पर का बुरा न राखहु चीत…

By: Feb 6th, 2025 12:05 am

जब हम इस बारे में स्पष्ट हों कि हमें अपनी सोच बदलनी है, लक्ष्य और उसका अंतिम उद्देश्य, लक्ष्य प्रप्ति का कारण भी स्पष्ट हो तो फिर यह देखना चाहिए कि पहला कदम क्या उठाएं। छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ते चलें। इससे लक्ष्य तक पहुंचने की यात्रा आसान हो जाएगी, बोझिल नहीं बनेगी। जब ऐसा कर लें तो फिर यह सोचें कि हमें अपने जीवन में क्या-क्या वरदान मिले हैं, क्या सुख हैं, कौन-कौन सी खुशियां हैं। इससे हममें कृतज्ञता का भाव आएगा। ध्यान यह रखना है कि अपने सुख और खुशियों का आकलन करते समय हममें कृतज्ञता का भाव आए, अहंकार का नहीं। बस अब सब सरल है। अब प्रेममय होना कठिन नहीं रह जाता। यह एक सीधे और सादे जीवन का आसान सा पाठ है, जरूरत सिर्फ इसे समझने की है, और समझकर जीवन में उतारने की है। इतना कर लिया तो फिर कुछ और बाकी नहीं रह जाता…

आयरिश नाटककार बर्नार्ड शॉ ने एक बार कहा था कि सबसे अशिक्षित व्यक्ति वह है जिसके पास भूलने के लिए कुछ नहीं है। यह एक चतुर और महत्वपूर्ण अवलोकन है। हर दिन लोगों को नकारात्मक अनुभवों का सामना करना पड़ता है। नकारात्मक अनुभव चाहे कैसा भी हो, अधिक महत्व का या कम महत्व का, लोग आम तौर पर इन नकारात्मक अनुभवों पर बार-बार ध्यान लगाते हैं और उसे मन ही मन दोहराते रहते हैं। नकारात्मक अनुभव हुआ और गुजर गया, लेकिन जब हम उसी पर ध्यान लगाए रखें तो वह गुजर चुका होने के बावजूद भी हमारे लिए वर्तमान बन जाता है और लगातार दुखी करता रहता है। एक बार जब यह आदत बन जाती है तो इसका अगला नकारात्मक प्रभाव यह है कि तब यह अप्रिय अनुभव हमारी सक्रिय स्मृति का हिस्सा बनकर अंतत: नकारात्मकता का एक बड़ा जंगल बन जाता है। इसलिए इस प्रकार की दुखद घटनाओं को भूल जाना ही सबसे अच्छा है। नकारात्मक अनुभव के मामले में जो कुछ भी हुआ, वह अक्सर हमारे नियंत्रण से बाहर होता है, लेकिन इसे भूल जाना और इसे अपनी स्मृति का हिस्सा बनने से रोकना हमारे हाथ में है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस संदर्भ में चुनाव भूलने और न भूलने के बीच नहीं है, असली विकल्प हर तरह की कड़वी यादों के साथ जीने और खुद को उनसे पूरी तरह मुक्त करने के बीच है।

