कि उसके एएसआई ने ही हमलावर का हाथ झटक कर गोली का रुख सुखबीर बादल की ओर से दीवार की ओर मोड़ दिया। मामला केवल चार सेकेंड का ही था। विक्रम सिंह मजीठिया ने स्पष्ट कर दिया कि वह एएसआई पिछले बाईस साल से बादल परिवार की सुरक्षा में तैनात है और अब परिवार के सदस्य की तरह ही है। पुलिस को सफलता का श्रेय तब दिया जा सकता था यदि हमलावर को बादल के पास पहुंचने से पहले ही पकड़ लिया गया होता। अलगाववादियों के मन में क्या चल रहा है, अब इसको समझने के लिए तो शोध करने की जरूरत नहीं है। हमलावर के परिवार के साथ एक बड़े कांग्रेस नेता के संबंधों की बात भी पंजाब में चर्चा बनी हुई है। आम आदमी पार्टी को अपनी सफों की एक बार जांच करनी चाहिए। सब जानते हैं कि 2017 में उसकी सफों में से ऐसा बहुत सा अवांछित सामान निकल आया था। पंजाब को फिर आतंकवाद की ओर जाने से रोकना होगा।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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