साहिब सोए फाइल पर
‘क्या आपकी ही फाइल है या और भी विभागों की प्रमोशन फाइल एप्रूवल की चाह में वीवीआईपी कमरे की धूल फांक रही हैं। सुना है कि वीवीआईपी धूल से बचने के लिए मास्क लगाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। वहां कोई प्रदूषण नहीं होता।’ मैं चुटकी लेते हुए बोला। वह खिसियानी हंसी हंसते हुए बोले, ‘कुछ आईपीएस की फाइल हैं और कुछ प्रदेश प्रशासनिक सेवा की। लेकिन इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। कुछ बड़े महकमे भी हैं। सिविल सेवा के अधिकारियों की जिस दिन से एम्पेनलमेंट हो जाती है, वे उसी दिन से वरिष्ठता और वित्तीय लाभों के हकदार हो जाते हैं। चाहे फाइल लेट भी क्लियर हो, तब भी। लेकिन प्रदेश सरकार के सामान्य विभागों में पदोन्नति और ज्वाइनिंग के बाद ही वरिष्ठता और वित्तीय लाभ मिलता है। बड़े विभागों में पदोन्नति के अच्छे अवसर होते हैं। पर छोटे विभागों में तीस-बत्तीस साल की नौकरी में बमुश्किल एक या दो प्रमोशन ही मिल पाती हैं, जबकि बड़े विभागों में बाबू की नौकरी में आने वाला भी अधिकारी बन कर रिटायर होता है। अगर मुझे समय पर प्रमोशन मिल जाती तो शायद मैं रिटायरमेंट से पहले दूसरी प्रमोशन का पात्र हो जाता। लेकिन अब लगता है कि मैं बिना किसी प्रमोशन के ही रिटायर हो जाऊंगा।’ मैंने उनके दु:ख में शामिल होते हुए उनसे पूछा कि मुख्यमंत्री आपकी प्रमोशन फाइल क्यों एप्रूव नहीं कर रहे। वह इस बार व्यंग्यात्मक लहज़े में बोले, ‘क्या तुम्हें पता नहीं कि राज्य सरकार पर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज का बोझ है। मुख्यमंत्री राज्य को कर्ज से मुक्त करवाने के लिए प्रमोशन की फाइल रोक रहे हैं ताकि राज्य पर पडऩे वाले वित्तीय बोझ को कम किया जा सके। सीएम सोए फाइल पर, लम्बी चादर तान। प्रमोशन ड्यु साल से, अटकी मेरी जान।’
भाषा विभाग में रहते हुए कवित्व को प्राप्त हो चुके, क्षोभ में भरे झुन्नू लाल जी इतना कह कर निकल लिए। लेकिन मैं सीढिय़ों पर खड़ा होकर सोच रहा था कि क्या मुख्यमंत्री के पास ऐसी सोच और विजऩ नहीं कि राज्य की आय बढ़ाने और कर्जमुक्त होने के लिए ऐसी नीतियां, कार्यक्रम और योजनाएं बनाई जाएं, जिनसे रोजग़ार भी सृजित हों और प्रदेश कर्ज के चंगुल से बाहर आ सके। करीब दो साल पहले राज्य सरकार प्रदेश में भांग की खेती का महत्वाकांक्षी प्रस्ताव लेकर आई थी। काश! अगर उसी वक्त प्रदेश में भांग खेती शुरू हो जाती तो आज क्या ख़ूब भांग छन रही होती। क्या समा होता जब मिल बैठते नेता जी, उनके चमचे और बेरोजग़ार युवा! सब इक_े बैठ कर भांग छानते? प्रदेश में भांग के फायदों पर कितने सेमिनार, कार्यशालाएं और गोष्ठियां आयोजित हो रहे होते। पुलिसिए और लोक सम्पर्क के कलाकार लोगों में नशाख़ोरी के खिलाफ अलख जगा रहे होते। जगह-जगह भांग के काउंटर लगे होते। पर अगर भांग कम पड़े तो आय बढ़ाने के लिए सरकार जनता पर टैक्स लगा सकती है। शराब पर नई नीति ला सकती है। राज्य के पास संसाधनों की कमी नहीं, पर ऋण लेने के लिए सारे संसाधन तो पहले ही गिरवी रखे जा चुके हैं। लेकिन गिरवी क्या केवल संसाधन ही हैं या हमारा ईमान भी गिरवी पड़ा है। सभी दलों की नजऱ केवल अपने पांच सालों पर होती है। जनता की कठिनाइयों को हल करने की कौन सोचता है। लेकिन अगर राजनीति लोगों की सभी मुश्किलों का हल निकाल दे तो फिर नेता क्या करेंगे? उन्हें वोट कौन देगा? ऐसे में कम से कम अधिकारियों की पदोन्नति को महीनों तक लटका कर ही प्रदेश को कर्ज के बोझ से बाहर निकाला जा सकता है। सरकार के यशोगान में मगन मीडिया इसे भी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बता रहा है। इतना सोचते ही मेरे चेहरे पर भी झुन्नू लाल जी की व्यंग्यात्मक मुस्कान फैल गई।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
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