कुंभ स्नान के लिए वसूलते थे एक रुपया
कुंभ में बाल-दाढ़ी बनवाने पर भी टैक्स
ब्रिटिशों ने 3,000 नाई केंद्र स्थापित किए
कुम्भ मेले में व्यापार करने वालों से वसूला कर
इन दिनों प्रयागराज में महाकुम्भ चला है। करोड़ों लोग पवित्र सनान करने पहुंच रहे। इस बीच व्यवस्था की बात की जाए तो हाई-टेक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें अंडरवॉटर ड्रोन, AI कैमरे और यहां तक कि हवाई निगरानी भी शामिल हैं। लोगों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो इसके लिए प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है। इस बार के महाकुम्भ को सबने देखा कोई इस भव्य आयोजन का साक्षी बना तो कुछ लोगों ने फ़ोन या टीवी के जरिये महाकुम्भ की झलक देखी। लेकिन क्या अपने कभी सोचा कि ब्रिटिश शासन के समय महाकुंभ कैसा था। ये तो जाहिर सी बात है कि दशकों पहले कुम्भ मेला अब के कुम्भ मेले से बिल्कुल अलग था। लेकिन आज हम आपको ब्रिटिश शासन के समय हुए महाकुंभ के बारे में कुछ ऐसे बातें बताएंगे जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाओगे। क्यूंकि उस समय महाकुम्भ मात्र एक मेला नहीं बल्कि ब्रिटिश शासन के लिए पैसे कमाने का एक जरिया था।
बता दें कि जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रयागराज पर कब्जा किया, तो उन्हें इस शहर के बारे में एक अहम बात का एहसास हुआ और वह बात यह थी 12 साल में आयोजित होने वाला मेला हालांकि, ब्रिटिशों को कुम्भ के धार्मिक महत्व से कोई दिलचस्पी नहीं थी, वे तो इसे एक बिजनेस के रूप में देख रहे थे. ब्रिटिशों ने इस मेले में आने वाले हर व्यक्ति से एक रुपये का टैक्स लिया। यह ‘कुम्भ टैक्स’ था, जिसे हर भक्त को मेले में पवित्र संगम में स्नान करने के लिए देना पड़ता था।
हम सभी जानते है की तब के समय में एक रुपये बहुत बड़ी राशि थी क्योंकि उस समय औसत भारतीयों की मजदूरी दस रुपये से भी कम थी। और उसमे से भी उन्हें 1 रुपए टैक्स देना पड़ता था। और यह ब्रिटिशों का एक और तरीका था भारतीयों का शोषण करने का।
ब्रिटिश महिला फैनी पार्क ने इस कुम्भ टैक्स और स्थानीय व्यापारियों पर इसके प्रभावों के बारे में लिखा है। उन्होंने उल्लेख किया कि कुम्भ मेले में आने वाले भक्तों से टैक्स लिया जाता था। इसके साथ ही कुम्भ मेले में व्यापार करने वालों से भी कर वसूला जाता था, नाइयों से भी कुम्भ मेले में टैक्स लिया जाता था। कुम्भ में कई श्रद्धालु अपने बाल मुंडवाते थे, जिससे नाइयों का व्यापार काफी बढ़ जाता था। 1870 में ब्रिटिशों ने 3,000 नाई केंद्र स्थापित किए थे और उनसे लगभग 42,000 रुपये आए थे। इस राशि का लगभग एक चौथाई हिस्सा नाईयों से लिया गया था, प्रत्येक नाई को 4 रुपये टैक्स देना पड़ता था।