क्रोध में की गई नासमझी महंगी पड़ती है…
हम अपने को हर परिस्थिति में संयमित रख सकते हैं तो बड़ी बात है। उसे ही शिक्षित कह सकते हैं। इसके विपरीत अगर मन में उठने वाली उत्तेजनाओं और आवेगों पर हम कंट्रोल नहीं कर सकते हैं तो यह असंयमित जीवन है। आवेगों को नहीं रोक पाना नासमझी है। आवेग में आदमी इतना उत्तेजित हो जाता है कि अपना आपा खो देता है। आवेग में परिवार उजड़ते जा रहे हैं। उसके बाद में पश्चाताप से कोई फायदा नहीं है।
आत्महत्या के कारणों के पीछे भी लोगों की नासमझी ही है। इस तरह की मानसिकता वालों के लिए हर तरह की शिक्षा व्यर्थ है। कोई भी किसी भी कार्य में आदमी सफल नहीं हो सकता है जब तक वह अपना स्वामी स्वयं नहीं है। आत्मसंयम के अभाव में हजारों लोगों का जीवन नष्ट हो जाता है। उनकी अनेक उपलब्धियां इसलिए व्यर्थ हो गई कि उनमें अपने आपको वश में रखने की क्षमता नहीं थी।
-कांतिलाल मांडोत, सूरत
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