एक तफ्तीश की हत्या

By: Jan 21st, 2025 12:05 am

पुलिस विभाग के आठ लोग जिस जंग को लड़ रहे थे, वह न्याय की प्रतीक्षा और परीक्षा में अंतत: एक ऐसी सुर्खी बनी जिसके सबक हमेशा जिंदा रहेंगे। संदेह की पुलिसिया कार्रवाई ने एक नेपाली नागरिक सूरज को जिस तफ्तीश में तड़पाया, आखिरकार उसी की छानबीन में पुलिस की टोली को सजा हो गई। एक गुनाह, एक दर्द और एक सियाह पन्ना हिमाचल की कानून व्यवस्था से गुजर गया, जब सीबीआई अदालत ने एक साथ आठ पुलिस कर्मियों को हिरासत में सूरज की मौत का दोषी करार कर दिया। कोटखाई हत्याकांड के मनहूस पन्ने अंतत: पुलिस के ही माथे पर लिख दिए गए। कोटखाई पुलिस जांच अगर एक तरीका है जुल्म और न्याय के बीच, तो कौन कब जीत पाएगा? यह राज्य की कानून व्यवस्था और हमारी सामाजिक शांति के विपरीत दिखाई देने वाला जुर्म है और इससे पुलिस की फाइल में दर्ज कई मामले चीख उठेंगे। कानून के जिन सख्त पहरों के नीचे हम प्रदेश की मर्यादा को जिंदा रखते हैं, उन्हें इस तरह बिखरता देखना कई चिंताएं पैदा करता है। जाहिर तौर पर इस सजा के दायरे पूूरे महकमे की परिक्रमा करेंगे और जहां सरकार को अपने तौर पर यह विश्वास दिलाना होगा कि हर थाना न तो कोटखाई सरीखा है और न ही हर तफ्तीश में व्यवहार इस तरह उच्छृंखल होता है। कोटखाई के जख्म जितनी बार कुरेदे जाएंगे, यह राज्य अपने चरित्र को कोसेगा। एक मनहूस सफा सारे परिदृश्य को लूट के चला गया। हैरानी यह रही कि पुलिस ने जांच की परिपाटी में अपनी दक्षता, संतुलन, विश्वसनीयता और क्षमता को बार-बार नीलाम किया। कोटखाई प्रकरण कई धड़ों में बंटा और कई लोग इसके शिकार हुए या होते-होते बचे। थाने में तफ्तीश की हत्या और पुलिस परिसर में आक्रोश की ज्वाला ने तब भी बहुत कुछ जलाया और अब अदालती फैसले ने कई कठघरे हिमाचली चरित्र पर लाकर खड़े कर दिए।

कहना न होगा कि कोटखाई प्रकरण अगर सीबीआई के फैसले तक पहुंचा, तो इसके पीछे नागरिक समाज, मीडिया व विपक्ष की भूमिका भी रही है। यह दीगर है कि मामले को अदालत तक पहुंचाने वाले मीडिया को इसके बदले खुद को मानहानि के आरोपों से बचाने की लड़ाई लडऩी पड़ रही है। हिमाचल में विडंबना यह भी है कि मीडिया के लिए अपने प्रोफेशन की स्वतंत्रता बचाने के लिए अदालतों में आरोपों से लडऩा पड़ रहा है। कोटखाई प्रकरण में नागरिक समाज और विपक्ष अपनी-अपनी हाजिरी लगा कर लौट गए, लेकिन ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जहां विभिन्न अखबारों के वरिष्ठ पत्रकार एक से दूसरी अदालत तक एडिय़ां रगड़ रहे हैं। हैरानी यह नहीं कि सीबीआई कोर्ट के दोषी इस दौरान व्यवस्था में पात्र बने रहे, बल्कि यह है कि हिरासत में हत्या के इन दागों की हिफाजत होती रही। यह उन निर्दोष लोगों के लिए राहत का सबब होना चाहिए, जिन्हें जांच के नाम पर फंसाया या धमकाया जाता रहा है। यह उन परिवारों पर भी न्याय का मरहम है जो पुलिस जांच में कुपात्र बनाए गए थे। अंतत: जिनका चरित्रहनन कोटखाई प्रकरण की पुलिस जांच ने किया, उनके पक्ष में भी तो कुछ न्यायिक राहत मिलनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि सीबीआई जांच में पुलिस की संवेदना दर्ज नहीं हुई। कोटखाई थाने का संतरी दिनेश वास्तव में इस फैसले का वास्तविक नायक है। उसकी आंखों के सामने यह वारदात हुई, तो वह न्याय का गवाह बनता गया। उसे न तो पुलिस की वरिष्ठता का दबाव तोड़ पाया और न ही विभागीय सत्ता असर कर पाई। यहां फैसले का हर सैल्यूट संतरी दिनेश को और अगर पुलिस के मानदंड ऊंचे रखने हैं तो इस व्यक्ति को ईमानदारी के लिए प्रोमोशन और वित्तीय लाभ मिलने चाहिएं। जरूरत यह भी है कि कोटखाई प्रकरण की राख को छानकर देखा जाए और यह ताकीद रहे कि कहीं दोबारा इस तरह के मोड़ पर पुलिस व्यवस्था अभिशप्त न हो। भले ही कोटखाई प्रकरण पूर्व सरकारों के ओहदे से फिसल कर इस मुकाम तक पहुंचा है जहां एक साथ आठ पुलिस वाले दोषी करार हो गए, लेकिन मौजूदा सरकार को अब अपना निर्णायक पक्ष पेश करना होगा ताकि सनद रहे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App or iOS App