विश्व हिंदी दिवस विशेष : स्मार्ट वर्क, क्विक सक्सेस
सफलता का कोई शार्ट कट नहीं है। फिर भी व्यस्त जीवन में त्वरित सफलता पाने के लिए नया रास्ता तलाशने की जरूरत है…
दस जनवरी को फिर से विश्व हिंदी दिवस मनाया जाएगा। इसे यादगार बनाने के लिए मैंने इस बार कुछ मौलिक कोट्स और मुहावरे लिखे हैं। इनको पाठकों के साथ साझा करना चाहूंगा। मेरा पहला कोट्स है – स्मार्ट वर्क, क्विक सक्सेस। अर्थात त्वरित सफलता के लिए हार्ड वर्क नहीं, बल्कि स्मार्ट वर्क की जरूरत होती है। इस कोट्स के जरिए मैंने आधुनिक समस्या का आधुनिक समाधान देने की कोशिश की है। लेकिन यह भी कहना चाहूंगा कि स्मार्ट वर्क की नई कल्चर के कारण परंपरागत हार्ड वर्क की वैल्यू कम नहीं हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी की सलाह से रास्ते तो मिल सकते हैं, लेकिन मंजिल तो अपनी कड़ी मेहनत से ही मिलेगी। स्मार्ट वर्क का मतलब ‘आगे दौड़, पीछे चौड़’ करना भी नहीं है। हर किसी को अपने एसाइंड वर्क को पूरी तरह समझना होगा, कान्सेप्ट को पूर्णत: समझना होगा और प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उसको पूर्णता में समझना होगा। हां, यह जरूर है कि हमें भगवान कार्तिकेय के रास्ते के बजाय भगवान गणेश जी का रास्ता अपनाना चाहिए, जिन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने के लिए अपने माता-पिता की परिक्रमा ही कर ली थी। स्मार्ट वर्क का मतलब किसी चीज को गहराई से समझने की कोशिश छोड़ देना भी नहीं है। हर कार्य को कुशलता के साथ बारीकी से किया जाना चाहिए। सफलता का कोई शार्ट कट भी नहीं है। फिर भी आज के व्यस्त जीवन में कार्य को निपटाने के लिए, त्वरित सफलता पाने के लिए सोच-विचार करके नया रास्ता तलाशने की भी जरूरत है। यह नया रास्ता स्मार्ट वर्क के रूप में हो सकता है।
एक बड़े विचारक और कारोबारी ने कहा भी है कि अगर मुझे किसी को कोई बड़ा काम सौंपना होगा, तो मैं सबसे आलसी व्यक्ति का चुनाव करूंगा, क्योंकि आलसी व्यक्ति बड़े काम को जल्दी से और आसानी से पूरा करने के लिए कोई सहज राह अवश्य ढूंढेगा। इसलिए स्मार्ट वर्क का अपना महत्त्व, विशेषकर आज के व्यस्ततम युग में ज्यादा बढ़ गया है। मेरा दूसरा कोट्स है : भोजन ऐसे करो जैसे तुम सदा जीने वाले हो, भजन ऐसे करो जैसे तुम कल मरने वाले हो। भावार्थ यह है कि तुम सदा जीने वाले हो, इसलिए भोजन कम करो, लेकिन तुम कल मरने वाले हो, इसलिए भजन बहुत ज्यादा, आज ही कर लो। भाव यह है कि जीवन में सफलता के लिए भोजन कम मात्रा में करना चाहिए, लेकिन भजन इतना करो कि तुम भगवान के दर्शन करने के लिए जाने के बजाय भगवान ही तुम्हारे दर्शन को आ जाएं। भक्त का भगवान के दर्शन को जाना रस है, जबकि भगवान का भक्त के दर्शन को आना रास है। इसलिए भजन इतना करो कि भगवान भक्त के साथ रास करने के लिए आ जाएं। ऐसा रास करवाना है जैसा श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ किया था। मेरा तीसरा कोट्स है : घरबार में दिल से, और बाजार में दिमाग से काम करें। भावार्थ यह है कि कहीं दिल से, कहीं दिमाग से काम लिया जाना चाहिए। घरबार में भावनाओं की कद्र होती है, इसलिए वहां दिल से काम किया जाना चाहिए। लेकिन बाजार में यह फार्मूला काम नहीं करता है क्योंकि वहां भावनाओं की इतनी कद्र नहीं होती है। इसलिए बाजार में दिमाग से ही