अप्रिय यादों की कड़वाहट में रहने से अच्छा है कि हम उनसे मुक्त हो जाएं। यह हमें व्याकुलता से बचाकर हमारी ऊर्जा को अकारण खर्च होने से बचाता है, समय बर्बाद होने से बचाता है और नकारात्मक विचारों के कारण सेहत की गड़बड़ी से भी बचाता है। आइए, अब हम नकारात्मक विचारों के दूसरे पहलू को भी देख लें। नकारात्मक अनुभव होने का मतलब है कि सामने वाला व्यक्ति हमें पसंद नहीं करता, हमसे घृणा करता है, हमें छोटा बनाने की कोशिश कर रहा है। जब कोई व्यक्ति हमारा अपमान करके खुद को बड़ा साबित करने की कोशिश करता है तो ज्यादातर मामलों में वह व्यक्ति हमारी काबीलियत और हमारी प्रगति के कारण हमसे जलन रखने वाला व्यक्ति होता है, जो हमसे इसलिए ईष्र्या करता है क्योंकि वह धन में, स्टेटस में, सम्मान में से किसी न किसी रूप में हमसे पीछे है। चूंकि वह हमारी बराबरी नहीं कर पा रहा है, इसलिए वह हमसे जलता है, और उसकी वह जलन इस रूप में प्रकट होती है कि वह हमें ठेस पहुंचाकर, हमें नीचा दिखाकर या हमारा अपमान करके अपने अहम् को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे व्यक्ति पर तो हमें क्रोध करने के बजाय, उस पर दया करनी चाहिए। वह सचमुच दया का पात्र है। यही नहीं, वह व्यक्ति हमसे ईष्र्या ही इसलिए करता है क्योंकि अपने सभी प्रयत्नों के बावजूद वह हमारी बराबरी नहीं कर पा रहा, यानी, वह हमारी काबीलियत को जानता है, हमारी काबीलियत को मानता है, और असल में हमारी काबीलियत का प्रशंसक है, पर अपने स्वभाव से मजबूर होकर वह उस प्रशंसा को प्रशंसा के रूप में प्रकट न करके, ईष्र्या के रूप में प्रकट कर रहा है। ऐसे में हमें अपने उस प्रशंसक पर क्रोध करके खुद को दुखी करते रहना उचित नहीं है। यही नहीं, हमें अपने मन में उसके लिए किसी भी तरह की बदले की भावना भी नहीं रखनी चाहिए। गुरबाणी में ठीक ही कहा गया है- ‘पर का बुरा न राखहु चीत, तुम कउ दुख नहीं भाई मीत।’ इसका अर्थ है कि- ऐ भाई, ऐ मित्र, अपने चित्त में, अपने मन में कभी किसी के लिए बुरा मत चाहो। कभी मन में यह इच्छा मत पैदा होने दो कि किसी का नुकसान हो। इसका परिणाम यह होगा कि तुम्हें कोई दुख नहीं मिलेगा। यूं भी किसी के बारे में बुरा सोचकर, या अपने अपमान की घटना के बारे में बार-बार सोचकर हम सिर्फ खुद के लिए बीमारी ही मोल लेते हैं। यदि हम मानसिक और शारीरिक व्याधियों से बचे रहना चाहते हों तो इसके लिए सहज संन्यास मिशन का मार्गदर्शन बहुत काम आ सकता है।

सहज संन्यास की जीवनशैली इन व्याधियों से बचाव के लिए बहुत प्रभावशाली है। कहते हैं कि यात्रा के समय सामान जितना कम होगा, यात्रा उतनी सुखद होगी। सहज, सरल जीवन का मतलब ही यही है कि हम संग्रह नहीं करते, बीते कल का पछतावा नहीं करते, आने वाले कल की फिक्र नहीं करते, जो कुछ सामने हो, उसे पूरी शिद्दत से निभाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि इस नियम का पालन करने वाले एकदम सीधा और सरल जीवन जीते हैं।
इसका किसी कर्मकांड से, पूजा के विधि-विधान से, या ग्रंथों के पठन-पाठन से कोई लेना-देना नहीं है। इसके लिए अपनी सोच में एक रचनात्मक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। इस परिवर्तन के लिए छोटे-छोटे कदम उठाकर अपना लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। पहली बात तो यही है कि हम सोच लें कि सोच बदलनी है। इससे हमें वह मोटिवेशन, वह प्रेरणा मिलेगी जो सोच बदलने में सहायक होगी। सतर्कता बस इतनी चाहिए कि हम अपने लक्ष्य के बारे में पूर्णत: स्पष्ट हों, उसमें कोई किंतु-परंतु न हो, कोई शक-शुबहा न हो। हमें यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि हम जो लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं, वह क्यों चाहते हैं, हमारा अंतिम उद्देश्य क्या है। जब हम इस बारे में स्पष्ट हों कि हमें अपनी सोच बदलनी है, लक्ष्य और उसका अंतिम उद्देश्य, लक्ष्य प्रप्ति का कारण भी स्पष्ट हो तो फिर यह देखना चाहिए कि पहला कदम क्या उठाएं। छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ते चलें। इससे लक्ष्य तक पहुंचने की यात्रा आसान हो जाएगी, बोझिल नहीं बनेगी। जब ऐसा कर लें तो फिर यह सोचें कि हमें अपने जीवन में क्या-क्या वरदान मिले हैं, क्या सुख हैं, कौन-कौन सी खुशियां हैं। इससे हममें कृतज्ञता का भाव आएगा। ध्यान यह रखना है कि अपने सुख और खुशियों का आकलन करते समय हममें कृतज्ञता का भाव आए, अहंकार का नहीं। बस अब सब सरल है। अब प्रेममय होना कठिन नहीं रह जाता। यह एक सीधे और सादे जीवन का आसान सा पाठ है, जरूरत सिर्फ इसे समझने की है, और समझकर जीवन में उतारने की है। इतना कर लिया तो फिर कुछ और बाकी नहीं रह जाता। याद बस यह रखना चाहिए कि नजरिया बदलने से सब बदल जाता है। यह समझ लिया तो फिर मंगल ही मंगल है।

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com

स्पिरिचुअल हीलर

सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण

गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक


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