कैसे करें नव वर्ष का स्वागत

By: Jan 23rd, 2025 12:05 am

नव वर्ष स्वागत है, उस कठिन सर्दी का जिसने पिछले वर्ष में पडऩे के सभी रिकार्ड तोड़ दिए। स्वागत है, सुबह-शाम पडऩे वाले उस धुंध और कोहरे का, विलम्ब से चलती गाडिय़ों के साथ, रद्द उड़ानों के साथ और सुबह-शाम होती सडक़ दुर्घटनाओं के साथ जिसने आहतों की सुध-बुध के लिए समय पर कोई चौकस मसीहा भी नहीं दिया, क्योंकि सर्दी बहुत है और उसकी वजह से प्रशासन को ठंड लग गई है। बीता पिछला वर्ष बारिश के दिनों में अत्यधिक गर्मी और गर्मी के दिनों में धारासार बारिश झेलता रहा, क्योंकि उसका मुकाबला ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध भाषणों से किया जाता रहा था। विश्व के मसीहाओं का किरदार यह था कि दुनिया का राजा भाई अमरीका उस सन्धि से हट गया। खेतीबाड़ी फिर मानसून का जुआ हो गई है और फसल उजड़े खेतों में किसान फिर उम्मीद भरी आंखों से आसमान की ओर देखते हुए गाते हैं, ‘रब्बा-रब्बा मींह वरसा, साडी कोठी दाणो पा।’ इससे साबित होता है कि हम अपनी लोक संस्कृति, लोक गीतों और परंपराओं से कितना जुड़े हुए हैं। अपनी हर समस्या का समाधन इन हृदयविदारक गीतों से करते हैं। पहली हरित क्रांति की शोभायात्रा में शामिल होने के बाद आज भी द्वितीय हरित क्रांति को शुरू नहीं कर पाते। स्वाधीनता की पौन सदी गुजर जाने के बाद आज भी देश का किसान विमल राय की पुरानी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ को फिर जीने के लिए अभिशप्त है।

जब भी कोई फसल सूखाग्रस्त होती है, हमारे पास उसका एक ही समाधान रहता है, विदेशों से आयात। आयात होता है, तो जमाखोरों और तस्करों की बन जाती है। मरी हुई फसल का बचा उत्पाद सोने का भाव बिकने लगता है, और इसके बाद कीमत के थोड़ा-सा गिरने पर ही सरकारी तंत्र को घोषणा करने का अवसर मिल जाता है कि देखिए हमने भरपूर कोशिश के बाद कीमतों पर नियंत्रण पाना शुरू कर दिया। सरकार के इन सद्प्रयासों की जनता प्रशंसा करे और बेहतर है कि जनता के इन कठिन दिनों में आम आदमी इन अनुपलब्ध वस्तुओं का प्रयोग ही बंद कर दे। भूख और आर्थिक दुर्दशा से मरने वालों की संख्या अगर बढ़ जाती है तो उसके खाते रखने का झंझट त्याग दिया गया है। आप जानते हैं झंझट से झंझट पैदा होता है। भूख से बेकार किसान-मजदूर की आत्महत्या गिनोगे तो उसका मुआवजा अदा करने का संकट पैदा हो जाएगा, जो देश के खाली खजाने के पास है नहीं, इसलिए ऐसी मौतों को अपच से हुई मौतौं के खाते में डाल दो। यह खाली खजाना भी बहुत बड़ी समस्या है, साहिब, यह देश को सताती है। इसलिए हमारी विकास यात्रा रुक गई है। अधूरे फ्लाईओवर, अधबनी सडक़ें और ट्रैफिक जाम आम आदमी की नियति बन गए हैं। अर्थव्यवस्था का भाग्य संवारने वाली पंचवर्षीय योजनाएं हमारी विजय यात्रा पर अपनी असफलता से बदनुमा दाग न लगाएं, इसलिए फिलहाल इन शोभायात्राओं की शान बरकरार रखने के लिए हमने देश के योजनाबद्ध विकास को ही सोच-विचार के खाते में डाल दिया है। योजना आयोग को तोड़ कर नीति आयोग बना दिया है। योजना आयोग सफेद हाथी था, अत: उसे त्याग दिया। नीति आयोग बनाया है जो कि फिलहाल देश की आर्थिक दुर्दशा के पिछड़ेपन के इस मकडज़ाल से निकलने के लिए फिलहाल हमने एक साहसिक फैसला कर दिया कि अपना वित्तीय घाटा अनुमान बढ़ा कर तीन से साढ़े तीन प्रतिशत कर दो। नए वर्ष का स्वागत करना है, क्यों न इस घर फूंक तमाशे से ही करें।

सुरेश सेठ

sethsuresh25U@gmail.com


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