टैरिफ में चुनिंदा वृद्धि का समय

ऐसे में वे भागीदार भी आयात शुल्क बढ़ाने के लिए बाध्य होंगे, तो भारत इस आयात शुल्क प्रतिस्पर्धा से अछूता नहीं रह सकता…
आज जब चीन से आयात घाटा 85 अरब डॉलर के असहनीय स्तर तक पहुंच चुका है, जिसका असर हमारे विनिर्माण और रोजगार पर भी पड़ रहा है, हमें चीन पर निर्भरता कम करने के सघन प्रयास करने की जरूरत है। सबसे पहले जब 2018-19 के बजट में प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति घोषणा के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम उत्पादों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया, और फिर उसी वर्ष वस्त्र और परिधानों पर आयात शुल्क बढ़ाने और तत्पश्चात अन्य गैर-जरूरी आयातों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया, उसके फलस्वरूप वर्ष 2018-19 में चीन से व्यापार घाटा केवल 53.6 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2017-18 में यह 63 अरब डॉलर था। महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय इन आयात शुल्कों में वृद्धि का कई अर्थशास्त्रियों ने यह कहकर विरोध किया था कि इससे देश में संरक्षणवाद को बढ़ावा मिलेगा और अकुशलता बढ़ेगी। यह समझना होगा कि 2018-19 में आयात शुल्कों में वृद्धि ने देश में इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा दिया, मोबाइल फोन के निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई और वर्ष 2023-24 तक मोबाइल फोन का निर्यात 14.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसी तरह कई अन्य वस्तुओं के उत्पादन और निर्यात में भी वृद्धि देखी गई। यह पहली बार नहीं था, जब हमें टैरिफ बढ़ाने का लाभ मिला। देश में कुल विनिर्माण में लगभग 50 प्रतिशत का योगदान देने वाला ऑटोमोबाइल क्षेत्र उच्च टैरिफ के कारण ही विकसित हो सका।
भारत में ऑटोमोबाइल उत्पादों पर 40 हजार अमरीकी डालर से अधिक मूल्य वाली कारों के लिए 100 प्रतिशत और 40 हजार अमरीकी डालर से कम मूल्य वाली कारों के लिए 60 प्रतिशत टैरिफ लगता है। आज भारत ऑटोमोबाइल, विशेष रूप से कारों में एक वैश्विक शक्ति है और कई भारतीय और विदेशी कंपनियां देश में कारों और अन्य ऑटोमोबाइल का निर्माण कर रही हैं और भारी मात्रा में निर्यात भी कर रही हैं। भारत से 45 लाख से अधिक वाहनों का निर्यात 2023-24 में किया गया। ऐतिहासिक रूप से, अगर हम देखें, तो भारत में औसत भारित टैरिफ वर्ष 2004 में यूपीए के सत्ता में आने से पहले लगभग 24 प्रतिशत था। लेकिन टैरिफ में नाटकीय रूप से कमी की गई। वर्ष 2006 तक यह लगभग 6 प्रतिशत तक घटा दिया गया। इससे हमारे विनिर्माण में तबाही मच गई और आयात पर हमारी निर्भरता कई गुना बढ़ गई।
टैरिफ कम करने की वकालत करने वाले अर्थशास्त्रियों की भी देश में कोई कमी नहीं है। टैरिफ कम करने के उनके कई तर्क हैं: सबसे पहले, ऐतिहासिक रूप से, उच्च टैरिफ दीवारों ने उत्पादन में अकुशलता को बनाए रखा है, क्योंकि उच्च टैरिफ दक्षता में सुधार के लिए पहल को खत्म कर देता है। उनका तर्क है कि नेहरुवादी काल के दौरान आत्मनिर्भरता के नाम पर उच्च टैरिफ ने प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर दिया और परिणामस्वरूप अकुशलताएं पैदा हुईं। इससे हमारी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हुई और परिणामस्वरूप निर्यात में भी गिरावट आई। दूसरे, अगर भारत टैरिफ बढ़ाता है, तो अन्य व्यापार भागीदारों को भी टैरिफ बढ़ाने का मौका मिलेगा और इससे हमारे निर्यात भी अवरुद्ध हो जाएंगे। इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में, अगर हर देश ऐसा ही करता है तो वैश्विक स्तर पर व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
तीसरा, इन अर्थशास्त्रियों का एक बहुत ही प्रमुख तर्क यह है कि, कम टैरिफ उपभोक्ताओं को वस्तुओं की सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं और इसलिए उपभोक्ता अधिशेष और उपभोक्ता संतुष्टि में सुधार होता है।
