एक ऐसा अखाड़ा जो नहीं करता अमृत स्नान
दान में मिले साधुओं से बना है यह अखाड़ा
महाकुंभ से अब धीरे धीरे अखाड़े अमृत स्नान के बाद विदा लेना शुरू हो गए हैं, लेकिन इनसे जुड़े किस्से कहानियां अब भी चर्चा का विषय बनें हैं। महाकुभं से जुड़े आज हम आपको एक ऐसे अनोखे अखाड़े के बारे में बताएंगे, जिसके संन्यासियों का काम देह त्याग चुके संतों को समाधि दिलाना है. जो महाकुंभ मे आता तो है मगर कभी स्नान नहीं करता। हम बात कर रहे हैं श्री पंच दशनाम गोदड़ अखाड़ा की, जिसके बारे में बताया जाता है कि यह अखाड़ा दान में मिले साधुओं से बना है। इस अखाड़े के संत शैव अखाड़ों के देह त्याग चुके संतों को समाधि दिलाते हैं। महाकुंभ में सबसे अधिक विदेशी भक्त इसी अखाड़े से जुड़े हैं। इस अखाड़े में रूस, जापान और कई अन्य देशों के विदेशी साधू भी जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि गोदड़ अखाड़े की स्थापना ब्रह्मपुरी महाराज ने बरसों पहले की थी। यह अखाड़ा शैव संप्रदाय के सातों अखाड़ों से संबंधित है।
कहा जाता है कि गोदड़ अखाड़े के संतों की पहचान उनके कान से होती है। अखाड़े में शामिल होते ही संत को बाएं कान में भगवान शिव का कुंडल व दाएं कान में हिंगलाज माता की नथ पहनाई जाती है। जिस संत के गुरु जीवित होते हैं वह सोने के आभूषण (नथ व कुंडल) नहीं पहन सकता। सोने की नथ व कुंडल कान में होने का अर्थ है कि उस संत के गुरु की मृत्यु हो चुकी है। इस अखाड़े का मुख्य केंद्र जूनागढ़ है. गोदड़ अखाड़े के संत शैव संप्रदाय के सातों अखाड़ों अग्नि को छोडक़र के मृतक साधुओं को समाधि दिलाते हैं। यह अखाड़ा अमृत स्नान भी नहीं करता है, सिर्फ दान करने के लिए यह महाकुंभ में आता है। इसके बाद शिष्यों को शिक्षा देने के बाद वापस अपने स्थान चला जाता है।खैर अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि हम बार बार जिक्र कर रहे हैं साधुओ के अखाड़ा छोडऩे का तो चलिए हम आपको बताते हैं कि ऐसा क्यों है कि नागु साधुओ समेत अन्य अखाड़े महाकुंभ को बीच में ही छोड़ कर जा रहे हैं। संगम नगरी प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में जहां धर्मध्वजा की स्थापना के साथ ही अखाड़ों ने कुंभ मेला छावनी में प्रवेश किया था। वहीं, शुक्रवार को उसी धर्म ध्वजा की तनी रस्सियों को ढीलाकर अखाड़े के महा मंडलेश्वर संत महंत और नागा सन्यासी कुंभ मेला शिविर से विदा हो गए। इसके बाद पूजा पाठ करके देवताओं का प्रतीक भाला लेकर अखाड़े के शिविर से निकल गए।
इससे पहले कढ़ी-पकौड़ी का परंपरागत रस्म हुई। कढ़ी पकौड़ी चखने के बाद ही नागा संन्यासियों ने काशी की राह थाम ली। शुक्रवार अखाड़ों की औपचारिक विदाई का आखिरी दिन रहा। अधिकांश नागा संन्यासी काशी में होली तक प्रवास करेंगे। वहीं, अनी अखाड़े के साधु-महात्मा हरिद्वार समेत मथुरा, वृंदावन एवं अयोध्या प्रवास करेंगे। वैष्णव अखाड़े एवं उदासनी पंरपरा के संतों की भी रवानगी आरंभ हो गई है। साधु-संतों के लिए अमृत स्नान का खास महत्व होता है। मान्यता है कि अमृत स्नान करने से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है। महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद साधु-संत ध्यान लगाते हैं और धर्म ज्ञान पर चर्चा करते हैं, इसलिए बसंत पंचमी के दिन तीसरे और आखिरी अमृत स्नान करने के बाद सभी नागा साधु और संत अपने-अपने अखाड़ों के साथ महाकुंभ से वापस जा रहे हैं। नागा साधु महाकुंभ के दौरान ही एकत्रित होते हैं। अब यह अगले महाकुंभ यानी साल 2027 में नासिक कुंंभ मेले में नजर आएंगे. नासिक में महाकुंभ का आयोजन गोदावरी नदी के किनारे किया जाएगा। जहां हजारों नागा साधु एक साथ एकत्रित होंगे। हालांकि महाकुंभ से विदा लेते हुए कई संतों की आंखे भर आईं।
महाकुंभ में संगम के तट से कभी फनी तो कभी जुगाड़ से भरे वीडियो खूब वायरल हो रहे हैं. लेकिन आज एक ऐसा वीडियो भी सामने आया है जिसे देख कर आपकी आंख भी नम हो सकती है.. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जिसने भी ये वीडियो देखा वो भावुक हो ही गया.. दावा किया जा रहा है कि ये वीडियो प्र्यागराज का ही है..इस वीडियो में एक बुजुर्ग संगम किनारे रेत पर लेटे दिखाई दे रहे हैं, उन्हें देखकर ये समझ आ रहा है कि वे कितने दुखी हैं। वे लगातार रेत पर एक आकृति बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं और थोड़ी देर में ये समझ में आता है कि वे अपनी पत्नी की तस्वीर बनाने की कोशिश कर रहे है। आज के समय में प्यार की ऐसी मिसाल सच में कम ही देखने को मिलती है. इस वीडियो को अब तक 4 लाख से ज्यादा लोग लाइक कर चुके हैं। हजारों ने कमेंट कर लिखा कि ऐसा प्यार मिलना कम आज के जमाने में किस्मत की बात है.. आपको बता दें कि इस वीडियो को vivekvyas127 नाम के यूजर ने शेयर किया है।