नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करने आ रहा उत्तरायण

By: Jan 11th, 2025 12:28 am

दक्षिणायन काल व्यतीत हो रहा है और उत्तरायण प्रारंभ। उत्तरायण काल का आरंभ मकर संक्रांति से होता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह समय आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को उनकी रात्रि कहा गया है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को पड़ रही है। इसी के साथ उत्तरायण का समय प्रारंभ हो जाएगा। उत्तरायण काल को शास्त्रकारों ने साधनाओं एवं परा-अपरा विद्याओं की प्राप्ति के लिए सिद्धिदायक काल माना है। उत्तरायण जीवन में शांति बढ़ाने वाला होता है। यह सकारात्मकता का प्रतीक है, जबकि दक्षिणायन नकारात्मकता का प्रतीक है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उत्तरायण उत्सव और त्योहार मनाने का समय है, जबकि दक्षिणायन व्रत साधना और ध्यान का समय है। उत्तरायण दो शब्दों से मिलकर बना है- उत्तर और अयन। उत्तर शब्द दिशा का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि अयन का शाब्दिक अर्थ है गमन। उत्तरायण का अर्थ हुआ उत्तर में गमन और सूर्य उत्तरायण का अर्थ हुआ सूर्य का उत्तर में गमन और यह सूर्य की एक दशा है। उत्तरायण का प्रारंभ मकर संक्रांति से होता है। अर्थात सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तभी से उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है। संक्रांति शब्द का अर्थ ही होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। उत्तर दिशा की ओर सूर्य का गमन ही उत्तरायण है। उत्तरायण को दक्षिणायन से श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि यह समय सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश के साथ ही प्राणहारी ठंड का अंत और वसंत ऋतु के आगमन का शुभ संकेत मिलता है। इस काल में दिन बड़े होने लगते हैं और सूर्य की तेजोमय किरणें पृथ्वी पर अधिक समय तक प्रकाशमान रहती हैं, जिससे जीवनदायिनी ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। उत्तरायण काल न केवल प्रकृति में बदलाव लाता है, बल्कि इसका मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तेजोमय सूर्य किरणें शरीर को स्वस्थ बनाती हैं। सूर्य के इस परिवर्तन को जीवन में नवचेतना और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। सनातन धर्म में सूर्य के उत्तरायण होने का विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। यह काल शुभ और फलदायी माना गया है, क्योंकि इस समय को देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है। मकर संक्रांति से प्रारंभ होने वाला यह समय यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान, विवाह और मुंडन जैसे शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, उत्तरायण काल में किए गए धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य शीघ्र फलदायी होते हैं। इस अवधि में सूर्य की उत्तर दिशा में गति के साथ सकारात्मक ऊर्जा और प्रकृति का संतुलन जीवन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है। भारतीय संस्कृति में इस काल को नई शुरुआत का प्रतीक माना गया है, जो मानव जीवन में प्रगति और कल्याण लाने में सहायक है। इसलिए, सनातन धर्म में उत्तरायण का समय न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी इसका अत्यधिक महत्व है।

-डा. रविंद्र सिंह भड़वाल


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