आस्थाएं और संविधान की मूल प्रति में उकेरे चित्र

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 26 जनवरी 1950 को भारत में संविधान लागू हुआ था। इस उपलक्ष्य में हर साल हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। देशभर में गणतंत्र दिवस उत्साह, उमंग और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मगर भारत के संविधान के संदर्भ में बहुत कम लोगों को मालूम है कि इसकी मूल प्रति में भारतीय सभ्यता और संस्कृति से संबंधित महत्त्वपूर्ण चित्रों को सुप्रतिष्ठित किया गया था। इन चित्रों में भारतवर्ष की सनातन भारतीय आस्थाओं और सांस्कृतिक धरोहर की गहरी झलक मिलती है। इन चित्रों में वेद, संस्कृत शास्त्र, महापुरुषों और भारतीय कला के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों का समावेश किया गया है। तेजपाल सिंह ने अपनी किताब ‘राजनीति के सामाजिक सरोकार’ में लिखा है, 221 पेज के इस दस्तावेज के हर पन्ने पर तो चित्र बनाना संभव नहीं था। लिहाजा, नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए। संविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे। इस काम के लिए उन्हें 21000 मेहनताना दिया गया। अपनी महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट में उदिता सिंह परिहार ने लिखा है कि संविधान के भाग चार की शुरुआत कुरुक्षेत्र के चित्र से हुई है। इसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हुए दिखते हैं। इस भाग में राज्य की नीति के निर्देशक तत्त्व बताए गए हैं। संविधान के भाग तीन की शुरुआत श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के चित्र से हुई है।
इस भाग में मौलिक अधिकारों का उल्लेख है। यह पेज नंबर छह पर है। इस चित्र में श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण जी पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे हैं। संविधान के भाग आठ की शुरुआत हनुमान के चित्र से हुई है। इस भाग का नाम राज्य (पहली अनुसूची के भाग ग के राज्य) है। यह पेज नंबर 102 पर है। चित्र में हनुमान, सीता की तलाश में उड़ते हुए लंका जा रहे हैं। संविधान के भाग 12 में नटराज का चित्र बना हुआ है। इस भाग का नाम वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद है। यह पेज नंबर 113 पर है। यह दक्षिण भारतीय शैली का चित्र है जिसमें काल की छाती पर पैर रखकर नटराज नृत्य कर रहे हैं। संविधान के भाग पांच की शुरुआत गौतम बुद्ध से हुई है। इस भाग का नाम संघ है। यह पेज नंबर 20 पर है। संघ की शुरुआत बुद्ध के चित्र से हुई है। इस चित्र में बुद्ध लोगों को ज्ञान देते दिख रहे हैं। संविधान के भाग नौ की शुरुआत राजा विक्रमादित्य के चित्र से हुई है। इस भाग का नाम पहली अनुसूची के भाग घ में शामिल राज्य क्षेत्र है। यह पेज नंबर 104 पर है। चित्र में विक्रमादित्य सिंहासन बत्तीसी पर बैठे दिख रहे हैं। संविधान के भाग 11 पर राजा भरत का चित्र बना हुआ है। इस भाग का नाम संघ और राज्यों के बीच संबंध है। यह पेज नंबर 106 पर है। यह उडिय़ा शैली की एक कलाकृति है। इसमें राजा भरत घोड़े के साथ खड़े हैं।
श्रीराम-श्रीकृष्ण को राष्ट्रीय आदर्श के रूप में स्थापित करना चाहते थे संविधान निर्माता
संविधान निर्माता भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण को राष्ट्रीय आदर्श के रूप में स्थापित करना चाहते थे। इसीलिए संविधान में उन्होंने इनके चित्रों को विशेष महत्त्व दिया। डा. राकेश कुमार आर्य ने अपनी किताब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा भगवान श्रीराम में लिखा है कि हमारे इन सभी महापुरुषों ने किसी समय विशेष पर भारत के लोगों को विशेष रूप से प्रभावित किया है। श्रीराम और श्रीकृष्ण जी का व्यक्तित्व तो इतना विशाल है कि वह आज तक भारत सहित सारे विश्व के लोगों को प्रभावित और प्रेरित कर रहा है। जब भारत के संविधान निर्माता श्रीराम और श्रीकृष्ण को भारत के संविधान की मूल प्रति में स्थान दे रहे थे तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि इन दोनों महापुरुषों को भी आने वाले समय में लोग सांप्रदायिकता के नाम पर संविधान की प्रति से बाहर कर देंगे। हमारा मानना है कि इन दोनों महापुरुषों के चित्र संविधान की आने वाली हर प्रति में या प्रत्येक संस्करण में उपलब्ध रहने चाहिए थे, जिससे कि इनके महान व्यक्तित्व से आने वाली पीढिय़ां प्रेरणा लेती रहें। अपने देश के संविधान में यदि श्री राम का चित्र अंकित किया गया तो इसका अभिप्राय था कि हमारे देश के संविधान निर्माता, उन्हें राष्ट्रीय आदर्श के रूप में स्थापित करके देश की आने वाली पीढिय़ों के सामने प्रस्तुत करना चाहते थे।
चित्रों के बिना नहीं समझी जा सकती संविधान की मूल आत्मा
संविधान की मूल प्रति में वर्णित उन्हीं चित्रों में संविधान की मूल आत्मा बसती है। प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी का मानना है कि यह संविधान की मूल प्रति में बनाए गए चित्रों के बिना अंबेडकर के संविधान को सही ढंग से नहीं समझा जा सकता। संविधान में एक चित्र अश्वमेध यज्ञ का है। उस चित्र के माध्यम से समूचे भारतवर्ष की एकरूपता की भावना को समझा जा सकता है। भारत जब स्वतंत्र हुआ, तब सरदार पटेल ने देश की सभी रियासतों को विलय पत्र जारी कर उसी एकीकरण और एकरूपता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था। इसके अलावा संविधान की मूल प्रति में रामायण, महाभारत, धन के स्वामी कुबेर, गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी महाराज सहित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अनके चित्र मिलते हैं। उन चित्रों के बिना संविधान की मूल आत्मा को समझ पाना मुश्किल है। संविधान की मूल प्रति में अंकित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतिनिधि चित्रों के माध्यम से ही संविधान की उस मूल आत्मा और शब्दों को समझा जा सकता है। भारत सरकार के कानून मंत्रालय को चाहिए कि वह संविधान की मूल प्रति को प्रकाशित करवाए, ताकि हर भारतीय संविधान की मूल आत्मा को समझ सके।
-डा. रविंद्र सिंह भड़वाल
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