दिव्य हिमाचल डिजिटल डेस्क
बाजार सज चुके हैं। हर तरफ रेवड़ी गुड़ औऱ गज्जक की महक है। हो भी क्यों न, अरे लोहड़ी का त्यौहार जो है, जिसे मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हिमाचल और पंजाब सहित पूरे देश में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। हां, हर जगह इसे मनाने का तरीका अलग हो सकता है, मगर भाव नहीं.. हिमाचल में जहां बच्चे घर-घर जाकर लोहड़ी गाकर इस पर्व को और ज्यादा खास बना देते हैं, तो वहीं पंजाब में ढोल की थाप पर भंगड़ा कर पर्व मनाया जाता है। हालांकि इस त्योहार को मनाने के पीछे कई सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ये त्योहार भगवान कृष्ण और माता सती के साथ-साथ दुल्ला भट्टी से जोडक़र मनाया जाता है। लोहड़ी पर्व के दिन दुल्ला भट्टी के गीत गाने का विधान है।
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का पर्व नई फसल की बुआई और पुरानी फसल की कटाई से जुड़ा हुआ है। इस दिन से ही किसान अपनी नई फसल की कटाई शुरू करते हैं और सबसे पहले भोग अग्नि देव को लगाया जाता है। अच्छी फसल की कामना करते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त किया जाता है। लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल जैसे मूंगफली, गुड़, तिल आदि चीजें ही अर्पित की जाती हैं। साथ ही सूर्यदेव और अग्नि देव का आभार व्यक्त किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि जैसी कृपा आपने इस फसल पर बरसाई है, उसी तरह अगले साल भी फसल की अच्छी पैदावार हो।
दुल्ला भट्टी औ सुंदरी-मुंदरी
आपने अकसर लोहड़ी पर दुल्ला-भट्टी के बारे में सुना होगा, जिनका जिक्र गीतों में भी आता है, दुल्ला भट्टी मुग़ल शासनकाल में अकबर के राज्य में पंजाब में रहता था। उसके मदद करने के स्वभाव के कारण उसे पंजाब का नायक भी कहा जाता था। उसने कई बार गरीबों की मदद की और नायक की उपाधि ली। यही नहीं, उस समय लड़कियों को बेचने का व्यापार भी होता था और वे अमीरों के घरों में काम करती थीं। उस समय दुल्ला भट्टी ने सारी लड़कियों को मुक्त कराया। यही नहीं, उस समय एक गांव में सुंदरदास नाम का किसान रहा करता था, जिसकी दो बेटियां सुंदरी और मुंदरी थीं। इन दोनों लड़कियों की जबरदस्ती शादी करवाई जा रही थी। दुल्ला भट्टी ने मौके पर पहुंचकर इस शादी को रोका। इसके बाद दोनों लड़कियों की शादी उनके योग्य वर से हुई, तभी से दुल्ला भट्टी को याद करते हुए लोहड़ी का पर्व पूरे देश में विधि-विधान से मनाया जाता है। दुल्ला भट्टी की कहानी इसलिए सुनाई जाती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे प्रेरणा लेकर घर की महिलाओं की हिफाजत करना सीखें, उनका सम्मान करें और जरूरतमंदों की मदद करें।
भगवान श्री कृष्ण से कनेक्शन
हालांकि इस त्यौहार को मनाने के लिए एक पौराणिक कथा ये भी है कि लोहड़ी के दिन ही कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए एक राक्षसी का भेजा था जिसका नाम लोहिता था। कंस लोहिता को गोकुल भेजकर श्री कृष्ण को मारना चाहता था, लेकिन कृष्ण जी ने लोहिता का ही वध कर दिया। कृष्ण जी की इस विजय के कारण भगवान की महिमा और कंस के अत्याचार के खिलाफ उनके संघर्ष की कहानी प्रसिद्ध हुई। लोहिता राक्षसी के मारे जाने के उपलक्ष्य में ही उसी समय से लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।
माता सती से भी जुड़े हैं तार
लोहड़ी पर आग जलाने की परंपरा को लेकर भी एक पौराणिक कथा है जो मुख्य रूप से माता सती से जुड़ी हुई है.. इसकी कथा के अनुसार एक बार जब राजा दक्ष ने महायज्ञ का अनुष्ठान किया था, तब उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिवजी और सती को आमंत्रित नहीं किया। उसके बाद भी सती महायज्ञ में पहुंच गईं, लेकिन उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव की बहुत अवहेलना की और उनका अपमान भी किया। इस बात से दुखी होकर सती अग्नि कुंड में कूद गईं और अपनी देह त्याग कर दी। ऐसा कहा जाता है कि यह अग्नि माता सती के त्याग को समर्पित थी, इसी वजह से लोहड़ी के दिन परिवार के सभी लोग अग्नि की पूजा करके एक साथ परिक्रमा करते हैं और आभार के रूप में अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली आदि अर्पित करते हैं।
पंचांग
पंचांग के मुताबिक साल 2025 में लोहड़ी 13 जनवरी को मनाई जाएगी, और अगले दिन यानी 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति है। ज्योतिषियों के अनुसार लोहड़ी पर वैधृति योग बन रहा है, जिस पर आद्र्रा नक्षत्र का संयोग रहेगा. जानकारी के अनुसार इस बार लोहड़ी अग्नि प्रज्वलन का समय शाम 6:30 बजे से रात 8 बजे तक काफी शुभ माना जा रहा है। इस समय पूजा करने पर आपको मनवांछित फल की प्राप्ति होगी