काम लिया जाना चाहिए। चौथा कोट्स : किसी पुरुष के खिलाफ किसी महिला का अंधसमर्थन गलत फैसला भी हो सकता है। भावार्थ यह है कि जिस तरह कई बार महिला ही महिला की दुश्मन होती है, उसी तरह कई बार पुरुष ही पुरुष का दुश्मन होता है। पांचवां कोट्स : जिस तरह बंदर अदरक का स्वाद नहीं जानता, उसी तरह नास्तिक आदमी ईश्वर और आस्था को नहीं समझता है। छठा कोट्स : ईश्वर और धर्म मानवता के सबसे बड़े मित्र हैं, शत्रु नहीं। भावार्थ : मैं एक प्रमुख विचारक के इस कथन से सहमत नहीं हूं कि ये दोनों गरीबों के सबसे बड़े शत्रु हैं। सातवां कोट्स : ज्ञान नया और अनुभव पुराना ही श्रेष्ठ होता है। भाव यह है कि ज्ञान को जहां नवीनतम होना चाहिए, वहीं अनुभव तो ऐतिहासिक ही श्रेष्ठ होता है। आठवां कोट्स : संपदाविहीन पुरुष को कमजोर व्यक्ति समझा जाता है। भावार्थ यह है कि जिस पुरुष के पास पर्याप्त संपत्ति न हो, उसकी समाज में कीमत घट जाती है। नौवां कोट्स : रिश्ते भाग्य से बन सकते हैं, लेकिन उन्हें निभाने के लिए मेहनत तो अपनी ही चाहिए। दसवां कोट्स : किसी बड़े प्रोजेक्ट को टुकड़ों में बांट कर पूरा करना चाहिए, इससे काम आसान हो जाता है।
11वां कोट्स : ज्ञान के अभाव में समस्याओं का समाधान नजर नहीं आता। भावार्थ यह है कि किसी समस्या को सुलझाने के लिए उसे गहराई से समझना जरूरी होता है। 12वां कोट्स : आप अगर विचारवान हैं, तो धन भी कमाया जा सकता है। भावार्थ यह है कि धनवान होने के लिए आपके पास थोड़ी-बहुत समझ तो होनी ही चाहिए। 13वां कोट्स : ईश्वर सुमिरन के बिना केवल मौत का इंतजार करते रहना कोई बेहतर रास्ता नहीं है। 14वां कोट्स : तर्कविहीन व्यक्ति बौद्धिक रूप से अक्षम होता है। भावार्थ यह है कि बौद्धिक रूप से सक्षम होने के लिए तार्किक होना पड़ता है। अब कुछ नए मुहावरों की बात कर लेते हैं। मेरा पहला मुहावरा था : नाक में रुई डल जाना। यह मुहावरा काफी लोकप्रिय हुआ और काफी प्रतिक्रियाएं भी आईं। इसके बाद भी मैंने करीब 15-16 मुहावरे लिखे थे। वे भी पाठकों और विशेषज्ञों को काफी पसंद आए। अब मैंने पांच और नए मौलिक मुहावरे लिखे हैं। पहला मुहावरा है : जुबान का साइलेंट मोड में चले जाना। इसका अर्थ है खामोशी धारण कर लेना। इसका वाक्य में प्रयोग इस तरह हो सकता है : कई महत्वपूर्ण मसलों पर नेताओं की जुबान साइलेंट मोड पर चली जाती है। दूसरा मुहावरा : कलम का कुंद हो जाना। इसका अर्थ है विचारशून्य हो जाना। इसका वाक्य में प्रयोग इस तरह हो सकता है : आजकल ऐसा माना जा रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों की कलम कुंद हो गई है। तीसरा मुहावरा : माउंट एवरेस्ट का ख्वाब। इसका अर्थ है बड़ा सपना अथवा लक्ष्य रखना। इसका वाक्य में प्रयोग इस तरह है : बच्चों को बचपन से ही माउंट एवरेस्ट का ख्वाब रखना चाहिए। चौथा मुहावरा : कलम का तलवार हो जाना। इसका अर्थ है क्रांतिकारी विचारों को प्रकट करना। इसका वाक्य में प्रयोग इस तरह है : आजादी की लड़ाई के दौरान पत्रकारों की कलम तलवार बन गई थी। पांचवां मुहावरा : टोपी वाले का खेल खेलना। इसका अर्थ है सियासत करना। वाक्य में प्रयोग : कई नेता जनहित के मसलों पर भी टोपी वालों का खेल खेलने में लगे हैं।
राजेंद्र ठाकुर
’दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध
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