मुक्त व्यापार का सिद्धांत : यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि ये अर्थशास्त्री रिकार्डो और अन्य शास्त्रीय अर्थशास्त्रियों पर विश्वास करते हैं, जिन्होंने लोगों के कल्याण को अधिकतम करने हेतु मुक्त व्यापार के लिए तर्क दिया था। लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि यदि देश में क्षमता न हो तो बेहद कम टैरिफ, विनिर्माण क्षमता निर्माण में बाधा बनता है और इस प्रकार आयात पर हमारी निर्भरता को बढ़ा देता है, जिससे घरेलू उत्पादन में वृद्धि की संभावनाएं और कम हो जाती हैं। इसके कारण आयात पर अधिक से अधिक निर्भरता का एक दुष्चक्र बन जाता है। हमें यह भी समझना चाहिए कि, मुक्त व्यापार का लाभ तभी है जब दूसरे भी मुक्त व्यापार का पालन करें, लेकिन अगर कोई देश अपने माल को भारत में डंप कर रहा हो या अन्य देश टैरिफ दीवारें बढ़ा रहे हों, तो हमारा देश और अन्य देश मुक्त व्यापार के रुख को जारी नहीं रख सकते। आज, अमेरिका सहित कई देश अपने उद्योगों की सुरक्षा के नाम पर टैरिफ दीवारें बढ़ा रहे हैं। नतीजतन, हमारा देश भारत पहले की तरह खुला नहीं रह सकता।
चुनिंदा बढ़ोतरी हो : 2020 में जब से भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत नीति की घोषणा की है, तब से इंटरमीडिएट उत्पादों के आयात में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। खास तौर पर आत्मनिर्भर भारत नीति में कई क्षेत्रों को चुना गया है। इन क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना है। इनमें ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, खिलौने, सौर उपकरण, अर्धचालक, वस्त्र, रसायन आदि शामिल हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू की गई है, जिसमें सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि निर्धारित की है। लेकिन पीएलआई योजना और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में प्रयासों के बावजूद, हमें इंटरमीडिएट्स के आयात में बहुत कमी नहीं दिख रही है। इन क्षेत्रों में घरेलू निवेश भी भारी मात्रा में हो रहा है, लेकिन चीन द्वारा डंपिंग ने पीएलआई योजनाओं की सफलता को प्रभावित किया है। इसके अलावा, इन मध्यवर्ती उत्पादों के उपयोगकर्ता उद्योग दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के नाम पर अपने उत्पादन को जारी रखने के लिए इन मध्यवर्ती उत्पादों पर आयात शुल्क में और कमी करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन अगर हम इन मध्यवर्ती उत्पादों पर टैरिफ कम करना जारी रखते हैं तो हमारी चीनी आयात पर निर्भरता जारी रहेगी। दूसरी ओर, जो निवेशक रासायनिक, एपीआई, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार घटक उद्योगों में निवेश कर रहे हैं, वे टैरिफ बढ़ाकर चीनी डंपिंग और अन्य अनैतिक प्रथाओं से सुरक्षा चाहते हैं। निवेशकों की मुख्य आशंका यह है कि यदि चीनी डंपिंग को नहीं रोका गया, तो उनके उद्योग फिर से बंद हो जाएंगे, ऐसी आशंका है।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि पीएलआई के रूप में सरकार द्वारा दिए गए भारी समर्थन को देखते हुए, इन उद्योगों को चीनी डंपिंग से काफी हद तक सुरक्षा की आवश्यकता है। उधर डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दूसरी बार संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद, विभिन्न देशों पर टैरिफ लगाने की उनकी लगातार चेतावनी अन्य देशों से जवाबी टैरिफ को भडक़ा सकती है। जैसा कि हम जानते हैं, अमेरिका के पास यह लाभ है कि वह देश-विशिष्ट टैरिफ लगा सकता है, जो अन्य देश नहीं कर सकते। अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हुए, देशों को अपने सभी व्यापार भागीदारों के खिलाफ टैरिफ बढ़ाना होगा। ऐसे में वे भागीदार भी आयात शुल्क बढ़ाने के लिए बाध्य होंगे, तो भारत इस आयात शुल्क प्रतिस्पर्धा से अछूता नहीं रह सकता। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए सस्ते आयात का तर्क एक अल्पकालिक घटना है। इसके विपरीत हम देखते हैं कि, सस्ते शुल्कों के चलते चीनी आयात पर बढ़ती निर्भरता के कारण चीन द्वारा शोषण को बढ़ावा मिला। उदाहरण के लिए, एपीआई के मामले में, जैसे-जैसे देश की चीनी एपीआई पर निर्भरता बढ़ी, चीन ने एपीआई की कीमतों में कई गुना वृद्धि करके भारतीय दवा कंपनियों और उसके माध्यम से उपभोक्ताओं का शोषण करना शुरू कर दिया।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
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